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मोदी को घेरने के लिए विपक्ष ने बना लिया प्लान, मजबूत गढ़ में ऐसे बिछाई बिसात

अगले लोकसभा चुनाव के लिए जमीन तैयार हो चुकी है। पार्टियां अपनी-अपनी बिसात बिछाने में लग गई हैं। ...
मोदी को घेरने के लिए विपक्ष ने बना लिया प्लान, मजबूत गढ़ में ऐसे बिछाई बिसात

अगले लोकसभा चुनाव के लिए जमीन तैयार हो चुकी है। पार्टियां अपनी-अपनी बिसात बिछाने में लग गई हैं।  राज्यों के हिसाब से गठबंधन का फॉर्मूला तय हो रहा है। उत्तर भारत के जिन राज्यों में भाजपा की स्थिति मजबूत रही है, उन राज्यों  में वहां की विपक्षी पार्टियां गठबंधन कर रही हैं। यूपी में धुर विरोधी सपा-बसपा और महाराष्ट्र में एनसीपी-कांग्रेस ने गठबंधन कर मोदी की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। इससे पहले पिछले चुनावों में ये पार्टियां अलग-अलग चुनाव लड़ी थीं। कुल मिलाकर भाजपा को घेरने की पूरी तैयारी है। 

2014 में भाजपा ने यूपी, महाराष्ट्र, बिहार, गुजरात, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान में बड़ी जीत हासिल की थी लेकिन इस बार विपक्षी पार्टियों के गठबंधन से उसके सामने बड़ी चुनौती है। कुल 543 लोकसभा सीटों में से 273 सीटें इन्ही राज्यों से आती हैं। यानी 36 प्रतिशत हिस्से का प्रतिनिधित्व ये राज्य ही करते हैं।

राजनैतिक विश्लेषक अरविंद मोहन का कहना है कि इस बार के चुनाव कुछ अलग हैं और जिस तरह विपक्ष की एकता दिख रही है उससे निपटना भाजपा के लिए मुश्किल होना तय है। पिछली बार की भाजपा की सहयोगी पार्टियां भी इस बार कई राज्यों में भाजपा के विरोध में खड़ी हैं या फिर आंखें दिखाती रहती हैं। फिर वह चाहे शिवसेना हो या सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर।

अरविंद मोहन कहते हैं कि पिछले चुनाव में विपक्षी पार्टियां हर राज्यों में अलग-अलग चुनाव लड़ी थी लेकिन इस बार राज्यों के लिहाज से यह साथ दिखाई दे रही हैं। इसके अलावा पिछले महीने तीन राज्यों के चुनाव नतीजों में कांग्रेस को मिली जीत ने भी समीकरण बदले हैं। अगर यही नतीजे दोहराए जाएं तो इन तीन राज्यों में भाजपा को 40-45 सीटों का नुकसान होना तय है। भाजपा को अब नए सिरे से रणनीति बनाने पर विचार करना होगा।

सपा-बसपा गठबंधन से मिलेगी शिकस्त

उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में पिछले चुनाव में भाजपा को 71 और उसके सहयोगी अपना दल को दो सीटों पर जीत मिली थी लेकिन इस बार सपा-बसपा गठबंधन से समीकरणों का पलट जाना तय माना जा रहा है। गोरखपुर और फूलपुर के उपचुनाव में इसकी झलक भी मिली थी। असल में ये दोनों पार्टियां यूपी में मजबूत वोट बैंक रखती हैं। खास बात यह है कि दोनों के वोट एक दूसरे को ट्रांसफर भी हो जाते हैं। राज्य में अति पिछड़ा का जो सबसे बड़ा हथियार भाजपा का था, उसे भी यह गठबंधन हथियाता हुआ दिख रहा है।

एनसीपी से बिगड़ेगा गणित

महाराष्ट्र उत्तर प्रदेश के बाद देश का सबसे बड़ा राज्य है। राज्य की सीटों में पिछले बार भाजपा को 23 और सहयोगी शिवसेना को 18 सीटें मिली थीं लेकिन उसका अब शिवसेना से भाजपा बीजेपी के रिश्ते तल्ख हो गए हैं जिसका खामियाजा भाजपा को ही हो सकता है। इसके साथ ही यहां एनसीपी का कांग्रेस से गठबंधन हो गया है। यहां कांग्रेस को दो और एनसीपी को पांच सीटें मिली थीं। दोनों ने तब अलग-अलग चुनाव लड़ा था।

विधानसभा चुनावों में घट गई सीटें

गुजरात भाजपा का गढ़ माना जाता रहा है। नरेंद्र मोदी और अमित शाह का गृह राज्य होने के कारण इसका खास महत्व भी है। पिछले चुनाव में भाजपा को पूरी 26 सीटें मिली थीं। लेकिन हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवाणी की तिकड़ी का यहां नया समीकरण बना है। पिछले विधानसभा चुनावों में भाजपा का वोट शेयर करीब 1.25 प्रतिशत और कांग्रेस का 2 प्रतिशत बढ़ा। 2012 के मुकाबले भाजपा को 16 सीटों का नुकसान हुआ, उसे 99 सीटें मिलीं। कांग्रेस की सीटें 61 से बढ़कर 77 हो गईं। इन चुनावों भाजपा में हारते-हारते बची और यह खतरा लोकसभा चुनाव में भी दिखाई दे रहा है। 

पार्टियों का बदला समीकरण

बिहार की 40 सीटों में पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा को 22 और उसके दो सहयोगी दलों में आरएलएलपी को 3 और एलजेपी को 6 सीटें मिली थीं। आरजेडी और कांग्रेस ने गठबंधन में चुनाव लड़ा था जबकि जेडीयू ने अलग चुनाव लड़ा था। इस बार जेडीयू और भाजपा में बराबर सीटों पर चुनाव लड़ने की सहमति बन गई है तो रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी भी उनके साथ हैं लेकिन पिछली बार के सहयोगी रहे उपेंद्र कुशवाहा ने भाजपा से नाता तोड़ लिया है। एनडीए के सहयोगी दलों में सीटों का भी बंटवारा हो गया जिसके तहत जेडीयू-भाजपा 17-17 और एलजेपी 6 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। वहीं, विपक्षी गठबंधन में आरजेडी, कांग्रेस के अलावा उपेन्द्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी, जीतन राम मांझी की 'हम', वामपंथी दल जैसे सीपीआई एमएल, मुकेश निषाद की वीआईपी पार्टी शामिल हैं। 

सहयोगी दल का बदला रूख 

आंध्र प्रदेश में भाजपा तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) के साथ मिलकर लड़ी थी। यहां 25 लोकसभा सीटों में भाजपा को दो और टीडीपी को 15 सीटें मिली थीं लेकिन अब टीडीपी भाजपा से अलग हो गई है और वह विपक्षी दलों के गठबंधन के साथ है।

नए गठबंधन के संकेत

मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भाजपा का मुख्य मुकाबला कांग्रेस से होता है। दोनों राज्यों में कांग्रेस की स्थिति पहले से मजबूत हुई है। विधानसभा के चुनावों में इस बार कांग्रेस की जीत से इन राज्यों में भाजपा का समीकरण बिगड़ गया है। कर्नाटक में भी कांग्रेस के साथ जेडीएस का गठबंधन है। पिछले चुनावों में यहां दोनों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। झारखंड में भी जेएमएम और अन्य दलों के गठबंधन बनने के संकेत मिल रहे हैं।

राजनीतिक विश्लेषक अरिवंद मोहन का मानना है कि सर्वे भी इस बात की संकेत दे रहे हैं कि भाजपा का प्रदर्शन इस बार उतना बेहतर नहीं दिखता। यूपी में 50 फीसदी सीटें कम होना तय बताया जा रहा है। गैर-भाजपा दलों की एकता भाजपा को उसके गढ़ों में घेरने की रणनीति बना रही है जिसके तहत राज्यों की पार्टियां गठबंधन को अमली जामा पहना रही है। इन गठबंधनों का चुनावों पर असर होना लाजिमी ही है।

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