कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि मोदी सरकार ने बेईमानी से गुमराह करके दलित और आदिवासियों के अधिकारों का हनन कर रही है। सरकार ने षडयंत्र के तहत एससी-एसटी कानून को मजबूत करने के बजाय उसे खारिज करने की दलील दी।
कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला और वरिष्ठ कांग्रेस नेता आनन्द शर्मा ने कहा कि भाजपा की मंशा थी कि दलित उत्पीड़न निरोधक कानून जिसे कांग्रेस और राजीव गांधी लेकर आए थे उसे एक तरह से खत्म कर दिया जाए। इसमें सीधा हाथ मोदी सरकार और कानून मंत्रालय का है।
Randeep Surjewala Press Briefing on Law Minister Ravi Shankar Prasad's Statement | Overseas News: https://t.co/gc8rDaB5Y0 via @YouTube
— RayeesNews (@overseasnewsin) April 3, 2018
सुरजेवाला ने कानून मंत्री के बयान पर पलटवार करते हुए कहा कि एक एजेंडे के तहत देश को गुमराह किया जा रहा है। 20 नवंबर 2017 को कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को नोटिस दिया तो उसके साथ-साथ केंद्र सरकार को भी नोटिस दिया गया था। कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल को तलब किया था और सॉलीसिटर जनरल को बुलाया था लेकिन दोनों कोर्ट में पेश नहीं हुए बल्कि एडीशनल सॉलीसिटर जनरल को कोर्ट में भेजकर समय लिया गया। अगर केंद्र सरकार पार्टी नहीं थी तो फिर क्यों समय लिया गया।
कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि जब दलित कानून का सुप्रीम कोर्ट में मामला आया तो केस की पैरवी करने के बजाय उसे खारिज करने की दलील दी गई। सरकारी पक्ष की ओर से वकील ने कहा कि अगर पहली नजर में केस नहीं बनता तो अग्रिम जमानत दे दी जाए। साथ ही गलत या फर्जी मुकदमा दर्ज कराए जाने पर शिकायतकर्ता दलित को सजा देने की बात भी कही गई। केंद्र कानून को संरक्षित करने की दलील दे रहा था या फिर उसके खारिज करने की। यह सब कानून मंत्रालय, आरएसएस और भाजपा के इशारे पर साजिश रची गई। यह भाजपा की दलित विरोधी मानसिकता को दिखाता है। जब पुनविर्चार याचिका लाने की बात की गई तो उसमें 13 दिन का समय लगा दिया गया ताकि दलित और गैर दलित के बीच खाई पाटी जा सके। शायद सरकार इसी फसाद का इंतजार कर रही थी। पीएम दलित कानून पर मौन क्यों हैं। यह सब सरकार की मंशा और दुर्भावना को दिखाता है। इसका जवाब पीएम को संसद के पटल पर देना होगा।