नरेंद्र मोदी ने, जनता जनार्दन को मेरा प्रणाम कह कर अपना अभिवादन किया। उन्होंने कहा कि विदेश नीति केवल उन्हीं की देन नहीं है बल्कि यह सामूहिक प्रयास है। देश में 30 साल से अस्थिर सरकार थी और दुनिया किसी भी देश को उसकी सरकार की मजबूती से आंकती है। मुझे इसलिए लोगों से निजी तौर पर मिलना पड़ा क्योंकि मेरे पास पुराना कोई बैगेज नहीं था। मीडिया की नजर से यदि दूसरे राष्ट्राध्यक्ष मुझे पहचानते तो समझ ही नहीं पाते कि कौन सा मोदी सही है।
एनएसजी सदस्यता को लेकर उनका दृढ़ मत है कि वह काम भी होगा। क्योंकि विदेश नीति किसी देश का माइंडसेट बदलने की नीति नहीं है। जैसा कि कहा जा रहा है कि चीन का माइंडसेट बदलने की जरूरत है। उन्होंने कहा, देश का हित सर्वोपरि होना चाहिए। हर देश का अपना सैद्धांतिक मत होता है। जैसे हमारा है वैसे ही चीन का भी है।
उन्होंने इस बात पर भी एतराज जताया कि भारत की हर बात को पाकिस्तान के संदर्भ में देखा जाए। यह बात को पाकिस्तान के साथ टैग नहीं करना चाहिए। एक देश के रूप में वे अलग हैं और हम अलग।
अर्णब ने हाल ही में अमेरिका में दिए गए भाषण का हवाला देकर कहा कि इस बार उनके भाषण में बहुत हास्य था। तब मोदी ने हंस कर कहा, पहले मैं अपने भाषण को हल्का और मजाकिया ढंग का रखता था। पर अब आम जनता के बीच से भी हास्य खत्म हो गया है। अर्णब ने पूछा आप सचेत हो गए हैं? मोदी ने तपाक से कहा, नहीं मैं डर गया हूं। संसद से भी हास्य खत्म होता जा रहा है। यह चिंता का विषय है। अब बोलते हुए डरता हूं। पता नहीं कौन का सा शब्द या वाक्य का हिस्सा लेकर मीडिया बातें बनाना शुरू कर दे।