नई दिल्ली। बंगाली दैनिक आनंद बाजार पत्रिका के अनुसार आडवाणी ने कहा, एक नेता के लिए जनता का भरोसा कायम रखना सबसे बड़ी जिम्मेदारी है। नैतिकता जो मांग करती है वह राजधर्म है और सार्वजनिक जीवन में सत्यनिष्ठा कायम रखने की जरूरत है। गौरतलब है कि इस वक्त भाजपा ललित मोदी विवाद में बुरी तरह उलझी हुई है। कांग्रेस विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के इस्तीफे की मांग कर रही है जबकि दूसरी तरफ खुद ललित मोदी वित्त मंत्री अरुण जेटली पर जमकर निशाना साध रहे हैं।
गौरतलब है कि आडवाणी ने हवाला घोटाला में लिप्त के आरोप लगाने के बाद 1996 में संसद की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था और इस मामले में क्लीन चिट मिलने के बाद 1998 में वह संसद के लिए फिर से निर्वाचित हुए।हवाला कारोबारी एसके जैन की डायरी को सीबीआई ने आडवाणी समेत शीर्ष नेताों के खिलाफ अहम सबूत के तौर पर पेश किया था।
वाजपेयी ने मना किया, मैंने किसी की नहीं सुनी
आडवाणी ने कहा कि उन्होंने हवाला घोटाला के बाद खुद ही संसद की सदस्यता से इस्तीफा दिया था। इसका उन्हें कोई अफसोस नहीं है। उन्होंने कहा, जिस दिन जैन डायरी के आधार पर मेरे खिलाफ आरोप लगाए गए उसी शाम पंडारा रोड पर अपने मकान में इस्तीफा देने का फैसला किया। हवाला कांड के बाद मैं दो साल चुनाव नहीं लड़ सका। सरकार में शामिल नहीं रहा। इस्तीफा देने का फैसला मेरा अपना था। उसके तुरंत बाद मैंने वाजपेयी को काॅल कर किया था। उन्होंने मुझसे इस्तीफा नहीं देने को कहा, लेकिन मैंने किसी की नहीं सुनी। आडवाणी ने कहा, जनता हमें चुनती है इसलिए लोगों के प्रति प्रतिबद्धता सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। यह पूछे जाने पर कि क्या इस्तीफा मानदंड होना चाहिए आडवाणी ने कहा, मैं अपने बारे में कह सकता हूं। दूसरे क्या करेंगे, उनका क्या मामला है मैं नहीं जानता हूं और मैं उस पर टिप्पणी नहीं करना चाहता हूं।
सुषमा और राजे पर टिप्पणी से इन्कार
आडवाणी ने सुषमा स्वराज और वसुंधरा राजे से संबंधित विवाद पर टिप्पणी करने से इन्कार कर दिया। लेकिन उन्होंने परोक्ष रूप से सार्वजनिक जीवन में सत्यनिष्ठा कायम रखने की सीख जरूर दी है। ललितगेट पर उन्होंने कहा, मैं आज इन सब से काफी दूर हूं। इसलिए मुझे कुछ भी टिप्पणी नहीं करनी है। मैं फैसला करने में शामिल नहीं हूं और इसलिए मुझे इस मामले में कोई टिप्पणी नहीं करनी है।