पुलिस को अपना आदेश तब वापस लेना पड़ा जब विभिन्न राजनीतिक दलों के सांसदों ने इस मुद्दे को संसद में उठाया और इसे अत्यंत आपत्तिजनक करार दिया और अपने मौलिक अधिकारों के संरक्षण की मांग की।
अनुमति को लेकर कई घंटे की असमंजस की स्थिति के बाद दिल्ली पुलिस आयुक्त बी एस बस्सी ने कहा कि धारा 144 लोगों को शांतिपूर्ण तरीके से चलने से नहीं रोकती।
इससे पहले अतिरिक्त पुलिस आयुक्त (नयी दिल्ली) जतिन नरवाल के नाम से जारी एक पत्र में अधिसूचित किया गया था कि पुलिस को मार्च के बारे में जानकारी मिली है और इसमें सांसदों को सलाह दी गई कि वे अपनी योजना को आगे ना बढ़ायें क्योंकि संसद और राष्ट्रपति भवन के क्षेत्र में पूरे वर्ष धारा 144 सीआरपीसी लागू रहती है।
क्षेत्र में दिल्ली पुलिस की तीन कंपनियां और एक अर्धसैनिक बल की कंपनी दंगा निरोधी साजो सामान के साथ तैनात कर दी गयी थी। बैरीकेड लगा दिये गए थे और संसद से राष्ट्रपति भवन तक के रास्ते में पानी की बौछार करने वाले वाहन भी तैनात थे।
अनुमति को लेकर वरिष्ठ अधिकारियों में भी भ्रम की स्थिति थी जो मौके पर तैनात थे और निर्देश का इंतजार कर रहे थे। इसी बीच शाम चार बजे बस्सी का बयान आया। उन्होंने कहा, यदि कोई प्रदर्शन होता है तो हम उसे रोकेंगे। लेकिन यदि कोई पैदल चलता है तो हम उन्हें क्यों रोकेंगे?
उन्होंने कहा कि पुलिस यह सुनिश्चित करेगी कि नियमों का कोई उल्लंघन ना हो। जो भी सुरक्षा व्यवस्था करनी पड़ेगी की जाएगी।
सूत्रों ने कहा कि सुरक्षा एजेंसियों ने नेताओं और सांसदों को मार्च करने की इजाजत देने का निर्णय किया लेकिन यदि इसमें बड़ी संख्या में कार्यकर्ता शामिल होते तो उन्हें रोका जा सकता था।
इससे पहले अनुमति नहीं देने का मुद्दा लोकसभा में उठाया गया, जिस पर संसदीय मामलों के मंत्री वेंकैया नायडू ने कहा कि स्थानीय पुलिस को सांसदों को नहीं रोकने के लिए कहा गया है।
राज्यसभा में उपसभापति पीजे कुरियन ने सरकार से निर्णय पर पुनर्विचार करने को कहा।