खासकर अगले साल चुनाव मैदान में जाने वाले दो प्रमुख राज्यों उत्तर प्रदेश और पंजाब में पार्टी ने बड़ा दांव लगाया है। पिछड़ी जाति से आने वाले फूलपुर के सांसद केशव प्रसाद मौर्य को जहां यूपी भाजपा की कमान सौंपी गई है वहीं दलित समुदाय से आने वाले और साफ-सुथरी और ईमानदार छवि वाले विजय सांपला पंजाब भाजपा प्रमुख बनाए गए हैं। गौरतलब है कि आउटलुक पहले ही यह लिख चुका है कि आरएसएस और भाजपा की अंदरुनी बैठक में यह तय किया गया है कि पार्टी इस बार राज्यों के क्षत्रपों में किसी तरह की गलतफहमी नहीं पैदा होने देगी। सभी राज्य प्रमुखों को यह स्पष्ट कर दिया जाएगा कि चुनाव जीतने की स्थिति में यह जरूरी नहीं है कि उन्हें ही मुख्यमंत्री बनाया जाए। परिस्थितियों को देखते हुए जहां जरूरी होगा वहां मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार का नाम घोषित किया जा सकता है और जहां जरूरी नहीं लगेगा वहां पार्टी चुनाव बाद ही नाम की घोषणा करेगी। यह जरूर है कि चुनाव के समय प्रदेश अध्यक्ष को इस बारे में कुछ संकेत दे दिया जाए और उसे संभावित सीएम उम्मीदवार के साथ सहयोग में काम करने को कहा जाए। ऐसी स्थिति में प्रदेश अध्यक्षों के खुद सीएम बनने की महत्वाकांक्षा पर लगाम लग सकेगी। इस नजरिये से देखें तो उत्तर प्रदेश में मौर्य का अध्यक्ष बनना इस बात की पुष्टि करता है कि वहां पार्टी किसी और को मुख्यमंत्री पद का दावेदार मानकर चल रही है। वैसे लक्ष्मीकांत वाजपेयी के बाद मौर्य को अध्यक्ष बनाकर पार्टी ने अगड़ों के साथ पिछड़ों को साधने की तैयारी भी शुरू की है।
पंजाब में सांपला को अध्यक्ष बनाकर भाजपा ने राज्य की 30 फीसदी दलित आबादी को साधने का प्रयास किया है। पार्टी ने यहां कमल शर्मा को पद से हटाया है जिनकी छवि लगातार खराब होती गई थी और पार्टी के अंदर से भी उन्हें हटाने की मांग जोर पकड़ रही थी। माना जा रहा है कि सांपला के आने सीटों के मामले में अकाली दल से बेहतर मोल-भाव की स्थिति बनेगी। भाजपा इस बार पंजाब में अपने लिए ज्यादा सीटों की मांग कर रही है।
भाजपा ने इन दोनों राज्यों के अलावा कर्नाटक में भी अध्यक्ष बदल दिया है। वहां पार्टी ने एक बार फिर बी.एस. येदियुरप्पा पर दांव लगाया है जो राज्य की पहली भाजपा नीत सरकार के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यहां पार्टी के पास ज्यादा विकल्प भी नहीं था। येदियुरप्पा राज्य की मजबूत लिंगायत जाति का प्रतिनिधित्व करते हैं और एक बार इस जाति को नाराज करने का खामियाजा पार्टी भुगत चुकी है। इसलिए अपने पारंपरिक वोट बैंक को जोड़े रखने के लिए दागी छवि होने के बावजूद येदियुरप्पा को राज्य भाजपा का प्रमुख चुना गया है। यह भी तय माना जा रहा है कि यदि पार्टी करीब दो साल बाद होने वाले कर्नाटक चुनाव में जीती तो एक बार फिर येदियुरप्पा ही मुख्यमंत्री हो सकते हैं।