दरअसल डॉ. पांड्या खुद को भाजपा या सरकार के करीबी के रूप में नहीं प्रस्तुत करना चाहते थे। दूसरी ओर उनसे जुड़े कार्यकर्ताओं ने भी उनसे इस प्रस्ताव को ठुकराने का आग्रह किया इसलिए आरंभ में इसके लिए तैयार होने के बावजूद बाद में उन्होंने मना कर दिया।
आउटलुक से बातचीत में खुद डॉ. पांड्या ने बताया कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह तथा पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेता लगातार 21 दिनों तक उन्हें राज्यसभा की सदस्यता स्वीकार करने के लिए मनाते रहे और आखिरकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के व्यक्तिगत अनुरोध पर वह इसके लिए तैयार हुए थे मगर जब उनके नाम की घोषणा हो गई तब कुछ करीबी कार्यकर्ताओं के अनुरोध पर उन्होंने अपने साथ जुड़े लाखों कार्यकर्ताओं की राय लेने का फैसला किया। इसके लिए इलेक्ट्रोनिक तरीका अपनाया गया और इसमें करीब एक लाख कार्यकर्ताओं ने हिस्सेदारी की और उसमें से 80 फीसदी ने उनसे इस प्रस्ताव को ठुकराने का आग्रह किया। डॉ. पांड्या ने बातचीत में कहा कि उन्हें यह भी लगा कि राज्यसभा में जाने से समाज परिवर्तन का उनका लक्ष्य शायद पूरा न हो इसलिए उन्होंने कार्यकर्ताओं की राय पर चलने का मन बनाया।
डॉ. पांड्या के अनुसार उनका किसी पार्टी या सरकार से कोई लेना-देना नहीं है, राष्ट्र निर्माण ही उनका लक्ष्य है और वह इसी के लिए काम करते हैं। यह पूछे जाने पर कि आखिर भाजपा अध्यक्ष या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उन्हें क्यों राज्यसभा में भेजने को इतने इच्छुक थे, गायत्री परिवार के प्रमुख ने कहा कि शायद भाजपा अध्यक्ष के मन में रहा हो कि इससे गायत्री परिवार के करोड़ों अनुयायी भाजपा के साथ जुड़ जाएंगे। उन्होंने यह भी कहा कि वह आरंभ से ही इस प्रस्ताव के पक्ष में नहीं थे मगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वह इज्जत करते हैं इसलिए उनका व्यक्तिगत अनुरोध वह नहीं ठुकरा सके थे।