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राहुल गांधी की सक्रियता नेतृत्व परिवर्तन की आहट

संसद सत्र के दौरान सुबह ठीक साढे 10.30 बजे। कांग्रेस के युवा सांसदों की एक टीम पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी से मिलती है और यह तय किया जाता है कि आज सरकार का विरोध किस तरीके से करना है, कब तक करना है और किस हद तक जाना है। यह कोई एक दिन की रणनीति नहीं होती थी बल्कि हर दिन सत्र से पहले कांग्रेस के युवा सांसदों की टीम राहुल के इंतजार में रहती थी और इशारा मिलने पर पूरी मुस्तैदी के साथ सरकार के विरोध में उतर आती।
राहुल गांधी की सक्रियता नेतृत्व परिवर्तन की आहट

कांग्रेस के युवा नेताओं में जो जोश देखने को मिल रहा था वह केवल क्षणिक नहीं था बल्कि इस बात का संकेत भी दे रहा था कि अब ये युवा नेतृत्व परिवर्तन को लेकर भी उत्साहित हो रहे थे। विरोध की कमान भी युवाओं के हाथ में इसलिए थी कि राहुल गांधी के निर्देश पर भी पार्टी फैसला ले रही थी कि विरोध करना है या नहीं। असम के मुख्य‍मंत्री तरुण गोगोई के पहली बार सांसद बने बेटे गौरव गोगोई विरोध के दौरान सबसे अगली पंक्ति में खड़े नजर आते। आवाज में भी दम था और अंदाज में भी। गोगोई पार्टी में राहुल गांधी को कमान दिए जाने के बारे में सीधे तो कुछ नहीं कहते हैं लेकिन इतना जरूर कहते हैं कि युवाओं में जोश है और इस जोश के कारण ही आज सरकार का जमकर विरोध हो रहा है। आशय साफ है कि कांग्रेस में अब दो तरह के विचारों का समावेश हो चुका है।

एक विचार यह भी है कि पार्टी चलाने के लिए अनुभव की जरूरत है दूसरा विचार यह है कि अनुभव नहीं अब जोश चाहिए। यह जोश संसद में विरोध के दौरान नजर भी आ रहा था जब ज्योतिरादित्य सिंधिया, रंजीत रंजन, सुष्मिता देव जैसे युवा सांसद उत्साहित नजर आ रहे थे। युवाओं के जोश का ही नतीजा था कि पूरे सत्र के दौरान कांग्रेस आक्रामक अंदाज में नजर आई। राहुल गांधी के फैसलों से कांग्रेस अध्यक्ष को अवगत करा दिया जाता था और उसके बाद शुरू हो जाता था विरोध का दौर। सूत्रों के मुताबिक राहुल गांधी के फैसलों को कांग्रेस अध्यक्ष कुछ वरिष्ठ नेताओं से चर्चा करके हरी झंडी दे देती थी।

इससे एक संकेत तो साफ है कि अब पार्टी में राहुल गांधी नई भूमिका में आ चुके हैं और खुद बड़े फैसले लेने में सक्षम हो चुके हैं। इसलिए उन्होंने जो भी फैसला लिया उसे कांग्रेस अध्यक्ष टाल नहीं पाईं। चाहे वह मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा में कांग्रेस की कमान युवाओं को देने का मामला रहा हो या फिर बिहार में जनता दल यूनाइटेड और राष्ट्रीय जनता दल के साथ मिलकर चुनाव लडऩे का। इन सारे फैसलों के पीछे राहुल गांधी का हाथ था। 

लेकिन पूरी तरह से राहुल के हाथ में कमान होगी या नहीं इसको लेकर पार्टी में दो धड़े बनते दिख रहे हैं। एक धड़ा जो नहीं चाहता कि राहुल गांधी को कमान अभी सौंपी जाए तो दूसरा खुलकर कह रहा है कि अब परिवर्तन होना चाहिए। अंतिम फैसला या होगा, इसको लेकर अभी कोई रणनीति न तो कांग्रेस नेताओं को समझ आ रही है और न ही राजनीतिक विश्लेषकों को। राहुल ने अपना अंदाज बदल दिया और रणनीति भी। कांग्रेस से जुड़े एक युवा नेता के मुताबिक राहुल ने साफ तौर पर कह दिया है कि जहां तक हो सके सरकार का विरोध करें चाहे वह राज्य सरकारों का हो या फिर केंद्र सरकार का। इसी का परिणाम रहा कि मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश और हरियाणा में युवा और छात्र कांग्रेस के सैकड़ों कार्यकर्ता आए दिन सरकार के विरोध में प्रदर्शन करते जा रहे हैं।

कांग्रेस के युवा संगठन और छात्र संगठन ने तो रणनीति ही बना ली है कि आए दिन किसी न किसी मुद्दे पर विरोध करना है। मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष अरुण यादव कहते हैं कि मध्य प्रदेश में जबसे कांग्रेस ने सरकार के विरोध की रणनीति तैयार की है तबसे कार्यकर्ताओं में जोश आ गया है। यादव के मुताबिक कांग्रेस का यह विरोध धीरे-धीरे आंदोलन बनता जा रहा है और कार्यकर्ताओं को लग रहा है कि पार्टी उनके हितों की लड़ाई लड़ रही है। वहीं राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पायलट कहते हैं कि अगर विरोध नहीं होगा तो सरकारों की मनमानी चलेगी और इस मनमानी को रोकने की रणनीति पार्टी ने तैयार की है। कांग्रेस के कई युवा नेता नाम न छापने की शर्त पर यह बताते हैं कि पहले उन्हें प्रभारी महासचिव से आदेश लेना पड़ता था लेकिन अब उनके पास सीधे कांग्रेस उपाध्यक्ष के यहां से निर्देश आ जाता है जिसके बाद युवाओं का समूह सक्रिय हो जाता है।

बहरहाल, पार्टी का नेतृत्व राहुल गांधी में हाथ में होगा या नहीं, इसको लेकर चर्चाएं तेज हैं। पार्टी महासचिव दिग्विजय सिंह पहले ही कह चुके हैं कि राहुल गांधी के हाथ में कमान सौंप दी जाए और कांग्रेस अध्यक्ष मार्गदर्शक भी भूमिका में आ जाएं। वहीं पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश भी कुछ ऐसा ही संकेत दे चुके हैं। लेकिन पार्टी का एक धड़ा अभी नहीं चाहता कि राहुल के हाथ में कमान सौंपी जाए। पंजाब के पूर्व मुख्य‍मंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह अपना विरोध पहले ही दर्ज करा चुके हैं। वहीं पार्टी के कई वरिष्ठ नेता दबे स्वर में राहुल को कमान दिए जाने का विरोध करते हैं।

पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि अभी कमान देना जल्दबाजी होगी क्यों‍कि सियासत के लिए जोश के साथ-साथ अनुभव का भी होना जरूरी है। लेकिन इसके विपरीत पार्टी के कई युवा नेता कहते हैं कि जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने थे तो उस समय उनको कितना सियासी अनुभव था। फिर भी उनका कार्यकाल आज भी लोग याद करते थे। युवा कांग्रेस के नेताओं को उम्मींद है कि जिस तरह से बीते पांच-छह महीनों में राहुल गांधी ने सक्रियता दिखाई है और देशव्यापी दौरों की जो रूपरेखा तैयार की है उसने पार्टी कार्यकर्ताओं में जान फूंक दी है। राहुल वहां भी जा रहे हैं जहां अभी चुनाव नहीं होने वाले हैं जबकि चुनावी राज्यों पर तो उनका विशेष ध्यान है। बिहार में भले ही पार्टी गठबंधन के साथ मैदान में है लेकिन अगले साल पंजाब और उसके बाद 2017 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस अकेले चुनाव लडऩे की रणनीति तैयार कर रही है।

इसी कड़ी में सितंबर माह में ही उत्तर प्रदेश में आयोजित होने वाले पार्टी के राज्यस्तरीय सम्मेलन में राहुल को आगे करके पार्टी चुनाव लडऩे की तैयारी कर रही है। वैसे इससे पहले भी साल 2012 के विधानसभा चुनाव और 2009 के लोकसभा चुनाव में राहुल उत्तर प्रदेश में सक्रिय भूमिका निभा चुके हैं। लेकिन इस बार की रणनीति अलग होगी। प्रदेश कांग्रेस कमेटी की पूर्व अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी कहती हैं कि अब नए जोश के साथ राहुल गांधी मैदान में नजर आ रहे हैं। जोशी को उम्मीद है कि राहुल गांधी का यह नया जोश युवाओं के साथ आंदोलन की रूपरेखा तैयार कर रहा है। भले ही लोकसभा में सांसदों और उत्तर प्रदेश में विधायकों की संख्या कम हो लेकिन लोकसभा और विधानसभा में जिस तरह से विरोध की रणनीति बनाई गई उसके पीछे राहुल गांधी का ही हाथ है। इसलिए पार्टी के कई युवा नेताओं को इस बात की उम्मीद है कि अब राहुल गांधी के हाथ में कमान आ ही जाएगी। लेकिन कई वरिष्ठ नेताओं के मन में अभी सितंबर माह में होने वाले पार्टी के 84वें अधिवेशन में नेतृत्व परिवर्तन की संभावना के बारे में शंका और संशय दोनों ही कायम है।

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