2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार ने धान, बाजरा, मक्का, अरहर, मूंग और रागी सहित खरीफ की सभी 14 फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी ) में इजाफा करके देश के किसानों को लुभाने की कोशिश की है। केन्द्र सरकार के इस फैसले के बाद इस पर राजनीति भी शुरू हो गई है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसे ऐतिहासिक फैसला बताते हुए कहा कि किसान भाइयों-बहनों को सरकार ने लागत के 1.5 गुना एमएसपी देने का जो वादा किया था, आज उसे पूरा किया गया है। फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में इस बार ऐतिहासिक वृद्धि की गई है।
इधर, कांग्रेस ने इसे किसानों के साथ ठगी करार दिया है। कांग्रेस के संचार प्रभारी रणदीप सुरजेवाला ने ट्वीट कर कहा कि किसान फिर से ठगा गया। मोदीजी की 'जुमलानाथन कमेटी' ये काम नहीं करेगी। उन्होंने पूछा कि 2018-19 की सीएसीपी सिफारिशें कहां हैं? किसान की डिमांड कॉस्ट पर डेढ़ गुना कहां है? ये एमएसपी का पीआर करना सिर्फ 'चुनावी लॉलीपॉप' है!
‘वो दाम नहीं है जिसका वादा मोदीजी ने किया था’
स्वराज इंडिया के प्रमुख योगेन्द्र यादव ने ट्वीट कर कहा कि खरीफ 2018/19 की एमएसपी किसान आंदोलन की एक छोटी जीत है। किसानों के ऐतिहासिक संघर्ष ने इस किसान विरोधी सरकार को मजबूर किया कि वो चुनावी वर्ष में अपने पिछले चुनावी वादे को आंशिक रूप से लागू करे।
उन्होंने कहा कि लेकिन याद रहे सरकार द्वारा घोषित एमएसपी वो ड्योढ़ा दाम नहीं है जो किसान आंदोलन ने मांगा था। वो दाम नहीं है जिसका वादा मोदीजी ने किया था। सिर्फ वादा है, जो सरकारी खरीद पर निर्भर है। अस्थाई है, अगली सरकार की मर्जी पर है। किसान को सम्पूर्ण लागत पर ड्योढ़ा दाम की गारंटी चाहिए।
2019 पर नजर
2019 लोकसभा चुनाव से पहले राजस्थान और मध्य प्रदेश में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं। इन दोनों राज्यों में भाजपा की सरकारें सत्ता विरोधी माहौल से जूझ रही है। ऐसे में सरकार ने इस कदम से जरिए किसानों की नाराजगी को दूर करने का कुछ हद तक प्रयास किया है। एमएसपी में बढ़ोतरी से पहले मोदी सरकार गन्ना किसानों को राहत देने के लिए 8,500 करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा कर चुकी है। ऐसे में आगामी लोकसभा चुनाव और तीन राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर इसे मास्टरस्ट्रोक माना जा रहा है।