फेसबुक पर उपलब्ध लोगों की जानकारियों का किस तरह राजनीतिक इस्तेमाल हो सकता है, ये बात कैम्ब्रिज एनालिटिका कांड से सामने आई है। अमेरिका के इस राजनीतिक फर्म पर फेसबुक का डाटा चोरी और उसके अनुचित इस्तेमाल के आरोप लगे हैं। आरोप है कि डोनाल्ड ट्रंप के चुनाव को इस कंपनी के इन हथखंडों ने प्रभावित किया। अब इस विवाद की आंच भारत तक पहुंच चुकी है।
इस मामले के बाद ना सिर्फ अमेरिका की राजनीति में भूचाल आया है बल्कि भारत की राजनीतिक पार्टियो के बीच भी आरोप-प्रत्यारोपों का दौर तेज हो गया है। आरोपों की मानें तो सोशल मीडिया के जरिए अपनी जमीन मजबूत करने की ललक में सियासी दल किसी ना किसी रुप में 'कैम्ब्रिज एनालिटिका' की मदद लेते रहे हैं।
आरोप है कि 'कैम्ब्रिज एनालिटिका' ने फेसबुक से मिले डाटा के सहारे 2016 के अमरीकी राष्ट्रपति के चुनाव और ब्रिटेन में ब्रेक्ज़ट पर हुए जनमत संग्रह के नतीजों को प्रभावित करने की कोशिश की थी।
अब भारत में भी कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कांग्रेस पर आरोप जड़ा है कि 'कैम्ब्रिज एनालिटिका' से कांग्रेस और राहुल गांधी ने सेवाएं ली है। हालांकि प्रसाद के इस आरोप के बाद कांग्रेस ने भाजपा पर ही इसके साथ संबंध होने के आरोप लगा दिए। कांग्रेस प्रवक्ता आरएस सुरजेवाला ने कहा कि भाजपा और जदयू ने चुनावों में इस कंपनी से मदद ली है। उन्होंने राहुल गांधी या कांग्रेस के द्वारा इनकी सेवाएं लेने की बात से इंकार किया। उन्होंने रविशंकर प्रसाद को सफेद झूठ बोलने वाला बताया।
लेकिन कांग्रेस से बागी नेता शहजाद पूनावाला ने सुरजेवाला के दावे को झूठ बताया। समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक उन्होंने कहा, "सुरजेवाला ने कहा है कि कांग्रेस का कैंब्रिज एनालिटिका और उसके भारतीय पार्टनर, ओव्लेनो के साथ कोई संबंध नहीं है। उनका दावा बिल्कुल गलत है।"
शहजाद ने पूछा, “2017 में प्रतिष्ठित अखबारों में रिपोर्ट की गई थी, अगर कोई संबंध नहीं था, तो उस वक्त उन्होंने ऐसा क्यों नहीं कहा?”
उन्होंने आगे कहा कि ओव्लेनो के मुख्य कार्यकारी अधिकारी, 2011-2012 में मेरे साथ संपर्क में थे और कांग्रेस के माध्यम से मेरे साथ कुछ काम किए थे। ठोस सबूत हैं कि ओव्लेनो की अमरीश त्यागी राहुल गांधी और टीम के संपर्क में थे। अब तक कुछ भी नहीं था, लेकिन आज जब कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने इस मुद्दे को उठाया है, तो किसी प्रकार से सफेद धुलाई का प्रयास किया जा रहा है।
राजनेताओं के इन आरोप-प्रत्यरोपों में कितनी सच्चाई है यह बता पाना अभी मुश्किल है। लेकिन सियासी जमीन मजबूत करने के लिए कैसे-कैसे दांव-पेंच आजमाए जा रहे हैं इसे आसानी से समझा जा सकता है। ऐसे में यही कहा जा सकता है कि सोशल मीडिया का इस्तेमाल आप करें, कोई इस प्लेटफॉर्म के जरिए आपका इस्तेमाल ना करने पाए।