पवार ने 1997 में विदेशी मूल का होने के कारण सोनिया गांधी का विरोध किया था लेकिन बाद में उनसे समझौता हो गया था। पवार ने यह भी बताया है कि कैसे उनके संबंधों में गर्माहट की कमी रही।
उन्होंने कई घटनाओं का जिक्र किया है कि जब वह लोकसभा में कांग्रेस के नेता थे तो सोनिया ने 1996-97 में कांग्रेस अध्यक्ष होने के नाते उन्हें लगातार कमतर आंका। संप्रग सरकार में दस वर्षों तक मंत्री रहे पवार ने 1990 के शुरूआती दशक में कांग्रेस संसदीय दल के संविधान में एक संशोधन को स्तब्धकारी बताया है जब सोनिया को संसद में चुने बगैर उन्हें सीपीपी नेता बनाने के लिए संशोधन किए गए।
पवार ने ये दावे अपनी किताब लाइफ आॅन माई टर्म्स - फ्राॅम ग्रासरूट्स एंड कोरीडोर्स आॅफ पावर में किए हैं। इसे सोनिया गांधी, प्रधानमंत्राी नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति की उपस्थिति में शरद पवार के 75वें जन्मदिन समारोह में औपचारिक रूप से जारी किया गया। पवार का जन्मदिन कल है।
राकांपा अध्यक्ष ने कहा कि वफादारों में शामिल दिवंगत अर्जुन सिंह खुद भी प्रधानमंत्रh पद के दावेदार थे और उन्होंने पवार के बजाए राव को चुनने का निर्णय लेने में सोनिया गांधी को राजी करने की चालाकी पूर्ण चाल चली। राव की कैबिनेट में पवार रक्षा मंत्री बने। उन्होंने कहा कि शीर्ष पद के लिए उनके नाम पर विचार न केवल महाराष्ट्र में बल्कि दूसरे राज्यों में भी पार्टी के अंदर चल रहा था। वह काफी सावधान थे क्योंकि वह जानते थे कि काफी कुछ दस जनपथ पर निर्भर करता है जहां सोनिया गांधी रहती हैं।
पवार ने अपनी किताब में कहा है, पी. वी. नरसिंह राव भले ही वरिष्ठ नेता थे लेकिन चुनाव से पहले स्वास्थ्य कारणों से वह मुख्य धारा की राजनीति से अलग थे। उनके लंबे अनुभव को देखते हुए उन्हें वापस लाने के सुझाव दिए गए। दस जनपथ के स्वयंभू वफादार निजी बातचीत में कहते थे कि शरद पवार को प्रधानमंत्री बनाए जाने से उनकी युवा उम्र को देखते हुए प्रथम परिवार के हितों को नुकसान पहुंचेगा। पवार ने अपनी किताब में लिखा है, वे कहते थे कि वह लंबी रेस का घोड़ा होगा।
जिन लोगों ने यह चालाकीपूर्ण चाल चली उनमें एम. एल. फोतेदार, आर. के. धवन, अर्जुन सिंह और वी. जाॅर्ज थे। उन्होंने सोनिया गांधी को विश्वास दिलाया कि नरसिंहराव का समर्थन करना सुरक्षित रहेगा क्योंकि वह बूढ़े हैं और उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं है। अर्जुन सिंह खुद ही प्रधानमंत्री बनना चाहते थे और उन्हें उम्मीद थी कि वह जल्द ही राव का स्थान ले लेंगे। सोनिया गांधी ने 1991 में जैसे ही इस मण्डली के राव लाओ पर अमल किया, वैसे ही चीजें मेरे खिलाफ हो गईं।
अंतत: पवार के बजाए राव को चुना गया जिन्हें 35 से ज्यादा वोटों की बढ़त मिली थी। बाद में इंदिरा गांधी के प्रधान सचिव और परिवार के विश्वस्त पी. सी. एलेक्जेंडर ने उनके और राव के बीच बैठक कराई और उन्हें शीर्ष तीन विभागों की पेशकश की। पवार ने कहा, वह (अलेक्जेंडर) और मैं जानते थे कि मैं कड़ा प्रतिद्वंद्वी हूं लेकिन गांधी परिवार किसी एेसे व्यक्ति को प्रधानमंत्री के पद पर नहीं बिठाना चाहता था जो स्वतंत्र ख्यालों वाला हो।