मध्य प्रदेश में विधान सभा उपचुनाव में तीन मंत्रियों की हार हुई थी। चुनाव में हार के बाद भी सिंधिया समर्थक इन मंत्रियों को मंत्री पद से मोह छूट नहीं रहा है। चुनाव के परिणाम के करीब एक माह बाद भी ये तीनों लोग मंत्री को मिलने वाली सभी सुविधाओं का लाभ ले रहे है। औपचारिक रूप से तो इन लोगों ने त्यागपत्र मुख्यमंत्री को सौंप दिये है किन्तु वह स्वीकार न होने की वजह से ये मंत्री पद पर बने हुए है। इमरती देवी तो हाल की राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में भी शामिल हुई थी।
जानकारों का मानना है कि राज्य सभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक होने की वजह से इनके त्यागपत्र स्वीकार नहीं किये जा रहे है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह पर सिंधिया का दबाव है कि इनके त्यागपत्र स्वीकार न किये जाये। इसके अलावा सिंधिया की मांग है कि इन लोगों को निगम-मंडलों में नियुक्तियां दे कर मंत्री पद का दर्जा दे दिया जाये। ऐसा होने से इनको वर्तमान मंत्री पद की सुविधाएं लगातार मिलती रहेंगी। मुख्यमंत्री इसी वजह से त्यागपत्र को औपचारिक स्वीकृति नहीं दे रहे है। यदि ऐसा हो जाता है तो इन लोगों से मंत्री को मिलने वाली सभी सुविधाएं छिन जायेंगी।
यह सारी कवायद केवल इन हारे हुए मंत्रियों को मंत्री पद की सुविधाएं लगातार दिये जाने के लिए की जा रही है। मुख्यमंत्री जल्द ही प्रदेश के निगम-मंडलों में अध्यक्षों की नियुक्तियां करने वाले है। इन लोगों को उसी में स्थान दिये जाने की संभावना है।
उपचुनाव में राज्य सरकार के तीन मंत्रियों को हार का सामना करना पड़ा था। इसमें इमरती देवी, एंदल सिंह कंसाना और गिरिराज दंडोतिया के नाम है। नियामानुसार विधान सभा चुनाव में हार के बाद इन सभी को तुरंत त्यागपत्र दे देना चाहिए किन्तु ऐसा नहीं हुआ। हार के कुछ समय बाद इन्होंने त्यागपत्र दिया किन्तु वह स्वीकार नहीं किया गया है। तकनीकी रूप से जब तक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह इनका त्यागपत्र स्वीकार नहीं करते है तब तक वे मंत्री पद पर बने रह सकते है। इसी का फायदा इनको मिल रहा है।