एक अंग्रेजी अखबार से बात करते हुए थरूर ने कहा कि जब आजादी के बाद देश के नेता संविधान बनाने के लिए बैठे तो उन्होंने जो माडल अपनाया वह पूरी तरह से ब्रिटिश संसदीय प्रणाली की तरह था। कांग्रेस सांसद ने कहा कि ब्रिटेन की संसदीय व्यवस्था की शुरुआत में एक सांसद के निवार्चन क्षेत्र में कुछ हजार वोटर होते थे। आज भी एक संसदीय क्षेत्र में एक लाख से कम वोटर हैं। दूसरी ओर यह स्थिति भारत में नहीं है। यहां एक नेता की अपील का काफी असर पड़ता है। ब्रिटेन में चुने गए प्रतिनिधि सरकार गठन के बारे में ही सोचते हैं। उसी तरह हमारे यहां के जनप्रतिनिधि भी कानून बनाने की जगह सरकार में शामिल के प्रयास में लगे रहते हैं।
उन्होंने कहा कि भारतीयों को अपने पूर्व के इतिहास की जानकारी रखनी चाहिए क्योंकि अगर आप यह नहीं जान सकते कि आप कहां से चले थे तो आप इसकी भी कल्पना नहीं कर सकते कि आप कहां जा रहे हैं। थरूर का मानना है कि हमें अपनी गिरावट के प्रति ज्यादा जागरूक होना पड़ेगा। हमारी गिरावट के लिए ब्रिटिश सरकार की औपनिवेशिक शासन की नीति ज्यादा जिम्मेदार है। हमें राष्ट्र द्रोह कानून, सेक्शन 377 से लेकर शिक्षा व्यवस्था पर असर डालने वाली नीति में बदलाव लाने की जरूरत है।
थरूर ने कहा कि मैकाले पैनल कोड पर आजाद भारत में फिर से विचार करने की जरूरत है। यह 1837 में लिखा गया और 1861 में लागू हुआ था। पर आज भी इसी व्वस्था के तहत शिक्षा दी जा रही है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रद्रोह कानून के अलावा महिला अधिकारों के लिए बने वैसे कानून, जो आज पूरी तरह से अप्रचलित हो चुके हैं, में बदलाव किया जाना चाहिए। थरूर ने कहा कि ऐसा करना किसी भी देशभक्त सरकार के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि हम जिस राष्ट्रद्रोह कानून का पालन कर रहे हैं वह अंग्रेजों द्वारा भारतीयों को काबू में करने के लिए ही बनाया गया था। इतना ही नहीं सेक्शन 377 में खुद ब्रिटेन ने 1960 में खत्म कर दिया है।