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आरपीएन के जाने से गरमाई झारखंड की राजनीति, हेमन्त सरकार पर तत्काल संकट नहीं

रांची। मुख्‍यमंत्री हेमन्‍त सोरेन जब दुमका में पार्टी के क्षेत्रीय सम्‍मेलन में हिस्‍सा ले रहे थे...
आरपीएन के जाने से गरमाई झारखंड की राजनीति, हेमन्त सरकार पर तत्काल संकट नहीं

रांची। मुख्‍यमंत्री हेमन्‍त सोरेन जब दुमका में पार्टी के क्षेत्रीय सम्‍मेलन में हिस्‍सा ले रहे थे कांग्रेस के वरिष्‍ठ नेता और झारखंड कांग्रेस के प्रभारी आरपीएन सिंह धुर विरोधी विचारधारा वाली भाजपा में शामिल हो रहे थे। झारखंड में कांग्रेस के सहयोग से हेमन्‍त सोरेन की सरकार चल रही है, ऐसे में इस सरकार की सेहत पर भी देर-सवेर असर पड़ेगा। असर प्रदेश कांग्रेस की राजनीति पर भी पड़ेगा। यह बात अलग है कि जब उत्‍तर प्रदेश में ओबीसी के नेता भाजपा से एक-एक कर किनारा कर रहे थे, इसी वर्ग से आने वाले कुशीनगर के पडरौना स्‍टेट के राजकुमार आरपीएन सिंह की भाजपा को दरकार थी।

झारखंड कांग्रेस में थी अपनी हैसियत

लोग इस बात का आकलन करने में जुटे हैं कि आरपीएन सिंह को भाजपा में क्‍या दिख गया। दरअसल आरपीएन सिंह झारखंड के प्रभारी के रूप में मजबूत हैसियत में थे। दो टर्म प्रभारी रहे। 2019 के विधानसभा चुनाव में बेहतर नतीजा भी दिया। अलग राज्‍य बनने के बाद इस चुनाव में कांग्रेस ने सबसे बेहतर प्रदर्शन किया। 16 विधायक चुनकर आये। बाद में झारखंड विकास मोर्चा के दो विधायक बंधु तिर्की और प्रदीप यादव भी कांग्रेस की झोली में आ गये। चार विधायक हेमन्‍त कैबिनेट में मंत्री बने, इसका श्रेय भी आरपीएन सिंह को जाता है। विधानसभा चुनाव में बेहतर नतीजा देने का नतीजा रहा कि 2017 में प्रदेश प्रभारी बने आरपीएन सिंह पर भरोसा जाहिर करते हुए कांग्रेस ने 2020 में पुन: इन्‍हें कांग्रेस का प्रभारी बना दिया। इनकी मर्जी चली तो पुराने कांग्रेसी नेता फुरकान अंसारी का राज्‍यसभा का रास्‍ता रोक दिया और एक छोटे से अल्‍पसंख्‍यक नेता पर दांव खेल लिया। तो पूर्व केंद्रीय गृह राज्‍यमंत्री सुबोध कांत सहाय का रास्‍ता भी बंद कर दिया। यही वजह रही कि आये दिन आरपीएन सिंह इनके निशाने पर रहे। फुरकान अंसारी ने तो इन पर कांग्रेस मंत्रियों से मासिक तसीली तक का आरोप लगा दिया था। मगर इनके अंदाज के कारण ही पूर्व प्रदेश अध्‍यक्ष अजय कुमार, सरफराज अहमद, सुखदेव भगत, प्रदीप बालमुच्‍चू के साथ मनोज यादव जैसे कद्दावर नेता को पार्टी से बाहर का रास्‍ता देखना पड़ा। हालांकि अजय कुमार ससम्‍मान पुनर्वापसी हो गई। बालमुच्‍चू और सुखदेव भगत अभी भी पार्टी में वापसी की राह झांक रहे हैं। आरपीएन सिंह के एकछत्र राज का ही नतीजा था कि विधानसभा चुनाव लड़ने का भी अनुभव न रखने वाले युवा नेता राजेश ठाकुर को पिछले साल अगस्‍त महीने में प्रदेश अध्‍यक्ष की कुर्सी पकड़ा दी। असर रहा कि भीतर ही भीतर कांग्रेस के वरिष्‍ठ नेता प्रभारी के खिलाफ हो गये। आरपीएन सिंह के जाने का प्रदेश अध्‍यक्ष को आने वाले निकट समय में देखना होगा।

तत्‍काल सरकार पर कोई खतरा नहीं

हेमन्‍त सोरेन के सत्‍ता संभालते ही अपने ही बोझ से सरकार के अपदस्‍थ हो जाने की खबरें तैरने लगीं। भाजपा लगातार आक्रामक रही। सरकार गिराने की साजिश की खबरें भी सतह पर आती रहीं। कांग्रेस के तत्‍कालीन अध्‍यक्ष व सरकार में वित्‍त मंत्री रामेश्‍वर उरांव ने ही कांग्रेस के कुछ विधायकों के भाजपा के संपर्क में होने की बात कही। एक अवसर और आया जब कांग्रेस विधायक जयमंगल सिंह उर्फ अनूप सिंह ने सरकार गिराने की साजिश को लेकर प्राथमिकी दर्ज कराई। लंबा ड्रामा चला। वैसे 81 सदस्‍यीय विधानसभा में बहुमत के लिए 41 विधायकों का सीधा गणित है। झामुमो, कांग्रेस और आरजेडी गठबंधन में 30 जेएमएम, 16 कांग्रेस, और एक आरजेडी के विधायक हैं। झारखंड विकास मोर्चा के दो विधायक बंधु तिर्की और प्रदीप यादव कांग्रेस में शामिल हो गये हैं। बल्कि बंधु तिर्की को तो प्रदेश कार्यकारी अध्‍यक्ष बना दिया गया है। इस तरह कांग्रेस विधायकों की संख्‍या 18 हो जाती है। मगर सदन के भीतर दोनों की कांग्रेस सदस्‍य के रूप में मान्‍यता का मामला विधानसभा अध्‍यक्ष की अदालत में लंबित है। एक माले विधायक का भी बाहर से समर्थन है। हेमन्‍त सरकार को अपदस्‍थ करने के लिए कांग्रेस विधायकों में विभाजन करना होगा। इसके लिए कांग्रेस के 11 विधायकों की समर्थन चाहिए। कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार आरपीएन सिंह के प्रभाव वाले मुश्किल से आधा दर्जन विधायक हैं। कांग्रेस के ट्राइबल विधायक पूरी तरह सरकार के साथ एकजुट हैं। ऐसे में अगर कुछ कांग्रेसी विधायकों ने फ्लोर पर कोशिश की तो उनकी सदस्‍यता खतरे में पड़ जायेगी। वहीं 25 विधायकों वाली भाजपा के साथ जेवीएम से आये बाबूलाल मरांडी, आजसू के दो विधायक हैं, निर्दलीय और छोटे दल के तीन विधायक हैं। ऐसे में भाजपा को सरकार बनाने के लिए 10 विधायकों की जरूरत पड़ेगी। जाहिर है जोड़-घटाव और अंकगणित को अपने अनूकूल करने के लिए भाजपा को किसी बड़े ऑपरेशन की जरूरत पड़ेगी। बहरहाल हेमन्‍त सरकार दबाव में आ सकती है मगर खतरे में तत्‍काल नहीं दिखती।

आरपीएन सिंह के जाने पर प्रदेश कांग्रेस अध्‍यक्ष राजेश ठाकुर कहते हैं कि उनका फैसला ठीक नहीं है। पार्टी ने पद और प्रतिष्‍ठा दोनों दी। वे किस बात से नाराज थे वही बेहतर जानते हैं। उनके जाने से महागठबंधन की सरकार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

बड़कागांव से कांग्रेस विधायक अंबा प्रसाद ने ट्वीट कर कहा कि ''पिछले एक साल से ज्‍यादा से बीजेपी के साथ साठ-गांव कर आरपीन सिंह झज्ञरखंड की कांग्रेस जेएमएम सरकार को अपदस्‍थ कराने की कोशिश कर रहे थे। पार्टी नेतृत्‍व को लगातार इस बारे में अगाह भी किया गया था। इनके बीजेपी जाने से झारखंड का हर सच्‍चा कांग्रेसी खुश है।'' वहीं पार्टी की राष्‍ट्रीय सचिव और उत्‍तराखंड की सह प्रभारी महगामा विधायक दीपिका पांडेय सिंह जो ट्वीट किया कि ''ये सवाल पूछ रहे हैं कि आरपीएन सिंह के जाने से झारखंड सरकार पर असर पड़ेगा वो ये जान लें कि वो सिर्फ प्रभारी थे। चुनाव उनके नाम पर नहीं जीत कर आये हैं। जमीन पर चुनाव पार्टी के कार्यकर्ताओं ने लड़ा था। हम आज भी राहुल गांधी जी के सिपाही हैं आगे भी रहेंगे।

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