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उत्तर प्रदेश: छह वाम दल हुए एकजुट, विकल्प देने के लिए मिलकर लड़ेंगे चुनाव

उत्तर प्रदेश के अगले विधानसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी और कांग्रेस की ओर से महागठबंधन बनाने की कवायद के बीच छह वामपंथी दलों ने आज एक मंच से प्रदेश के मतदाताओं से विकल्प चुनने की साझा अपील की।
उत्तर प्रदेश: छह वाम दल हुए एकजुट, विकल्प देने के लिए मिलकर लड़ेंगे चुनाव

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेता क्रमश: सीताराम येचुरी और डी राजा ने लखनऊ में वाम दलों की विशाल रैली में कहा कि अलगाववाद, सांप्रदायिकता और गरीब, मजदूर, किसान, दलित तथा अल्पसंख्यक पर अत्याचार का जो सिलसिला चल रहा है, उससे मुक्ति चाहिए। विकल्प तो है लेकिन विकल्प को अमली जामा पहनाने के लिए जनता की ताकत चाहिए। वाम नेताओं ने ऐलान किया कि उत्तर प्रदेश में विपक्षी दलों की एकता की एक नई लहर की शुरूआत है। उन्होंने कहा कि इसी वजह से सभी वामपंथी दलों ने उत्तर प्रदेश के चुनाव में मिलकर जनता के बीच जाने का फैसला किया और तय किया कि वैकल्पिक रास्ता अपनाना है। रैली में माकपा और भाकपा के अलावा ऑल इंडिया फारवर्ड ब्लॉक, भाकपा-माले, आरएसपी और एसयूसीआई-कम्युनिस्ट के नेताओं ने भी हिस्सा लिया। दोनों वरिष्ठ नेताओं ने कहा कि छह वाम दलों ने आज की रैली के जरिये राज्य की जनता को संदेश दिया है कि इससे उत्तर प्रदेश और देश को नई राजनीतिक दिशा मिलेगी।

माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा कि कुछ लोग अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए सांप्रदायिकता भड़का रहे हैं। अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए वह देश की एकता और अखंडता के साथ समझौता कर रहे हैं। उन्होंने कहा, इस रैली के जरिये ये संकल्प मजबूत किया जाना चाहिए कि हम हर गांव और हर जिले में चलें तथा इस युद्ध को मजबूत करें। इस लड़ाई में ज्यादा से ज्यादा लोगों को शामिल करें। फारवर्ड ब्लॉक के राष्ट्रीय महासचिव देबब्रत बिस्वास ने कहा कि उत्तर प्रदेश में समाजवाद नहीं है बल्कि यह एक परिवार के भीतर सिमट गया है। सपा के लोग एक दूसरे से लड़ाई कर हिन्दुस्तान की पूंजीपति पार्टी भाजपा की पिछले दरवाजे से मदद करते हैं। बिस्वास ने कहा कि लोगों से जमीन, जड़ और जंगल छीना जा रहा है। हाथ से काम छीना जा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी मन की बात करते हैं लेकिन वो एकतरफा होती है। उन्होंने कहा कि मोदी केवल अपने मन की बात सुनाना चाहते हैं। फिर किसान, मजदूर और गरीब के मन की बात कौन सुनेगा। लोकतंत्र खतरे में है और देश संकट में। मोदी सरकार के समय प्रेस की आजादी पर भी हमले हो रहे हैं। 

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