विधायकों का मंत्रिमंडल विस्तार का इंतजार खत्म ही होता नहीं दिख रहा है। नवरात्र के भी तीन दिन गुजर चुके हैं। लेकिन इस बारे में अब तो सुगबुगाहट भी नहीं हो रही है। सियासी गलियारों में चर्चा है कि कैबिनेट के महज तीन पदों के लिए दावेदार विधायकों की संख्या तीस के भी पार है। ऐसे में सरकार यह समझ ही नहीं पा रही है कि चुनावी बेला में किन तीन विधायक विधायकों के सिर पर मंत्री का सेहरा सजा दिया जाए। ऐसे में विधायकों की बेकरारी और बढ़ रही है।
प्रचंड बहुमत से सरकार बनाने वाली भाजपा ने कैबिनेट में दो पद शुरू से ही खाली छोड़ दिए थे। ढाई साल तक ये कयास ही लगते रहे कि कैबिनेट एक्सपेंशन अब हुआ कि तब हुआ। प्रकाश पंत की असमय मृत्यु की वजह से मंत्री का एक पद और रिक्त हो गया। अब तीन पदों पर विधायकों की ताजपोशी के लिए कई बार समय तय होने की चर्चा रही। लेकिन हुआ कुछ भी नहीं। पिछले छह माह से कोरोना की वजह से विस्तार न होने की चर्चा रहीं। लेकिन इसी कोरोना काल में हिमाचल में एक्सपेंशन हो भी गया। फिर कहा गया कि नवरात्र में विस्तार होगा। इसमें से भी तीन रोज गुजर चुके हैं। लेकिन कोई हलचल नहीं हो रही है।
इधर, सियासी गलियारों में चर्चा में है कि मंत्रिमंडल विस्तार करके सरकार किसी भी विधायक की नाराजगी मोल लेने की स्थिति में नहीं है। वजह यह है कि मंत्रिमंडल में केवल तीन ही स्थान खाली है और दावेदारी करने वाले विधायकों की संख्या तीस के पार है। यानि एक पद के लिए दस दावेदार ताल ठोंक रहे हैं। विधायक राजेश शुक्ला, पुष्कर सिंह धामी, विशन सिंह चुफाल, बलबंत भौर्याल, श्रीमति पंत, हरबंस कपूर, महेंद्र भट्ट. स्वामी यतीश्वरानंद, खजानदास, गणेश जोशी, रितु खंडूड़ी समेत अऩ्य विधायकों के अपने-अपने अंदाज में दावे हैं। कोई सबसे वरिष्ठ होने की बात कर रहा है तो किसी का तर्क है कि उन्होंने कांग्रेस के तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत को शिकस्त दी है। किसी का कहना है कि वे दूसरी और तीसरी बार के विधायक हैं।
सूत्रों का कहना है कि ज्यादा विधायकों की दावेदारी ही मंत्रिमंडल विस्तार का सबसे बड़ा रोड़ा बन रही है। विस्तार में सरकार के सामने क्षेत्रीय और जातीय संतुलन साधने की चुनौती तो है कि विधायकों की संभावित नाराजगी से भी बचना है। माना जा रहा है कि अगर ये तमाम संतुलन साधने में सरकार को सफलता न मिली और दावेदारी इसी तरह से होती रही तो विधायकों की इंतजार शायद ही खत्म हो।