उन्होने कहा, कि इस आदेश से जंगलों में रह रहे आदिवासियों के अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है। करात ने पत्र में कहा है कि पर्यावरण मंत्रालय ने 28 मार्च को सभी मुख्य वार्डन को अनुसूचित जाति, जनजाति एवं अन्य पारंपरिक वनवासी कानून 2006 के क्रियान्वन के बारे में जो निर्देश दिया है कि वह गैरकानूनी है। उन्होंने कहा कि इस बारे में किसी तरह के निर्देश देने का अधिकार केवल आदिवासी मामलों के मंत्रालय का है।
पत्र में उन्होंने लिखा है कि यह निर्देश वन मंत्रालय की वेबसाइट पर नहीं है और इसे गुपचुप तरीके से जारी किया गया।
करात ने कहा कि इतना ही नहीं यह निर्देश 2006 के कानून के अनुरूप नहीं है। पत्र में उन्होंने कहा है कि वन्य जीव एवं बाघ अभयारण्यों की पहचान कानून के अनुरूप हो ताकि आदिवासियों के अधिकारों का उल्लंघन न हो।
उन्होंने यह भी कहा कि मैंने पहले भी भाजपा शासित राज्यों में अवैध वन नियमों तथा कैंप कानून के उल्लंघन के विरोध में भी पत्र लिखा है। करात ने लिखा है कि मैं वन अधिकार अधिनियम पर संसद की सेलेक्ट कमेटी की सदस्य थी। इस नाते मैं कई संशोधनों में शामिल रही हूं। इस लिए मेरा मानना है कि जो आदेश दिया गया है वह जंगल में रहने वाले आदिवासियों के हितों के खिलाफ है।