भारतीय जनता पार्टी ने 2019 लोकसभा चुनावों के घोषणापत्र में समान नागरिक संहिता को लागू करने का जो वादा किया था, पार्टी उसी के अनुसार कदम आगे बढ़ा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्पष्ट रुख और विपक्ष की चुनौती के बाद, सवाल यह है कि यूसीसी पर आखिर क्या फैसला लिया जाता है। इसी क्रम में अब बसपा सुप्रीमो मायावती ने कहा है कि वह भाजपा के तौर तरीकों से सहमत नहीं हैं।
उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने कहा, "हमारे देश में हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई आदि विभिन्न धर्मों के लोग रहते हैं, जिनकी धार्मिक मान्यताएं और रहन सहन का तरीका अलग है। फिर भी समान नागरिक संहिता लोगों को अलग नहीं बल्कि एकजुट और देश को मजबूत करने का ही एक तरीका है।"
उन्होंने आगे कहा, " संविधान की धारा 44 में यूसीसी बनाने का प्रयास तो वर्णित हैं मगर इसे थोपने का नहीं है। इसलिए इन सभी बातों को ध्यान में रखकर ही भाजपा को देश में यूसीसी को लागू करने के लिए कोई कदम उठाना चाहिए था। हमारी पार्टी यूसीसी को लागू करने के खिलाफ नहीं है बल्कि भाजपा और इनकी सरकार द्वारा इसे देश में लागू करने के तरीके से सहमत नहीं है।"
इससे पहले राज्यसभा में समान नागरिक संहिता के समर्थन के सवाल पर केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने कहा, " हमारे पास बहुमत है। मुझे लगता है कि अन्य पार्टी के कई ऐसे नेता हैं जो चाहते हैं कि देश को जोड़ना चाहिए। मुझे लगता है कि कई पार्टी भाजपा का समान नागरिक संहिता पर समर्थन करेंगी। इसके लिए हमें क्रॉस पार्टी समर्थन भी मिलेगा।"
मंगलवार को प्रधानमंत्री मोदी ने भोपाल में मेरा बूथ- सबसे मजबूत कार्यक्रम में कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा था कि एक घर दो कानूनों से नहीं चल सकता है, एक घर एक ही कानून से चलेगा। उन्होंने कहा, "समान नागरिक संहिता संविधान का हिस्सा है।"
दरअसल, समान नागरिक संहिता व्यक्तिगत कानून बनाने और लागू करने का एक प्रस्ताव है जो सभी नागरिकों पर उनके धर्म, लिंग और यौन अभिविन्यास की परवाह किए बिना समान रूप से लागू होगा। यह संहिता संविधान के अनुच्छेद 44 के अंतर्गत आती है, जिसमें कहा गया है कि राज्य पूरे भारत में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा।