पश्चिम बंगाल चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और सत्तारूढ़ दल तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के बीच कांटे की टक्कर है। लेकिन, इस बार मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की राह भी आसान नहीं हैं। भाजपा लगातार अपना चुनावी कार्ड खेलकर ममता को पटखनी देने में लगी हुई है। अब ममता इसकी काट निकालने के लिए अपने पुराने दुश्मन के करीब जाती दिख रही हैं। कभी वामदलों को उखाड़ ममता ने सत्ता का स्वाद करीब 34 साल के संघर्ष के बाद पाया था। लेकिन, आज फिर सत्ता पाने के लिए और बीजेपी को हराने के लिए ममता लेफ्ट के नजदीक जा रही हैं। वो इन दलों से अपील कर रही हैं कि भाजपा को रोकने के लिए साथ लड़ना होगा।
इस साल के जनवरी में ममता ने लेफ्ट से बीजेपी के खिलाफ टीएमसी को समर्थन देने की अपील की थी। एक बार फिर से बुधवार को पार्टी द्वारा जारी किए गए चुनावी घोषणापत्र जारी करने के बाद उन्होंने एक बार फिर इसे दोहराया है। ममता ने कहा, "लेफ्ट मौजूदा चुनावों में जीत कर सत्ता में नहीं आ सकता। इसलिए उनके समर्थकों को लेफ्ट फ्रंट का समर्थन कर अपना वोट बर्बाद नहीं करना चाहिए। इसके बदले उन्हें बीजेपी को हराने के लिए टीएमसी को वोट देना चाहिए।" ममता की इस अपील के बाद राजनीतिक हलकों में सवाल उठ रहा है कि क्या ममता की राह बीजेपी की वजह से आसान नहीं है।"
दरअसल, जमीन अधिग्रहण के खिलाफ सिंगूर आंदोलन 2006 में शुरू हुआ था। सत्ता के लिए संघर्ष कर रही ममता बनर्जी के लिए ये आंदोलन बड़ा मौका साबित हुआ। ममता ने इस बहाने मौजूदा वाम सरकार सीपीएम को निशाने पर लिया। वाम सरकार ने ही टाटा नैनो प्लांट के लिए जमीन अधिग्रहण करवाया था। आंदोलन दो साल तक चलता रहा। जिसके बाद 2008 में टाटा ने सिंगूर परियोजना रद्द कर दी और नैनो प्लांट गुजरात में शिफ्ट हो गया। ये आंदोलन वाम सरकार के पतन का कारण बना। सिंगूर आंदोलन के साथ-साथ नंदीग्राम आंदोलन ने भी टीएमसी को सत्ता तक पहुंचने की सीढ़ी साबित हुई। उस वक्त वाम की अगुवाई वाली सरकार ने ‘स्पेशल इकनॉमिक जोन’ नीति के तहत नंदीग्राम में एक केमिकल हब की स्थापना करने की अनुमती दी थी। इसके खिलाफ ममता ने हल्ला बोला था। सत्तारूढ़ पार्टी ने इस आन्दोलन को ‘औद्योगीकरण के खिलाफ’ कहा था। इतना ही नहीं, ‘हल्दिया डेवलपमेंट अथॉरिटी’ ने भूमि अधिग्रहण के लिए नोटिस जारी कर दिया। जिसके बाद हालात बिगड़ गए। 14 मार्च 2007 को एक ‘जॉइंट ऑपरेशन’ में करीब 14 लोगों की हत्या कर दी गई थी। जिसके बाद ममता समेत राज्य के अन्य बुद्धिजीवियों के तेवर और सख्त हो गए और साल 2011 के विधानसभा चुनाव में लेफ्ट की 34 वर्षों के शासन को समाप्त करने में टीएमसी सफल रही। ममता के मां, माटी, मानुष की सरकार का सपना साकार हो गया।
स्पष्ट है, वाम दल से टीएमसी की पुरानी दुश्मनी रही है। ऐसे में राजनीतिक गलियारों में सवाल उठने लगे हैं कि क्या ममता बनर्जी को भाजपा से मुकाबला करने में कठिनाइओं का सामना करना पड़ रहा है। क्या भाजपा उन्हें कड़ी चुनौती दे रही हैं। ऐसा यदि नहीं होता तो ममता लेफ्ट समर्थकों से समर्थन की अपील नहीं करती। राज्य में आठ चरणों में विधानसभा चुनाव होने हैं।