भारत में मिनिमम बेसिक इनकम गारंटी स्कीम या न्यूनतम आधारभूत आय गारंटी योजना की चर्चा पिछले काफी समय से हो रही है। आज कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने इसके तहत मिलने वाली आर्थिक मदद का वादा किया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस वादा करती है कि अगर हम जीते तो भारत के 20 फीसदी गरीब परिवारों को सालाना 72,000 रुपए उनके बैंक खातों में सीधे दिए जाएंगे। उन्होंने कहा, ‘इस स्कीम से 5 करोड़ परिवार और 25 करोड़ लोग सीधे लाभान्वित होंगे। सारी गणना कर ली गई है। इस तरह की योजना पूरे विश्व में कहीं नहीं है।'
क्या है मिनिमम बेसिक इनकम स्कीम
मिनिमम बेसिक इनकम स्कीम मूल रूप से एक सामाजिक सुरक्षा योजना है जो किसी देश में गरीबी और बेरोजगारी को दूर करने का एक तरीका है। इसके तहत लाभार्थी नागरिकों को हर महीने एक निश्चित राशि मुहैया कराई जाती है ताकि वे अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा कर सकें यानी लोगों को बिना कोई काम किए और बिना शर्त एक निश्चित रकम सरकार की तरफ से मिल जाएगी।
देश में उदारीकरण लागू होने के बाद भी आज देखें तो गरीबी और अमीरी का फासला बढ़ा ही है। सरकार की तमाम जनकल्याणकारी योजनाओं के बावजूद देश को गरीबी, भुखमरी और बेरोजगारी जैसी समस्याओं से निजात नहीं मिल पाई है इसलिए ऐसी योजनाओं को लागू करने पर विचार हो रहा है जिससे गरीबी को जड़ से मिटाया जाए।
मिनिमम इनकम किस तरीके से लागू होगी, कितनी राशि दी जाएगी, कितने लोगों इसके दायरे में आएंगे, इनकी कैटगरी क्या होगी, क्या इसका आधार सामाजिक और आर्थिक होगा, इसका कोई सार्वभौमिक पैमाना नहीं है। समय, देश और सरकार के हिसाब से यह बदल सकता है। हाल ही में लोकसभा में बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने मिनिमम इनकम का मसला उठाते हुए कहा था कि देश में गरीबी हटाने के लिए 10 करोड़ गरीब परिवारों के खाते में 3,000 रुपये डाले जाने चाहिए।
क्या है कांग्रेस का क्राइटेरिया
राहुल गांधी ने कहा कि कांग्रेस चाहती है कि हर परिवार की आमदनी कम से कम 12 हजार रुपए महीना हो। उन्होंने कहा कि लोग पूछते हैं कि इसकी लाइन क्या होगी? इसकी लाइन 12 हजार रुपए महीना होगी। साथ ही उन्होंने कहा कि अगर किसी परिवार की आय 6 हजार है तो कांग्रेस की सरकार बनने पर उसे 6 हजार रुपए और मिलेंगे। राहुल ने यह भी स्पष्ट किया कि पहले ये योजना पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर चलाई जाएगी, उसके बाद पूरे देश में लागू की जाएगी।
राहुल ने कहा, 'कांग्रेस पार्टी इस मामले को पिछले 4-5 महीनों से स्टडी कर रही है। दुनिया के बेहतर अर्थशास्त्रियों के जरिए पूरे विस्तार से इसका विश्लेषण किया है। ये 'fiscally prudent scheme' होगी। इसको हम चरणबद्ध तरीके से लागू करेंगे। पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम इस मामले पर काम कर रहे हैं।'
इन देशों में है ऐसी सुविधा
विश्व के कई देशों में सरकारें इसी तरह की सुविधाएं दे रही हैं जिसमें ब्राजील, कनाडा, डेनमार्क, फिनलैंड, जर्मनी, आयरलैंड जैसे देश शामिल हैं।
योजना का मकसद
भारत इस साल वैश्विक भूख सूचकांक (ग्लोबल हंगर इंडेक्स) में 119 देशों की सूची में 103वें नंबर पर आया था। वहीं मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) की 189 देशों की सूची में 130वें नंबर पर है। इसके अलावा स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में भारत 195 देशों की सूची में 145वें स्थान पर है। जो देश के लोगों के औसत जीवन स्तर को बयां करता है।
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) और ऑक्सफोर्ड गरीबी और मानव विकास पहल (ओपीएचआई) द्वारा संयुक्त रूप से तैयार 2018 बहुआयामी वैश्विक गरीबी सूचकांक (एमपीआई) रिपोर्ट को देखें तो भारत में अब भी 28 फीसदी लोग गरीबी में जी रहे हैं।
रिपोर्ट में कहा गया था, 'भारत में सबसे ज्यादा गरीबी चार राज्यों में है हालांकि भारत भर में छिटपुट रूप से गरीबी मौजूद है, लेकिन बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में गरीबों की संख्या सर्वाधिक है। इन चारों राज्यों में पूरे भारत के आधे से ज्यादा गरीब रहते हैं, जो कि करीब 19.6 करोड़ की आबादी है।'
योजना का नकारात्मक पहलू
इस योजना को लागू करने के कई नकारात्मक प्रभाव हो सकते हैं। लोगों के हाथ में पैसे आने से उनकी क्रय शक्ति जरूर बढ़ेगी लेकिन इससे एक खास वर्ग में रोष भी प्रकट होगा। जो व्यक्ति छोटे कामों को कर उतनी कमाई कर रहा है (जितना यूबीआई के तहत मिले तो), ऐसे में किसी को बिना काम किए इतने पैसे उपलब्ध कराना विरोधाभास पैदा करेगा। इस योजना को व्यावहारिक तौर पर भारत में लागू करना एक बहुत बड़ी चुनौती है, क्योंकि चुनाव से पहले इसे लोकलुभावन योजना करार दिया जा रहा है।
इस योजना को लागू करने की चुनौती यह भी है कि सरकार को बड़े संसाधन की जरूरत होगी। मौजूदा सरकार बजट में शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत चीजों पर जब जीडीपी का क्रमश: 3.48 और 2.2 फीसदी खर्च कर रही है तो सभी को आय प्रदान करना मुश्किल लगता है।
अनुमान के मुताबिक, अगर सभी गरीबों के बीच यूबीआई लागू की जाती है तो यह जीडीपी का 10 फीसदी से भी ज्यादा होगा जो अभी सरकार द्वारा दी जा रही हर तरह की सब्सिडी का करीब दोगुना होगा। साथ ही यह योजना बेरोजगारी का हल नहीं है बल्कि संभव है कि इससे बेरोजगारी में और इजाफा हो। मुफ्त में हाथ में पैसे आने से लोगों में काम करने की प्रवृत्ति कम होगी।