मोदी सरकार में जिन 9 नए चेहरों को मंत्री बनाया गया है, उनमें चार पूर्व चर्चित नौकरशाह भी शामिल हैं। ये पूर्व अफसर हैं मुंबई पुलिस के पूर्व कमिश्नर और बागपत से सांसद सत्यपाल सिंह, पूर्व गृह सचिव और बिहार के आरा से सांसद आरके सिंह, भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी रहे हरदीप सिंह पुरी और केरल के पूर्व आईएएस अधिकारी अल्फोंस कन्नान्थानाम।
इनके लंबे प्रशासनिक अनुभव और अपने कार्यक्षेत्र में विशेषज्ञता को देखते हुए मंत्रिमंडल में जगह दी गई है। इससे जाहिर है कि सरकार इन लोगों के अनुभव और विशेषज्ञता का लाभ उठाना चाहती है। खासतौर पर उन मंत्रालयों में जहां सरकार का काम रंग नहीं ला पा रहा है। इन मंत्रालयों के प्रदर्शन को पीएम मोदी पुराने नौकरशाहों की मदद से सुधारना चाहते हैं।
आईये, जानते हैं कि मंत्री बनने वाले इन पूर्व नौकरशाहों की क्या खूबियां हैं जो इन्हें भारत सरकार के मंत्री पद तक पहुंचाने में मददगार रहीं
1) सत्यपाल सिंह (62)
मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर सत्यपाल सिंह 1980 बैच के महाराष्ट्र काडर के आईपीएस अधिकारी रहे हैं। नब्बे के दशक में वह मुंबई पुलिस के ज्वाइंट कमिश्नर (क्राइम) थे। मुंबई बम धमाकों के बाद उन्हें छोटा राजन, छोटा शकील और अरुण गवली के गैंग की कमर तोड़ने का श्रेय दिया जाता है। हालांकि, उसी दौरान मुंबई पुलिस में दया नायक, विजय सालस्कर और प्रदीप शर्मा जैसे एनकाउंटर स्पेशलिस्ट भी उभरे।
2014 के लोकसभा चुनाव से सत्यपाल सिंह भाजपा में शामिल हो गए थे और राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष अजित सिंह को हराकर बागपत से सांसद बने थे। तभी से उनके मंत्रिमंडल में शामिल होने के कयास लगाए जा रहे थे, लेकिन उनकी जगह मुजफ्फरनगर से सांसद संजीव बालियान को मौका मिला। मंत्री बनने के पीछे सत्यापाल सिंह की साफ छवि और प्रशासनिक अनुभव के अलावा पश्चिमी यूपी के जाट समीकरण को भी अहम माना जा रहा है।
2) हरदीप सिंह पुरी (65)
हरदीप सिंह पुरी 1974 बैच के भारतीय विदेश सेवा के पूर्व अधिकारी हैं और विदेश मामलों में 40 साल से ज्यादा का अनुभव रखते हैं। वे संयुक्त राष्ट्र भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। ब्राजील और ब्रिटेन में भारत का राजदूत रहने के अलावा रक्षा मंत्रालय में भी अहम पद पर रहे हैं। उन्हें विदेश मामलों का बड़ा जानकार माना जाता है। सरकार विदेश और रक्षा मामलों में उनके अनुभव का सरकार लाभ उठाना चाहेगी। खासतौर पर आजकल चीन, कश्मीर और पाकिस्तान के मुद्दों पर केंद्र सरकार को अनुभवी लोगों की जरूरत है।
3) अल्फोंस कन्ननथानम (64)
अल्फोंस कन्ननथानम केरल में भाजपा का प्रमुख चेहरा माने जाते हैं। 1979 बैच के पूर्व आईएएस अधिकारी अल्फोंस कन्ननथानम 1992-97 के बीच दिल्ली में डीडीए के कमिश्नर थे। तब उन्होंने बड़े पैमाने पर अवैध इमारतों का अतिक्रमण हटवाने का मुश्किल काम किया था। उन्हें दिल्ली में करीब 15 हजार अवैध इमारतों को गिराने और करीब 10 हजार करोड़ रुपये की जमीन कब्जाेें से मुक्त कराने का श्रेय जाता है। तब उन्हें बुलडोजर मैन या डिमॉलिशन मैन भी कहा गया। लेकिन इससे पहले 1989 में अल्फोंस ने केरल के कोट्टायम को देश का पहला पूर्ण साक्षर जनपद बनवाने में भी अहम भूमिका निभाई। तब वे कोट्टायम के जिलाधिकारी थे। उनकी छवि सख्त प्रशासक की रही है।
अल्फोंस ने 2006 में उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर वाम मोर्चे के समर्थन से कोट्टायम विधानसभा का चुनाव लड़ा था और जीत गए थे। लेकिन 2011 में भाजपा में शामिल होकर सभी को चौंका दिया। नितिन गडकरी के नजदीक माने जाने वाले अल्फोंस भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य हैं। उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल किए जाने के पीछे उनकी प्रशासनिक उपलब्धियों और सख्त प्रशासक की छवि का हाथ है। इसे केरल में भाजपा की भावी रणनीति से जोड़कर भी देखा जा सकता है।
4) आरके सिंह (64)
1980 बैच के आईएएस अधिकारी आरके सिंह भारत सरकार के गृह सचिव रहे हैं। वे भी 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हुए थे और आरा से लोकसभा का चुनाव जीतकर आए। आरके सिंह वही अधिकारी हैं, जिन्होंने 1990 में रथ यात्रा निकाल रहे लाल कृष्ण आडवाणी को लालू सरकार के आदेश पर समस्तीपुर में गिरफ्तार किया था। बाद में जब वाजपेयी सरकार में आडवाणी गृह मंत्री बने तो आरके सिंह को गृह मंत्रालय में ज्वाइंट सेक्रेटरी बनाया गया। हालांकि, भाजपा में शामिल होने के बाद कई मुद्दों पर आरके सिंह पार्टी के प्रतिकूल राय जाहिर करते रहे हैं। खासकर बिहार में भाजपा की हार के बाद बाद उनके बयान खासे चर्चित हुए थे।