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साझा विरासत के बहाने विपक्षी दलों ने कराया ताकत का अहसास

जेडीयू के पूर्व अध्यक्ष शरद यादव की ओर से आयोजित ‘साझा विरासत बचाओ सम्मेलन’ में विपक्षी दलों ने एकजुट होकर अपनी ताकत का अहसास कराया। सम्मेलन में जुटे विपक्षी नेताओं ने गुजरात विधानसभा तथा देश के अगले आम चुनाव के लिए विघटनकारी ताकतों को रोकने के लिए ठोस रणनीति बनाने पर जोर दिया। सम्मेलन में विपक्षी दलों के नेता जिस तरह से जुटे उसे सियासी हलकों में अहम माना जा रहा है।
साझा विरासत के बहाने विपक्षी दलों ने कराया ताकत का अहसास

सम्मेलन में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी, पूर्व पीएम मनमोहन सिंह, सीपीआई(एम) नेता सीताराम येचुरी, गुलामनबी आजाद, फारूक अब्दुल्ला, अहमद पटेल, रामगोपाल यादव, अली अनवर, टीएमसी के सांसद सुखेंदु शेखर राय, जयंत चौधरी, तारिक अनवर, सांसद बाबू लाल मरांडी, किसान नेता वी एम सिंह, डी राजा, जद (एस) के कुंवर दानिश अली, बसपा के भीमसिंह, वीर सिंह, प्रकाश अांबेडकर सरीखे नेता शामिल हुए। लग रहा था मानो पूरा विपक्ष एक साथ खड़ा हो गया है। विपक्षी दलों के नेताओं ने एक स्वर से इस बात पर चिंता जताई कि भाजपा जिस तरह से पुरखों के सौहार्द की विरासत को तोड़ रही है उससे मुल्क को खतरा हो सकता है।

साझा विरासत के बहाने विपक्षी दलों ने  गुजरात विधानसभा और 2019 के आम चुनाव के लिए रणनीति बनाने का सुझाव दिया। नेताओं ने कहा कि इसके लिए एक छोटी कमेटी बनाई जा सकती है जो मुद्दों को तय कर आगे का रास्ता तय करेगी। हाल में अहमद पटेल की जीत को लेकर शरद यादव ने कहा कि इस जीत से विपक्ष के हौसले बढ़े हैं और विरासत को नुकसान पहुंचाने वाली ताकतों को रोकने के लिए विपक्ष के लिए एकजुट  होना लाजमी है। अगर विपक्ष के नेता एकजुट हो जाएं तो कोई ताकत आरएसएस  के मंसूबे पर विराम लगाने से नहीं रोक सकती।

ज्यादातर नेताओं ने केंद्र की भाजपा सरकार पर देश में डर और नफरत पैदा करने का आरोप भी लगाया। उनका कहना था कि देश में दो भारत का निर्माण हो रहा है एक चमकता और दूसरा तरसता। केवल 15-20  उद्योगपतियों के हित में सरकार काम कर रही है। प्रधानमंत्री रोज बयान बदल रहे हैं। हिंदू राष्ट्र के नाम पर विरासत को खत्म करना ही मकसद रह गया है। सरकार की नीतियों के खिलाफ विपक्ष की लामबंदी जरूरी है। देश के संविधान को बदलने की साजिश रची जा रही है। लेकिन विपक्षी सरकार के मंसूबों को कामयाब नहीं होने देंगे।

 

 

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