अनुसूचित जाति एवं जनजाति अत्याचार निवारण कानून के पुराने स्वरूप को लाने वाला बिल सोमवार को लोकसभा में सर्वसम्मति से पारित हो गया। सुप्रीम कोर्ट द्वारा कुछ सख्त प्रावधानों को हटाए जाने के बाद उन्हें फिर से बहाल करने के लिए यह बिल लाया गया है।
सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत ने सदन में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण संशोधन विधेयक 2018 पर चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि इस बिल के कानून बनने के बाद दलितों पर अत्याचार के मामले दर्ज करने से पहले पुलिस को किसी की अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं होगी और मुजरिम को अग्रिम जमानत भी नहीं मिलेगी। प्राथमिकी दर्ज करने से पहले पुलिस जांच की भी जरूरत नहीं पड़ेगी और पुलिस को सूचना मिलने पर तुरंत प्राथमिकी दर्ज करनी पड़ेगी।
गहलोत ने कहा कि मोदी सरकार ने कार्यभार संभालते समय पहले संबोधन में इस बात का संकल्प लिया था कि उनकी सरकार गरीबों, दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों को समर्पित होगी। इन चार साल में अनेक ऐसे अवसर आए हैं जिसमें यह संकल्प साफ दिखाई देता है। उन्होंने कहा कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर कर पदोन्नति में आरक्षण को सुनिश्चित कराया है। गहलोत ने प्रधानमंत्री उस संकल्प को भी दोहराया कि आरक्षण को कोई छीन नही सकता है। इस बिल को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को ही मंजूरी दी थी
सुप्रीम कोर्ट गत 20 मार्च को यह निर्धारित किया था कि किसी अपराध के संबंध में प्रथम इत्तिला रिपोर्ट रजिस्टर करने में पहले पुलिस उप अधीक्षक द्वारा यह पता लगाया जाए कि क्या कोई मामला बनता है, तब एक प्रारंभिक रिपोर्ट दर्ज की जाएगी। ऐसे अपराध के संबंध में किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी से पहले किसी समुचित प्राधिकारी का अनुमोदन प्राप्त किया जाएगा।
इस फैसले के बाद अप्रैल में देशव्यापी आंदोलन हुआ था, जिसमें दस से ज्यादा लोगों की जान गई थी और करोड़ों रुपये की संपत्ति नष्ट कर दी गई थी।