ब्यूरोक्रेट्स और राष्ट्रीय अल्प संख्यक आयोग के पूर्व चेयरमैन वजाहत हबीबुल्लाह का कहना है कि सरकार ने संविधान का अनुच्छेद 370 हटाने के लिए जो तरीका हटाया है, वह कमजोर प्रतीत होता है। उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। उन्होंने यह भी कहा है कि सरकार को इतने महत्वपूर्ण और संवेदनशील मसले पर वहां की जनता से राय मशविरा करके ही कोई फैसला लेना चाहिए था।
संविधान संशोधन की वैधता साबित करनी होगी
हबीबुल्लाह ने आउटलुक के साथ बातचीत में कहा कि अनुच्छेद 370 हटाने के लिए जो तरीका अपनाया है, उस पर सवाल उठ सकता है। इसी प्रक्रिया को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दिए जाने की संभावना है। हालांकि उम्मीद की जा सकती है कि सरकार ने इस बिंदु पर भी गौर कर लिया होगा। फिर भी अंतिम तौर पर सुप्रीम कोर्ट की कसौटी पर ही प्रक्रिया की वैधता साबित होगी। सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले को चुनौती दिए जाने की पूरी आवश्यकता है।
निलंबित विधानसभा के अधिकार राज्यपाल के पास
सरकार के इस निर्णय में जम्मू कश्मीर विधानसभा की भूमिका के सवाल पर हबीबुल्लाह ने कहा कि चूंकि विधानसभा इस समय निलंबित है, इसलिए विधानसभा के सभी अधिकार राज्यपाल में निहित हैं। अगर विधानसभा सक्रिय होती तो इस संशोधन के लिए विधानसभा की मंजूरी भी आवश्यक होती।
आम लोगों पर कोई खास असर नहीं
अनुच्छेद 370 हटने से आम लोगों पर असर के सवाल पर हबीबुल्लाह ने कहा कि आज इसके हटने का आम लोगों के लिए खास मायने नहीं है। पहले भी संशोधन करके कई बार अनुच्छेद में प्रदत्त अधिकार खत्म किए गए है। आज इस अनुच्छेद में कोई खास अधिकार नहीं बचे हैं।
35ए हटने से जमीन के स्वामित्व का विशेषाधिकार खत्म
उन्होंने कहा कि 370 हटने से तो आम लोगों पर कोई खास असर नहीं है लेकिन इससे जुड़े अनुच्छेद 35ए के हटने से अवश्य आम लोगों पर असर पड़ेगा। कश्मीर के लोगों को जमीन का विशिष्ट मालिकाना हक मिला था। अनुच्छेद 370 हटने के साथ ही 35ए भी स्वतः की खत्म हो गया। इससे कश्मीर के लोगों का यह विशेष अधिकार खत्म हो गया। इसके हटने से देश के दूसरे राज्यों के लोग जम्मू कश्मीर में जमीन खरीद का अधिकार मिल गया है।
राज्य के विभाजन से प्रशासन में भारी बदलाव
मुख्य सूचना आयुक्त रहे हबीबुल्लाह ने कहा कि जम्मू कश्मीर को विभाजित करने के सरकार के फैसले से वहां के प्रशासनिक तंत्र में भारी बदलाव होगा। सरकार के अनुसार लद्दाख और कश्मीर केंद्र शासित राज्य होंगे, जहां केंद्र सरकार का शासन चलेगा जबकि जम्मू राज्य होगा, जहां विधानसभा होगी।
जनता की राय ली जाती तो अच्छा माहौल बनता
उन्होंने कहा कि कश्मीर का जहां तक सवाल है, सरकार के इस फैसले को वहां के लोग पसंद नहीं करेंगे। उनका मानना है कि अगर सरकार राज्य के शासन में किसी तरह का बदलाव करती है तो उसे लोगों की राय अवश्य लेनी चाहिए। ऐसा करना से राज्य में अच्छा माहौल बन सकता था। एकतरफा तौर पर कदम उठाना लोकतंत्र के विरुद्ध है।