जेठमलानी भले ही पूरी जिंदगी कांग्रेस विरोध की राजनीति करते रहे मगर कहा जाता है कि लंबे समय तक उनकी दोस्ती किसी से नहीं टिकती। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री रहे मगर जब देश के तब के प्रधान न्यायाधीश ए.एस. आनंद और अटार्नी जनरल सोली सोराबजी से उनके मतभेद के बाद वाजपेयी ने उनका इस्तीफा मांग लिया तो जेठमलानी 2004 में वाजपेयी के खिलाफ लखनऊ से चुनाव लड़ गए। कमाल की बात, जिस कांग्रेस से जिंदगी भर लड़े उसी कांग्रेस ने उनके पक्ष में वहां से अपना उम्मीदवार खड़ा नहीं किया। एक समय लालकृष्ण आडवाणी उनके अच्छे दोस्त थे मगर जब मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने की बात आई तो जेठमलानी ने आडवाणी को भी विरोध का पत्र लिख मारा जो कि मीडिया की सुर्खियां भी बना। आरंभ में मोदी समर्थक रहे जेठमलानी बाद में उनके विरोध में भी बोलने लगे।
बॉम्बे में कभी स्मगलरों के वकील पुकारे जाने वाले जेठमलानी ने ऐसे मुकदमों में हाथ डाला जिनमें मीडिया की सुर्खियां बनने की क्षमता थी। उदाहरण के लिए इंदिरा गांधी के हत्यारों का केस, चारा घोटाले में लालू यादव का केस और ऐसे ही न जाने कितने मुकदमें जेठमलानी के खाते में हैं। पिछली बार जेठमलानी को भाजपा ने राज्यसभा में भेजा था मगर बीच में पार्टी विरोधी गतिविधियों के कारण उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया जिसके कारण इस बार उन्हें भाजपा से टिकट मिलने की उम्मीद नहीं थी। मगर उन्होंने लालू यादव को साध लिया और आज 93 वर्ष से करीब साढ़े तीन महीने कम की उम्र में राम जेठमलानी ने राज्यसभा का नामांकन किया है। उनकी जीत तय है क्योंकि बिहार से राष्ट्रीय जनता दल के दो उम्मीदवारों का चयन तय है और उनके अलावा सिर्फ लालू प्रसाद की बड़ी बेटी मीसा भारती ने नामांकन किया है। छह वर्ष का कार्यकाल पूरा करने पर जेठमलानी करीब 99 वर्ष की उम्र तक राज्यसभा के सदस्य रहेंगे। संभवतः यह भी अपने आप में एक रिकार्ड ही होगा।