लोकसभा में बीजद के भृतुहरि मेहताब ने शून्यकाल में यह मुद्दा उठाते हुए कुछ प्राचीन दस्तावेजों के हवाले से कहा कि महाराजा रंजीत सिंह ने कोहिनूर हीरे को पुरी के जगन्नाथ मंदिर को भेंट देने की इच्छा व्यक्त की थी। उन्होंने कहा कि एंग्लो सिख युद्ध के बाद अंग्रेजों ने महाराजा रंजीत सिंह के 11 वर्षीय बेटे पर दबाव डालकर यह बेशकीमती हीरा ले लिया और इसे उपहार का नाम दिया। अधिकतर दलों के सदस्यों ने महताब की बात का समर्थन किया लेकिन भाजपा की मीनाक्षी लेखी ने आपत्ति जताते हुए कहा कि सरकार ने उच्चतम न्यायालय में अभी ऐसा कोई रूख नहीं रखा है और उन्होंने मीडिया पर आरोप लगाया कि उसने तथ्यों को तोड़मरोड़ कर पेश किया।
खबरों के अनुसार सॉलिसिटर जनरल रंजीत कुमार ने पिछले दिनों उच्चतम न्यायालय में इस मामले में सरकार का पक्ष रखते हुए कहा था कि कोहिनूर हीरे को ब्रिटिश शासकों ने न तो जबरन लिया था और न ही इसे चुराया था बल्कि पंजाब के शासकों ने इसे ईस्ट इंडिया कंपनी को उपहार में दिया था। बीजद सदस्य ने हालांकि इस रूख को गलत बताते हुए कहा कि सरकार ने शीर्ष अदालत में केवल एक तकनीकी रूख रखा है। इसकी बजाय उसे अदालत में ही नहीं बल्कि ब्रिटेन के समक्ष भी यह रूख अपनाना चाहिए कि यह हीरा भारत को वापस सौंपा जाए। उन्होंने कहा कि महाराजा रंजीत सिंह ने अमृतसर के स्वर्णमंदिर और वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर में स्वर्ण पतर चढ़वाए थे और कोहिनूर हीरा भी वह जगन्नाथ पुरी मंदिर को देना चाहते थे।
सत्तारूढ़ राजग में शामिल शिरोमणि अकाली दल के प्रेम सिंह चंदूमाजरा ने कहा कि उच्चतम न्यायालय में सरकार ने कोहिनूर हीरे को लेकर जो रूख अपनाया है वह निंदनीय है। उन्होंने कहा कि 11 साल का बच्चा कोहिनूर को ईस्ट इंडिया कंपनी को तोहफे में कैसे दे सकता है? उन्होंने कहा कि अंग्रेजों ने रंजीत सिंह के बेटे के साथ विश्वासघात कर यह हीरा हासिल किया था। सदन में विभिन्न दलों के सदस्यों ने खड़े होकर महताब और चंदूमाजरा की मांग से अपने आप को संबद्ध किया।