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सीवीसी, सीबीआई की भ्रष्टाचार रोधी शाखा हो लोकपाल के दायरे मेंः संसदीय समिति

भ्रष्टाचार रोधक विभिन्न सरकारी इकाइयों के कार्यों में परस्पर दोहराव को देखते हुए संसदीय समिति ने आज केंद्रीय सतर्कता आयोग और सीबीआई की भ्रष्टाचार रोधी शाखा को सीधे लोकपाल की कमान और नियंत्रण में लाए जाने की सिफारिश की। समिति ने इसके साथ ही लोकपाल के अध्यक्ष और सदस्यों के चयन में लोकसभा में कोई मान्य नेता विपक्ष नहीं होने की सूरत में सदन में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता को चयन समिति में बतौर सदस्य शामिल करने का भी सुझाव दिया।
सीवीसी, सीबीआई की भ्रष्टाचार रोधी शाखा हो लोकपाल के दायरे मेंः संसदीय समिति

 

यदि संसद में इस सिफारिश को स्वीकार कर लिया जाता है तो इससे प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली लोकपाल चयन समिति में कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को शामिल किए जाने का रास्ता साफ हो जाएगा। संसद के दोनों सदनों में आज पेश की गई रिपोर्ट में कहा गया है,  समिति का यह विचार है कि सीवीसी और सीबीआई की संस्थाओं (जहां तक इनकी भ्रष्टाचार निरोधक कार्रवाई का संबंध है) को पूरी तरह लोकपाल के साथ एकीकृत किया जाए और इसमें भ्रष्टाचार रोधी निगरानी संस्था लोकपाल को शीर्ष स्तर पर रखा जाए एवं सीवीसी और सीबीआई (भ्रष्टाचार रोधी शाखा) सीधे इसके नियंत्रण और कमान में कार्य करें।

समिति ने कहा है, लोकपाल और सीवीसी के कृत्यों को स्पष्ट रूप से बताया जाए तथा सीवीसी और लोकपाल के कृत्यों तथा शक्तियों के बीच परस्पर दोहराव का समाधान किया जाए। लोकपाल को इसके बदले में जांच, अन्वेषण तथा अभियोजन के लिए इन संगठनों का उपयोग करना चाहिए। कांग्रेस सदस्य ई.एम. सुदर्शन नचियप्पन की अध्यक्षता वाली कार्मिक, लोक शिकायत, विधि एवं न्याय संबंधी संसद की स्थायी समिति ने महसूस किया है कि कर्मचारियों और नेताओं समेत लोक सेवकों की संपत्ति तथा देनदारियों का सार्वजनिक खुलासा जरूरी नहीं है।

सरकारी कर्मचारियों द्वारा संपत्ति और देनदारियों की घोषणा के संबंध में समिति ने मौजूदा नियमों की समीक्षा की सिफारिश करते हुए कहा है कि ये नियम शंका और अविश्वास की औपनिवेशिक सोच को दर्शाते हैं। समिति ने कहा कि इन नियमों को इस समय भ्रष्टाचार के खिलाफ एक सुरक्षा चक्र के बजाय सरकारी कर्मचारियों को परेशान करने के लिए अधिक इस्तेमाल किया जा रहा है। ऐसी घोषणाओं के लिए प्रावधानों में समरूपता का सुझाव देते हुए समिति ने सिफारिश की है कि किसी लोक सेवक की उसके ज्ञात स्रोतों से अधिक संपत्ति तथा देनदारियों का पता लगाने के लिए डिजिटल निगरानी साफ्टवेयर का प्रयोग किया जा सकता है।

लोकपाल और लोकायुक्त एवं अन्य संबंधित विधि (संशोधन) विधेयक 2014 को पिछले वर्ष 22 दिसंबर को जांच पड़ताल के लिए समिति को भेजा गया था। रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि लोकपाल के लिए एक एकीकृत ढांचा होना चाहिए और इसका मुख्यालय यहां सीवीसी मुख्यालय के भीतर स्थापित होना चाहिए। खोज और चयन समितियों के संबंध में संसदीय समिति ने कहा है कि यदि कोई स्थान रिक्त है तो उसके भरे जाने तक कोई फैसला नहीं लिया जाना चाहिए। खोज और चयन समिति में कोई स्थान रिक्त होने पर उसे तुरंत नहीं भरे जाने का उसे कोई कारण नजर नहीं आता। समिति इसी के अनुसार सिफारिश करती है कि विधेयक में तद्नुसार सुधार किया जा सकता है।

लोकपाल चयन समिति के सदस्यों में लोकसभा स्पीकर, निचले सदन में विपक्ष के नेता, भारत के प्रधान न्यायाधीश और उनके द्वारा नामित शीर्ष अदालत के कोई न्यायाधीश तथा प्रख्यात न्यायविद् जिन्हें राष्ट्रपति मनोनीत कर सकते हैं, शामिल हैं। रिपोर्ट कहती है,  समिति का यह विचार है कि जब भी कोई सदस्य चयन समिति या खोज समिति की बैठक में शामिल होने में सक्षम नहीं है तो उसे चयन या खोज समिति को अपने विचार लिखित में भेजने का पर्याप्त मौका दिया जाना चाहिए और अनुपस्थित सदस्य के ऐसे विचारों को समिति द्वारा फैसला लिए जाने में ध्यान में रखा जाना चाहिए।

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