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जुवेनाइल बिल पास, जघन्‍य अपराध में 16 साल के बालिग

जुवेनाइल जस्टिस बिल आज राज्यसभा में पारित हो गया। नए कानून के जरिये जघन्य अपराध में नाबालिग को पुन: परिभाषित किया गया है। इस कानून के तहत जघन्य अपराधों में शामिल 16 वर्ष से 18 वर्ष की आयु के नाबालिगों को भी वयस्क मानकर मुकदमा चलाया जाएगा।
जुवेनाइल बिल पास, जघन्‍य अपराध में 16 साल के बालिग

सदन में इस बिल पर गहन चर्चा के बाद वोटिंग हुई जिसमें बिल पारित हो गया। हालांकि वोटिंग से पहले सीपीएम ने वॉक आउट किया। यह विधेयक लोकसभा से पहले ही पारित हो चुका है। बिल के पास हो जाने पर निर्भया के पिता ने कहा कि जो भी बिल पास हुआ है वह अच्छा है। जहां तक बदलावों की बात है वह बाद में होते रहेंगे।

गौरतलब है कि आज राज्यसभा में इस बिल पर चर्चा के दौरान निर्भया के माता-पिता दर्शक दीर्घा में मौजूद थे। बिल पर चर्चा के दौरान केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने कहा कि गंभीर अपराध की श्रेणी में वे अपराध आते हैं जिनकी सजा 7 साल या उससे ज्यादा होती है। उन्होंने बताया कि जुवेनाइल पुलिस का प्रावधान है और हर थाने में एक अधिकारी चाइल्ड पुलिस अधिकारी का दर्जा प्राप्त होता है। 

बहस के दौरान सदस्यों ने किशोर अपराधों की बढ़ती घटनाओं पर भी चिंता जताई और बाल सुधार गृहों की स्थिति में सुधार के लिए सरकार को उचित कदम उठाने को कहा। मेनका गांधी ने किशोर न्याय (बालकाें की देखरेख और संरक्षण) विधेयक 2015 सदन में चर्चा के लिए रखते हुए कहा कि इसके प्रावधानों से निर्भया मामले में भले ही असर नहीं पड़ेगा लेकिन आगे के मामलों में नाबालिगों को रोका जा सकता है।

मेनका गांधी ने विधेयक के प्रावधानों की चर्चा करते हुए कहा कि यह एक समग्र विधेयक है। इस विधेयक में किशोर न्याय बोर्ड को कई अधिकार दिए गए हैं। किसी भी नाबालिग दोषी को सीधे जेल नहीं भेजा जाएगा। किशोर न्याय बोर्ड यह फैसला करेगा कि बलात्कार, हत्या जैसे गंभीर अपराधिक घटनाओं में किसी किशोर अपराधी के लिप्त होने के पीछे उसकी मंशा क्या थी। बोर्ड यह तय करेगा कि यह कृत्य वयस्क मानसिकता से किया गया है या बचपने में। उन्होंने कहा कि एेसे नाबालिग अपराधी को भी ऊपरी अदालतों में अपील करने का अधिकार होगा।

विधेयक पर चर्चा की शुरूआत करते हुुए विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा कि सबसे पहले 1986 में राजीव गांधी सरकार द्वारा किशोर न्याय संबंधी विधेयक लाया गया था जिसमें उम्र की सीमा 16 साल ही रखी गयी थी लेकिन वर्ष 2000 में तत्कालीन राजग सरकार ने इसे बढ़ाकर 18 साल कर दिया। उन्होंने कहा कि उम्र को लेकर पूरी दुनिया में अलग अलग राय है और इस संबंध में विभिन्न देशों के अपने कानून हैं। लेकिन हमें भारत में अपने समाज के हिसाब से देखना है। 

 

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