प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ इस मुद्दे पर गैर सरकारी संगठन(एनजीओ) एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) और वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर दो अलग-अलग जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘हम इसे अंतिम सुनवाई के लिए किसी ‘नॉन-मिसलेनियस’ दिन लेंगे। इस बीच, दलीलें पूरी होनी चाहिए।’’
 
‘नॉन-मिसलेनियस’ दिन से आशय ऐसे दिन से है जब न्यायालय केवल सूचीबद्ध मामलों की सुनवाई करता है, आपातकालीन याचिकाओं की नहीं। इनमें बुधवार, बृहस्पतिवार और शुक्रवार शामिल हैं। एडीआर का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि उनकी याचिका पिछले 10 वर्षों से लंबित है।

पीठ ने वादियों से कहा कि वे अंतिम सुनवाई से पहले अधिकतम तीन पृष्ठों में लिखित दलीलें दाखिल करें और सुनवाई 21 अप्रैल के सप्ताह के लिए निर्धारित कर दी। शीर्ष अदालत ने 7 जुलाई 2015 को केंद्र, निर्वाचन आयोग और छह राजनीतिक दलों - कांग्रेस, भाजपा, भाकपा, राकांपा और बसपा को एनजीओ की याचिका पर नोटिस जारी किया था। याचिका में सभी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीतिक दलों को आरटीआई के दायरे में लाने के लिए उन्हें ‘‘सार्वजनिक प्राधिकार’’ घोषित करने का अनुरोध किया गया है।

उपाध्याय ने 2019 में राजनीतिक दलों को आरटीआई के दायरे में लाने के लिए इसी तरह की याचिका दायर की थी ताकि उन्हें जवाबदेह बनाया जा सके और चुनावों में काले धन के इस्तेमाल पर अंकुश लगाया जा सके। उपाध्याय ने अपनी याचिका में भ्रष्टाचार और सांप्रदायिकता के खतरे से निपटने के लिए केंद्र को कदम उठाने का निर्देश देने का भी अनुरोध किया था।

याचिका में कहा गया है, ‘‘जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए के तहत पंजीकृत राजनीतिक दलों को सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 2(एच) के तहत 'सार्वजनिक प्राधिकार' घोषित किया जाए, ताकि उन्हें पारदर्शी और लोगों के प्रति जवाबदेह बनाया जा सके और चुनावों में काले धन के इस्तेमाल पर अंकुश लगाया जा सके।’’

जनहित याचिका में निर्वाचन आयोग को निर्देश देने की मांग की गई है कि वह आरटीआई अधिनियम और राजनीतिक दलों से संबंधित अन्य कानूनों का अनुपालन सुनिश्चित करे और अगर वे इनका पालन करने में विफल रहते हैं तो उनका पंजीकरण रद्द किया जाए।

भ्रष्टाचार और राजनीतिक दलों को अप्रत्यक्ष वित्तपोषण के उदाहरणों का उल्लेख करते हुए याचिका में कहा गया है कि केंद्र और राज्य सरकारों ने देश भर में पार्टियों को प्रमुख स्थानों पर भूमि/भवन और अन्य इमारतें या तो निःशुल्क या रियायती दरों पर आवंटित किए हैं।

इसमें आरोप लगाया गया है कि ‘‘यह राजनीतिक दलों को अप्रत्यक्ष रूप से वित्त पोषण करने के समान है। दूरदर्शन, चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों को निःशुल्क प्रसारण समय आवंटित करता है। यह अप्रत्यक्ष वित्तपोषण का एक और उदाहरण है।’’

याचिका में कहा गया है कि ‘‘यदि करीबी निगरानी की जाए और देखा जाए तो राजनीतिक दलों पर खर्च किये गए सार्वजनिक धन की कुल राशि संभवतः हजारों करोड़ रुपये होगी।’’