लोकसभा चुनाव की सरगर्मी के बीच कांग्रेस नेता राहुल गांधी का एक तंज फिर से राजनीतिक विवाद का विषय बन गया है। इस बार उन्होंने दिवंगत भाजपा नेता अरुण जेटली के नाम पर टिप्पणी करते हुए कहा, “जेटली नहीं, जूठली कहना चाहिए।” राहुल का यह बयान सोशल मीडिया और राजनीतिक गलियारों में तुरंत वायरल हो गया, लेकिन यह उन्हें लाभ की बजाय नुकसान ही पहुंचाता दिख रहा है। भाजपा ने इस टिप्पणी को दिवंगत नेताओं के अपमान की संज्ञा दी है और राहुल की भाषा पर सवाल खड़े किए हैं।
राहुल गांधी की ‘शूट एंड स्कूट’ राजनीति, यानी बिना तथ्यों के आरोप लगाना और फिर पलट जाना, पहले भी विवादों में रही है। 2019 में ‘सारे चोरों का सरनेम मोदी क्यों होता है’ वाले बयान पर उन्हें मानहानि का मुकदमा झेलना पड़ा था, जिसमें बाद में उन्हें सजा भी हुई और संसद सदस्यता चली गई थी (जो बाद में बहाल हुई)। ऐसे कई उदाहरणों के बावजूद राहुल बार-बार विवादित टिप्पणियां करते रहे हैं।
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे बयानों से कांग्रेस की साख को नुकसान होता है, खासकर तब जब भाजपा इसे जनता के सामने बार-बार दोहराती है। भाजपा के प्रवक्ताओं ने कहा है कि राहुल गांधी को दिवंगत नेताओं पर टिप्पणी करने की बजाय अपनी पार्टी की नीति पर ध्यान देना चाहिए। वहीं, कांग्रेस इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हिस्सा बताकर राहुल के बचाव में खड़ी दिखती है।
एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि राहुल गांधी की इस शैली से कांग्रेस का मुख्य चुनावी एजेंडा बार-बार भटकता हुआ दिखता है। जहां विपक्ष को महंगाई, बेरोजगारी और संस्थानों की निष्पक्षता जैसे मुद्दों पर फोकस करना चाहिए, वहां नेताओं के व्यक्तिगत हमले बहस को दूसरे मोड़ पर ले जाते हैं।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या राहुल गांधी आने वाले दिनों में अपनी बयानबाज़ी की शैली में बदलाव लाते हैं या फिर उनकी राजनीति ऐसे ही विवादों से घिरी रहेगी। अगर बदलाव नहीं होता, तो भाजपा इसे बार-बार भुनाती रहेगी और कांग्रेस के लिए यह आत्मघाती साबित हो सकता है।