देश की राजधानी दिल्ली में 17 हजार से अधिक पेड़ काटे जाने का मामला गरमाने लगा है। केन्द्र सरकार के इस निर्णय को लेकर आम आदमी पार्टी विरोध में उतर आई है। ‘आप’ ने रविवार को 'चिपको आंदोलन' जैसे आंदोलन करने की चेतावनी दी है।
आप नेता सौरभ भारद्वाज ने ट्वीट कर कहा कि "केंद्र सरकार दिल्ली में 17000 पेड़ काट रही है । क्या हम लोग ऐसा होने देंगे? क्या पेड़ कटने का विरोध नहीं करेंगे?” उन्होंने रविवार शाम 5 बजे सरोजिनी नगर पुलिस स्टेशन के पास लोगों को साथ आने की अपील की है।
आप ने इस संबंध में प्रेस कान्फ्रेंस कर कहा कि "आम आदमी पार्टी इन 17000 में से एक भी पेड़ नहीं काटने देगी, यदि पेड़ काटने जरूरी ही हैं तो फिर मोदी जी की सरकार इस प्रोजेक्ट को कहीं और ले जाए।" आप नेता सौरभ भारद्वाज ने कहा, "हरदीप पुरी जी ट्वीट करके कहते हैं कि हम एक पेड़ के बदले 10 पेड़ लगाएंगे। पर उनमें से कितने पौधे बचेंगे और जो बच भी गए वो 40 साल बाद पेड़ बनेंगे?"
Dear Modi Ji,
— Saurabh Bharadwaj (@Saurabh_MLAgk) June 22, 2018
Delhi does not need more VIPs at the cost of 17000 full grown trees. Plz..... pic.twitter.com/zcGg2PeDST
दरअसल, दक्षिणी दिल्ली के कुछ इलाकों की पुनर्विकास योजना के चलते हजारों पेड़ काटे जाने के आरोपों के बीच केन्द्रीय आवास एवं शहरी मामलों के राज्यमंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा था कि एक पेड़ के एवज में दस पेड़ लगाने की प्रतिबद्धता का पालन किए जाने के कारण दिल्ली के हरित क्षेत्र में तीन गुना इजाफा होगा। पुरी ने आप के जवाब में कहा कि पेड़ों की आज जितनी संख्या है उसमें एक पेड़ भी कम नहीं होगा और हरित क्षेत्र में तीन गुना इजाफ होगा।
क्यों काटे जाएंगे पेड़?
केंद्र सरकार की योजना के मुताबिक, दक्षिण दिल्ली के सात स्थानों पर पुनर्विकास के प्रोजेक्ट के लिए पेड़ काटे जाएंगे। केंद्र सरकार ने सरकारी अधिकारियों और नेताओं के लिए आवास बनाने की योजना बनाई है। इसे ‘रीडेवलपेंट’ का नाम दिया गया है। दिल्ली के इन सात जगहों में नेताजी नगर, सरोजनी नगर, नैरोजी नगर, कस्तूरबा नगर, मुहम्मदपुर, श्रीनिवासपुरी और त्यागराज नगर शामिल है। इस काम को एनबीसीसी और सीपीडब्ल्यूडी कर रही है।
क्या है चिपको आंदोलन
पर्यावरण बचाने की दिशा में चिपको आन्दोलन को सबसे बड़ा आंदोलन माना जाता है। उत्तराखण्ड के चमोली जिले में किसानो ने पेड़ों की कटाई के खिलाफ इसे शुरू किया था। वर्ष 1973 में यह आंदोलन पूरे उत्तराखंड में फैल गया था। इसका नतीजा यह हुआ कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने प्रदेश के हिमालयी वनों में पेड़ों की कटाई पर 15 सालों के लिए रोक लगा दी थी।