Advertisement

कांग्रेस-भाजपा की सरकारों ने 84 के आरोपियों को बचाने का काम कियाः आप

साल 1984 में सिखों का कत्लेआम दिल्ली के इतिहास में सबसे काला और दर्दनाक अध्याय है। आज तक कांग्रेस-भाजपा...
कांग्रेस-भाजपा की सरकारों ने 84 के आरोपियों को बचाने का काम कियाः आप

साल 1984 में सिखों का कत्लेआम दिल्ली के इतिहास में सबसे काला और दर्दनाक अध्याय है। आज तक कांग्रेस-भाजपा की सरकारों ने सिख क़त्लेआम के आरोपियों को बचाने का काम किया है। अब बस उम्मीद सुप्रीम कोर्ट से ही है, जहां से पीड़ितों को न्याय मिल सकता है।

आप नेता और राज्यसभा के नवनिर्वाचित सांसद संजय सिंह ने एक प्रेस कांफ्रेस में कहा कि यह शर्मनाक है कि करीब तीस साल तक कांग्रेस और भाजपा 84 के कत्लेआम के दोषियों को बचाने की पूरी कोशिश करती रही है। पहली बार आम आदमी पार्टी की 49 दिन की सरकार में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने निष्पक्ष जांच के लिए एसआईटी का प्रस्ताव दिल्ली के एलजी को भेजा था। हमारी सरकार जाने के बाद एक साल तक एसआईटी पर कोई पहल नहीं हुई।

आप नेता ने कहा कि मई 2014 तक जब तक केंद्र में कांग्रेस सरकार थी तब तक एसआईटी में कोई प्रगति न होना तो समझ में आता है क्योंकि यह नरसंहार कांग्रेस द्वारा ही प्रायोजित था लेकिन इसके बाद एसआईटी के प्रति मोदी सरकार के द्वारा अपनाई गई उदासीनता चौंकाने वाली थी, पांच महीने तक कुछ नहीं हुआ और नवम्बर 2014 में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने यह जानने के लिए पहले एक कमेटी गठित की कि इस मामले में क्या एसआईटी की आवश्यकता है या नहीं। फरवरी 2015 में दिल्ली विधानसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद घबराई मोदी सरकार ने केजरीवाल सरकार के शपथ ग्रहण से एक दिन पहले 13 फरवरी को आनन फ़ानन में एसआईटी का गठन कर दिया ताकि अरविंद केजरीवाल इस मामले में निष्पक्ष जांच न करा पाएं। अब सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार की निष्क्रिय एसआईटी की पोल खोल दी है।  उन्होंने कहा कि मोदी सरकार की एसआईटी ने केवल कांग्रेस नेताओं को बचाने का काम किया है और जो 290 मामलों की जांच एसआईटी कर रही थी उनमें से 190 मामलों को बंद कर दिया गया।  

आप नेता और राजौरी गार्डन के पूर्व विधायक जरनैल सिंह ने कहा कि हम सुप्रीम कोर्ट से अपील करते हैं कि इन मामलों की जांच सीबीआई या कुछ स्वतंत्र जांच एजेंसी से कराई जाए क्योंकि हमें दिल्ली पुलिस पर कोई भरोसा नहीं है, उसका कारण यह है कि दिल्ली पुलिस सीधे उन हत्याओं में शामिल रही थी लिहाज़ा उनकी जांच संदेह के घेरे में रहेगी। सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में ही इन मामलों की जांच और सुनवाई होनी चाहिए जैसा कि गुजरात दंगा मामलों में किया गया था। अगर दिल्ली में किसी ऑफ़िस, अफ़सर और स्पेशल कोर्ट की ज़रुरत है तो दिल्ली सरकार उसे मुहैय्या कराने के लिए तैयार है। 

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement
  Close Ad