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मध्य प्रदेश: पटवारी पहरेदार

कांग्रेस पीढ़ी परिवर्तन से 2024 के मद्देनजर नए जोश में इस बार के विधानसभा चुनावों के नतीजों ने प्रदेश के...
मध्य प्रदेश: पटवारी पहरेदार

कांग्रेस पीढ़ी परिवर्तन से 2024 के मद्देनजर नए जोश में

इस बार के विधानसभा चुनावों के नतीजों ने प्रदेश के राजनैतिक चेहरों को ही नहीं, शायद राजनीति को भी हमेशा के लिए बदल दिया। चेहरे और नेतृत्व में ‘पीढ़ी परिवर्तन’ तो प्रत्यक्ष है। यह प्रदेश की दोनों प्रमुख पार्टियों सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और विपक्षी कांग्रेस में दिखा। दरअसल नतीजों ने  न सिर्फ भाजपा और कांग्रेस दोनों को चौंकाया, बल्कि सत्ता के गलियारों की खबर रखने वालों को भी औंधे मुंह गिरा दिया। पिछले दो दशकों में कांग्रेस पार्टी की सबसे करारी हार हुई जबकि मतदान के दिन तक 18 साल की भाजपा की शिवराज सिंह चौहान सरकार के खिलाफ एंटी-इन्कंबेंसी का अंदाजा ही लगाया जा रहा था, लेकिन कांग्रेस का वोट प्रतिशत घटा नहीं, बढ़ा। तकरीबन सारे एग्जिट पोल कांटे की टक्कर या कांग्रेस के पक्ष में माहौल की बात कर रहे थे। भाजपा भी इतनी बड़ी जीत को किसी आश्चर्य से कम नहीं मान रही है। उसे इससे भी हैरानी हुई कि उसके खाते में सात प्रतिशत से ज्यादा वोट का इजाफा हो गया।

जीतती बाजी बुरी तरह हारकर कांग्रेस में दिल्ली से लेकर भोपाल तक मंथन का दौर चला। दिल्ली में कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक में सबसे ज्यादा निशाने पर पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ थे। कई नेताओं ने कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की खामियां गिना डालीं, जिनके हाथ में मध्य प्रदेश में कमान थी। जानकारों का कहना है कि मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी इस दौरान कमलनाथ-दिग्विजय की रणनीति पर सवाल उठाए। कई बार कमलनाथ उस दौरान उभरी सलाहों से असहमत हुए तो बैठक से ही उठ गए। मुकुल वासनिक ने तो चुनाव में एक नारा ‘जय-जय कमलनाथ’ पर ही प्रश्नचिन्ह उठाया और कहा कि लगा जैसे चुनाव कमलनाथ के नाम पर लड़ा जा रहा है, पार्टी का कोई मतलब नहीं है।

उसके साथ और बाद में भोपाल में चुनाव परिणाम की समीक्षा बैठक में छतरपुर के जिला अध्यक्ष महाप्रसाद पटेल ने यह कहकर चौंका दिया कि ‘‘कांग्रेस को भाजपा ने नहीं, कांग्रेस ने ही हराया है।’’  कुछ दूसरे नेताओं ने यह भी कहा कि कमलनाथ अपनी तरह से संगठन को चला रहे थे और किसी की सुन नहीं रहे थे। पार्टी के अन्य नेताओं से उनका समन्वय बिल्कुल भी नहीं था। असल में, 2018 की जीत के बाद से ही पार्टी की कमान दो नेताओं कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के हाथ में रही। दोनों नेता कांग्रेस की 2018 की जीत का श्रेय ज्योतिरादित्य सिंधिया को देने में कतराते नजर आए। 2020 में सिंधिया के भाजपा में जाने के बाद उनके समर्थकों को खुले दिल से अपनाने में प्रदेश कांग्रेस ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। कमलनाथ, दिग्विजय, अरुण यादव, अजय सिंह राहुल के अपने-अपने खेमे कायम रहे। इस बीच, मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी एक ‘जंबो कार्यकारिणी’ में तब्दील हो गई। उसे ‘जंबो कार्यकारिणी’ इसलिए भी कहा जाने लगा था क्योंकि प्रदेश उपाध्यक्षों और महासचिवों की संख्या 150 के आसपास पहुंच गई थी। प्रदेश कार्यकारिणी में ज्यादातर वे नेता शामिल थे जिनका चयन कमलनाथ ने या दिग्विजय सिंह ने किया था। जंबो कार्यकारिणी के अलावा प्रदेश कांग्रेस में 40-45 प्रकोष्ठों का भी गठन किया गया था, जिनमें पुजारी प्रकोष्ठ के अलावा मठ-मंदिर प्रकोष्ठ और धार्मिक उत्सव प्रकोष्ठ जैसे कई अन्य शामिल थे।

जानकारों का कहना है कि कांग्रेस ने किसी अन्य प्रदेश में शायद ऐसी अनूठी बड़ी कार्यकारिणी और इतने सारे प्रकोष्ठ थे। यह मोटे तौर पर भाजपा की नकल थी, जो सबको खुश करने के लिए नाम भर के पद पकड़ा दिया करती रही है। यही नहीं, प्रदेश में 2020 में सरकार खोने के बाद पिछले तीन साल में कांग्रेस कभी भी भाजपा सरकार के प्रति उग्र नहीं दिखाई दी। चुनाव से कुछ महीने पहले ही मध्य प्रदेश में पटवारी भर्ती परीक्षा में कथित घोटाले और चुनाव के दौरान प्याज के भाव 100 रुपये तक पहुंचने की बात सामने आई थी, लेकिन प्रदेश कांग्रेस कोई बड़ा आंदोलन खड़ा कर पाने में नाकाम रही।

बाकी बातों के अलावा इन सबका असर 2023 के विधानसभा के चुनावों में देखने को मिला। जाहिर है, इतनी करारी हार पर कैंची तो चलनी ही थी। पार्टी ने कमलनाथ की जगह जीतू पटवारी को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया। जीतू पटवारी 2013 में पहली बार राऊ सीट से विधायक चुने गए थे। वह फिलहाल कांग्रेस सचिव और गुजरात प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रभारी हैं। वे मध्य प्रदेश युवा कांग्रेस के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। राऊ सीट पर इस बार वे भाजपा की मधु वर्मा से मामूली वोटों से हार गए जबकि 2018 में उन्होंने मधु वर्मा को 5,703 वोटों से हराया था। जीतू पटवारी राहुल गांधी के करीबी माने जाते हैं। वे कमलनाथ सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं।

पटवारी के साथ ही, कांग्रेस ने उमंग सिंगार को विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी सौंपी गई है। हेमंत कटारे को उपनेता प्रतिपक्ष बनाया गया है। कांग्रेस ने लगभग दो दशक बाद प्रदेश में सभी युवा चेहरों को सामने कर बड़ी जिम्मेदारी देने का काम किया है। कुछ दिन बाद अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने मध्य प्रदेश के लिए संगठन के महासचिव जितेंद्र सिंह को प्रभारी नियुक्त कर दिया। जितेंद्र सिंह और नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी ने संगठन के नेताओं के साथ प्रदेश कार्यालय में बैठक ली और जंबो कार्यकारिणी भंग कर दी गई। वजह जो भी हो, कांग्रेस का यह ‘पीढ़ी परिवर्तन’ निर्णय इस दृष्टि से और भी सराहनीय है कि पार्टी 2024 लोकसभा चुनाव आने से पहले ही एक्शन में आ गई है।

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