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जनादेश '23/मध्य प्रदेश: प्रत्याशी, प्रयोग और प्रपंच

भाजपा के लिए टिकट बंटवारे के जरिये सत्ता-विरोधी लहर के मुकाबले की कोशिश बनी सिरदर्द, कांग्रेस में कलह...
जनादेश '23/मध्य प्रदेश: प्रत्याशी, प्रयोग और प्रपंच

भाजपा के लिए टिकट बंटवारे के जरिये सत्ता-विरोधी लहर के मुकाबले की कोशिश बनी सिरदर्द, कांग्रेस में कलह भी कम नहीं

रणनीतियां पार्टियों के चुनावी टिकटों से बेहतर किसी और मामले से शायद ही जाहिर होती हैं। फिर, जब मध्य भारत के इस 230 विधानसभा सीटों वाले राज्य में सबसे ज्यादा दांव लगे हों और दोनों प्रमुख दावेदारों भाजपा और कांग्रेस के टिकटों के बंटवारे को लेकर घमासान मचा हो तो रणनीतियों की उलझनें और अनिश्चय भी खुल जाते हैं। वैसे, दोनों पार्टियां 17 नवंबर को तय मतदान के लिए बड़े प्रयोग की आजमाइश करती दिखती हैं। सत्ता पर अपना दावा ठोंकने वाली कांग्रेस में सिर-फुटव्‍वल कुछ कम दिखी, मगर तकरीबन 18 साल से सत्ता पर काबिज भाजपा में प्रदेश के चारों-पांचों क्षेत्रों में प्रदर्शन, मार-पीट तक दिखी। इसकी वजह पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व का प्रभुत्व है, जो कुछ महीने बाद ही अगले साल लोकसभा चुनावों के मद्देनजर कोई कसर बाकी नहीं छोड़ना चाहता। इसी रणनीति के तहत तकरीबन सात केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों को भी मैदान में उतार दिया गया। इसके जरिये यह कोशिश लगती है कि प्रदेश भाजपा और लगभग दो दशकों से सत्ता पर काबिज मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के खिलाफ सत्ता-विरोधी रुझान की काट की जा सके, हालांकि उम्मीदवारों की पहले जारी दो सूचियों के बाद केंद्रीय नेतृत्व को विरोध देखकर कुछ झुकना पड़ा और बाद की सूचियों में प्रदेश इकाई के चार-पांच खेमों और शिवराज सिंह का खयाल रखना पड़ा।

2018 के विधानसभा चुनावों में जीत के बावजूद भाजपा के ऑपरेशन लोटस के हाथों सता गंवा बैठी कांग्रेस में इस बार जीत का उत्साह दिख रहा है। ज्योतिरादित्य सिंधिया की अगुआई में 22 विधायक 2020 में पार्टी छोड़कर भाजपा में जा मिले तो कमलनाथ की सरकार महज डेढ़ साल में गिर गई थी। कांग्रेस अब उसका बदला लेने की फिराक में है। पार्टी को इसका एक फायदा यह जरूर दिख रहा है कि खेमेबाजी कम हो गई है। कमलनाथ और दिग्विजय सिंह तकरीबन एका दिखा रहे हैं। कांग्रेस की रणनीति भाजपा के उलट राज्य नेतृत्व पर आश्रित है, जिसका एक विवादास्पद नजारा हाल में दिखा।

कमलनाथ और दिग्विजय ने दावा किया कि ‘इंडिया’ गठबंधन में सभी दल भाजपा के खिलाफ केवल लोकसभा चुनावों के लिए एक साथ आए हैं, राज्यों में होने वाले विधासनभा चुनाव के लिए गठबंधन नहीं हुआ है। इस तरह समाजवादी पार्टी की मध्य प्रदेश में कुछ सीटों की मांग को खारिज कर दिया गया। इस रवैये पर सपा प्रमुख अखिलेश यादव आगबबूला हो उठे। अखिलेश ने कहा कि उनकी पार्टी लोकसभा चुनाव के दौरान यूपी में सीट शेयरिंग पर ‘जैसे को तैसा’ जवाब देगी। कहते हैं कि राहुल गांधी की अखिलेश से हुई बातचीत के बाद मामला ठंडा हुआ और कुछ लेनदेन की बात भी शुरू हुई।

दूसरी तरफ भाजपा में नए प्रयोगों की आंच प्रदेश के नेताओं और सिंधिया के अलावा पार्टी के चुनाव प्रभारी तथा केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव को भी झेलनी पड़ी। जबलपुर की उत्तर सीट पर अभिलाष पांडे को उम्‍मीदवार बनाते ही नाराज पार्टी कार्यकर्ताओं ने भूपेंद्र यादव के सामने लात-घूंसे चलाना शुरू कर दिया। ऐसी कई घटनाएं हुईं, जो अप्रत्याशित थीं।

कांग्रेस के उम्मीदवारों की आखिरी फेहरिस्त आने से पहले कमलनाथ और दिग्विजय सिंह इशारों से, अधूरे वाक्यों से मुस्कुराते हुए अपने समर्थकों, पार्टी कार्यकर्ताओं को टिकट वितरण से उठने वाले बवंडर को हंसकर भुलाने के लिए परामर्श देते नजर आए। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने राजधानी भोपाल के रवींद्र भवन में पार्टी का ‘वचन-पत्र’ जारी करते वक्त पत्रकारों से कहा, “आपने सबसे पहले दिग्विजय सिंह के कपड़े फाड़ने को लेकर प्रश्न पूछा था। मैंने आपको जवाब में कहा था कि अगर आपकी बात न मानें तो आप भी उनके (दिग्विजय सिंह) कपड़े फाड़ दीजिए।” बगल में बैठे दिग्विजय सिंह ने फौरन उन्हें टोका, “एक मिनट...एक मिनट...फॉर्म ए और फॉर्म बी पर दस्तखत किसके होते हैं? पीसीसी प्रेसिडेंट के...तो कपड़े किसके फटने चाहिए...बताओ।’’

मोटे तौर पर कमलनाथ के लगभग 130, दिग्विजय सिंह के लगभग 65, और पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह उर्फ राहुल भैया, पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव और पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सुरेश पचौरी के लगभग 34 भरोसेमंद लोग टिकट हासिल कर पाए। इस तरह राज्य में कांग्रेस अपना पलड़ा भारी मान रही है और उसका कहना है कि भाजपा अपनी अंतिम सांसें ले रही है। कमलनाथ कहते हैं, “मध्य प्रदेश में भाजपा विधानसभा चुनाव की नहीं, अस्तित्त्व की लड़ाई लड़ रही है।”

उधर, लगभग दो दशकों के बाद भाजपा मुख्यमंत्री चेहरे के बिना चुनाव लड़ने जा रही है। पार्टी ने रिकॉर्ड चार बार के मुख्यमंत्री मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (64 वर्ष) को सीहोर जिले की बुधनी सीट से उम्मीदवार बनाया है। कांग्रेस ने चौहान के खिलाफ रामायण-2 में हनुमान की भूमिका निभाने वाले टीवी एक्टर विक्रम मस्ताल को उतारा है। कमलनाथ कहते हैं, “वे दोनों ही अभिनेता हैं। यह अभिनेता बनाम अभिनेता का मुकाबला है और मुझे लगता है कि हमें इन दोनों की बहस आयोजित करानी चाहिए। फिर हमें पता चल जाएगा कि कौन बड़ा अभिनेता है और इसमें शिवराज सिंह चौहान हमारे विक्रम मस्ताल को ही हरा देंगे।” राजनीति के जानकार कांग्रेस के इस फैसले को सीधे तौर पर शिवराज को वॉकओवर देना मान रहे हैं।

रिश्ते की बातः ग्वालियर में सिंधिया स्कूल के आयोजन में ज्योतिरादित्य और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

‌रिश्ते की बातः ‌ग्वालियर में सिंधिया स्कूल के आयोजन में ज्योतिरादित्य और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

खैर! भाजपा के एक्शन (प्रयोग) से शिवराज सिंह चौहान के समकालीन नेताओं के अंदर दबे-छुपे अरमान सामने आने लगे हैं। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव और इंदौर-1 सीट से प्रत्याशी कैलाश विजयवर्गीय का कहना है, “मैं खाली विधायक बनने नहीं आया हूं। मुझे बड़ी जवाबदारी भी मिलेगी। मैं भोपाल से इशारा करूंगा और यहां काम हो जाएगा।” लंबे समय से ‌िवजयवर्गीय को मुख्यमंत्री के संभावित उम्मीदवारों के रूप में देखा जाता रहा है। कांग्रेस ने उनके सामने वर्तमान विधायक संजय शुक्ला को उतारा है। शुक्ला दावा कर रहे हैं कि इस बार कांग्रेस 25 हजार वोटों से चुनाव जीतेगी, लेकिन इस प्रयोग में भाजपा ने उनके विधायक बेटे का टिकट काट दिया।

कुछ ऐसा ही मामला पांच बार के सांसद और केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल का है। प्रहलाद पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ने जा रहे हैं। पार्टी ने उन्हें नरसिंहपुर से उतारा है। नरसिंहपुर प्रहलाद के संसदीय क्षेत्र दमोह का हिस्सा नहीं है। दमोह और नरसिंहपुर की दूरी लगभग 160 किलोमीटर है। प्रयोग के तहत पार्टी ने प्रहलाद के छोटे भाई मौजूदा नरसिंहपुर विधायक जालिम सिंह पटेल को टिकट नहीं दिया। अब, उनका मुकाबला कांग्रेस के लाखन सिंह पटेल से है। पार्टी ने उन पर दोबारा भरोसा जताया है। दोनों के बीच रोचक मुकाबला होने की संभावना जताई जा रही है।

ऐसा ही मामला दिमनी सीट से उम्मीदवार केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का है। कहते हैं कि केंद्रीय मंत्री अपने बेटे को उतारने का मन बना चुके थे। दिमनी विधानसभा मुरैना संसदीय क्षेत्र में आता है, न कि ग्वालियर संसदीय क्षेत्र में, जिसका प्रतिनिध‌ित्व तोमर लोकसभा में करते हैं। दिमनी और ग्वालियर के बीच की दूरी लगभग 140 किलोमीटर है। पिछले दो विधानसभा चुनावों में कांग्रेस यहां जीती है। पार्टी ने मौजूदा विधायक रवींद्र सिंह तोमर पर भरोसा जताया है। वे 2018 और 2020 के उपचुनाव जीत चुके हैं। जानकारों का मानना है कि केंद्रीय मंत्री के लिए दिमनी में मुकाबला आसान नहीं होगा।

भले ही कैलाश, प्रहलाद और तोमर तीनों (भाजपा के संभावित सीएम चेहरे) को अब इंतजार है तो 3 दिसंबर (मतगणना) का और भाजपा के सत्ता में वापस आने का, मगर भाजपा ने तीन केंद्रीय मंत्रियों और चार सांसदों को विधानसभा के चुनावी मैदान में उतार कर सभी को अचंभे में डाल दिया। यही नहीं, पार्टी ने अपने क्षेत्र में दबदबा रखने वाले सिंधिया परिवार को भी अलग रखा है। राज्य में मौजूदा मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया के अनुरोध पर उन्हें तो टिकट नहीं दिया गया पर पूर्व मंत्री माया सिंह (ज्योतिरादित्य सिंधिया की मामी) को टिकट मिल गया। यह अलग बात है कि मुन्ना लाल गोयल का टिकट काटकर माया सिंह को टिकट दिए जाने का जबरदस्त विरोध हो रहा है और ज्योतिरादित्य को उसका दंश झेलना पड़ा है, हालांकि पार्टी ने ज्योतिरादित्य को चुनावी दंगल में न उतारकर शायद उनके इरादे का खयाल रखा है।

सिंधिया परिवार और भाजपा के इस रिश्ते को प्रधानमंत्री नरेंद मोदी ने अपने अंदाज में बताया। उन्होंने ग्वालियर में सिंधिया स्कूल के 125वें स्थापना दिवस समारोह में कहा, “काशी को डेवलप करने में सिंधिया परिवार की बड़ी भूमिका रही है। वहां कई घाट बनवाए। आज काशी का विकास हो रहा है, उसे देखकर महाराज माधवरावजी की आत्मा प्रसन्न होगी। फिर ज्योतिरादित्य गुजरात के दामाद हैं। इस नाते भी ग्वालियर से मेरी रिश्तेदारी है।”

बहरहाल, 2023 के इस चुनाव में भाजपा अपने प्रयोग से सिंधिया परिवार के राजनैतिक रसूख को राजस्थान, मध्य प्रदेश के अलावा जल्द ही गुजरात से जोड़ने जा रही है। इसके विपरीत कांग्रेस सारे मतभेदों को दूर करके नेताओं और कार्यकर्ताओं की एक भावी टीम तैयार कर रही है। बेशक, इस चुनाव के बहाने दोनों ही दल नए युग के कई नेताओं के लिए दरवाजे और खिड़कियां खोलते नजर आ रहे हैं।

जहां तक चुनावी रणनीतियों का सवाल है तो दोनों पार्टियां कथित कल्याण योजनाओं और हिंदू धार्मिक भावनाओं पर होड़ कर रही हैं। कमलनाथ ने राम वनगमन पथ बनाने और सीता मंदिर का वादा किया है। अब बस इंतजार है 3 दिसंबर के चुनाव परिणाम का।

गंगा का आह्वान

विधानसभा चुनाव की तारीख की घोषणा और पार्टी की चौथी लिस्ट में अपनी परंपरागत सीट बुधनी से टिकट मिलने के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान संत समाज का आशीर्वाद लेने ऋषिकेश पहुंच गए। कहानी में ट्विस्ट तब आया, जब मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म एक्स पर गंगा किनारे बैठे (एक पत्थर पर बैठ एकांत में चिंतन कर रहे, एक हाथ में पैड और उंगलियों में कलम थामे हुए) अपनी तस्वीर लोड कर दी और लिखा – मां गंगा भारतीय संस्कृति का पुण्य प्रवाह; यही संस्कृति भौतिकता की अग्नि में दग्ध विश्व मानवता को शाश्वत शांति के पथ का दिग्दर्शन कराएगी।

गंगाजल पर चुटकी

हंसी का राजः भोपाल में कांग्रेस के दिग्विजय सिंह और कमलनाथ

मुख्यमंत्री ऋषिकेश पहुंचे और गंगा की दुहाई दी तो कमलनाथ ने चुटकी ली, “जिस पूजनीय गंगा मां के किनारे शांति की तलाश में वे कैमरे की टीम के साथ गए, उस गंगा मां के ‘गंगाजल’ पर केंद्र की भाजपा सरकार ने जीएसटी लगाकर धार्मिक भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया है। मुझे आशा है कि भाजपा में भी जो कुछ अच्छे नेता और समर्थक बचे हैं, वे भी ‘गंगाजल पर जीएसटी’ लगाने के हमारे इस विरोध का समर्थन करेंगे। भाजपा ने पहले राजनीति को व्यवसाय बना दिया, अब गंगा के पवित्र जल को भी व्यापार समझकर उस पर भी टैक्स लगा रही है। यह आध्यात्मिक भ्रष्टाचार है।”

कचौड़ी के बहाने

पीयूष गोयल के साथ विजवर्गीय

भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव और इंदौर-1 से उम्मीदवार कैलाश विजयवर्गीय एक दिन अचानक केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल के साथ शहर के व्यस्ततम सराफा चौपाटी पहुंचे और कचौड़ी का स्वाद चखकर लोगों से संवाद करते रहे। वे पहले चुनाव न लड़ने की इच्छा व्यक्त कर चुके थे।

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