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दुमका उप चुनाव: हेमंत के सामने विरासत बचाने की चुनौती

झारखंड में दो विधानसभा सीटों पर तीन नवंबर को होने वाले उप चुनाव में हमेशा की तरह दुमका सीट पर लोगों की...
दुमका उप चुनाव: हेमंत के सामने विरासत बचाने की चुनौती

झारखंड में दो विधानसभा सीटों पर तीन नवंबर को होने वाले उप चुनाव में हमेशा की तरह दुमका सीट पर लोगों की नजर गड़ी हुई है। हेमंत सोरेन पर सियासत संभालते हुए विरासत बचाने की चुनौती है। दुमका हेमंत सोरेन की ही छोड़ी हुई सीट है। पारिवारिक विवाद की पहली लड़ाई वे लगभग जीत चुके हैं अब चुनावी जंग फतह करनी होगी। दुमका के साथ ही बेरमो सीट भी कम महत्‍वपूर्ण नहीं  है। यहां से छह टर्म विधायक रहे कांग्रेस के वरिष्‍ठ नेता राजेंद्र सिंह की मौत से यह सीट खाली हुई है।

विरासत बचाने की जद्दोजहद

पिछले विधानसभा चुनाव में हेमंत सोरेन बरहेट के साथ दुमका सीट से भी विजयी हुए थे। मुख्‍यमंत्री के पद की शपथ लेते ही उन्‍होंने दुमका सीट छोड़ दी। बरहेट से 25 हजार तो दुमका से 13 हजार से अधिक वोटों से जीते थे। दुमका से भाजपा की कल्‍याण मंत्री लुईस मरांडी को पराजित किया था। 2005 और 2014 को छोड़ दें तो  1980 से दुमका सीट पर का कब्‍जा रहा है। 2005 में निर्दलीय उम्‍मीदवार के रूप में प्रो. स्‍टीफन मरांडी जीते थे तो 2014 में भाजपा उम्‍मीदवार के रूप में लुईस मरांडी ने हेमंत सोरेन को पांच हजार से अधिक वोटों से पराजित किया था। 2019 के लोकसभा चुनाव में झामुमो के गढ़ पर कब्‍जा जमाते हुए भाजपा के सुनील सोरेन ने शिबू सोरेन को पराजित कर बड़ा झटका दिया था। कोरोना काल में सरकार का खजाना खाली है, विकास के काम ठप हैं। नेताओं के दौरे भी बंद है। इन चुनौतियों को देखते हुए हेमंत सोरेन हाल ही, कोई छह माह के बाद दुमका पहुंचे और दुमका विधानसभ क्षेत्र के सात गांवों का दौरा किया। सरकार आपके द्वार कार्यक्रम के तहत लोगों की समस्‍याओं का तत्‍काल निबटारा किया। 100 प्रबुद्ध लोगों से मिले। करीब 135 करोड़ की योजनाओं की आधारशिला रखी, उद्धाटन किया, परिसम्‍पत्तियों का वितरण किया।

दो परिवारों की प्रतिष्‍ठा का सवाल

दुमका सीट सोरेन परिवार की प्रतिष्‍ठा का सवाल है तो बेरमो सीट इंटक के राष्‍टीय महासचिव रहे पुराने श्रमिक नेता और पूर्व मंत्री राजेंद्र सिंह के परिवार की प्रतिष्‍ठा से जुड़ी है। राजेंद्र सिंह बेरमो सीट से छह बार विधायक चुने गये। उम्‍मीदवार कौन होगा इसको लेकर दोनों परिवारों में विवाद जैसी स्थिति थी। दुमको से बसंत सोरेन को छोड़ अन्‍य नामों का औपचारिक एलान नहीं हुआ है मगर तस्‍वीर लगभग साफ हो गई है। इधर हेमंत सोरेन की पत्‍नी कल्‍पना सोरेन सार्वजनिक जीवन में ज्‍यादा सक्रिय हो गई थीं तो लोगों ने उप चुनाव में उनके लड़ने को लेकर चर्चा शुरू कर दी थी। वहीं शिबू सोरेन की बड़ी बहू और स्‍व. दुर्गा सोरेन की पत्‍नी सीता सोरेन, हेमंत सरकार पर लगातार हमलावर रहीं। उनके आक्रमण को देख महसूस किया जा रहा था कि उनकी महत्‍वाकांक्षा बढ़ रही है। मंत्री बनने के साथ उप चुनाव में अपनी बेटी जयश्री सोरेन की उम्‍मीदवारी चाहती हैं। दरअसल सोशल मीडिया पर जब हेमंत सरकार के खिलाफ उनका आक्रमण चल रहा था बेटियों ने आगे बढ़कर मोर्चा संभाल लिया था। उनकी नाराजगी, उप चुनाव और बेटियों को लेकर मीडिया में चर्चा शुरू हुई तो उन्‍होंने सोशल मीडिया पर उसका खंडन किया। कहा कि दुमका सीट पर अपनी बेटियों के लिए उन्‍होंने दाबेदारी नहीं की है। मेरा पूरा परिवार बसंत सोरेन के समर्थन में एकजुट हो खड़ा है। बेटियों के लिए राजनीति में आने के लिए अभी समय है। सीता सोरेन के इस ट्वीट से हेमंत सोरेन ने राहत की सांस ली होगी। ट्वीट के तत्‍काल बाद पिछले शनिवार को सीता सोरेन राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद  से रिम्‍स के केली बंगले में मिल आईं। कहा भी कि उनका हाल जानने आई थी, राजनीति पर बात भी हुई। लोग राजनीतिक बातचीत के मायने तलाश रहे हैं। बहरहाल झामुमो ने दुमका से हेमंत सोरेन के छोटे भाई बसंत सोरेन के नाम की औपचारिक घोषणा कर दी है। तीन नवंबर को चुनाव होना है। बसंत 12 अक्‍टूबर को अपना नामांकन दाखिल करेंगे। जहां तक बेरमो सीट का सवाल है तो स्‍व. राजेंद्र सिंह के बेटे, प्रदेश युवा कांग्रेस के पूर्व अध्‍यक्ष जयमंगल सिंह उर्फ अनूप सिंह और छोटे बेटे कुमार गौरव के बीच खींच- तान चल रही थी। गौरव, विधायक व पूर्व मंत्री कमलेश सिंह के दामाद हैं। कांग्रेस अध्‍यक्ष रामेश्‍वर उरांव अपनी टीम के साथ बेरमो का एक राउंड का दौरा कर आये हैं। बताया जाता है कि गौरव को समझा लिया गया है, अनूप सिंह के नाम पर सहमति बन गई है। पिता की मौत के बाद अनूप सिंह ने राष्‍ट्रीय कोलियरी मजदूर संघ व राष्‍ट्रीय खान मजदूर फेडरेशन में उनकी जगह ली या कहें विरासत संभाली। इधर भाजपा प्रदेश चुनाव समिति ने प्रत्‍याशियों के चयन के लिए प्रदेश अध्‍यक्ष दीपक प्रकाश, भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी और संगठन मंत्री धर्मपाल सिंह को अधिकृत कर दिया है। ये नामों को अंतिम रूप देने के लिए केंद्रीय नेतृत्‍व को सूची भेजेंगे। बेरमो सीट पर आजसू की नजर थी। राज्‍यसभा चुनाव के दौरान आजसू के समर्थन के दौरान मामला सतह पर आया था। शुक्रवार को प्रदेश भाजपा अध्‍यक्ष दीपक प्रकाश और संगठन मंत्री धर्मपाल सिंह  आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो से उनके रांची आवास पर मिले। उसके बाद दीपक प्रकाश ने कहा कि सुदेश महतो ने दोनों सीटों पर भाजपा उम्‍मीदवार को समर्थन का निर्णय लिया है।

बदली हुई है तस्‍वीर

पिछले चुनाव की तुलना में अभी की तस्‍वीर बदली हुई है। महागठबंधन में झामुमो, कांग्रेस और राजद कायम हैं। उम्‍मीदवारों के चेहरे भी लगभग स्‍पष्‍ट हैं। वहीं भाजपा उम्‍मीदवारों की तस्‍वीर साफ नहीं है। हां भाजपा के साथ अब आजसू है और बाबूलाल मरांडी ने अपनी पार्टी जेवीएम का विलय कर दिया है। बीते चुनाव में जेवीएम से अंजुला मुर्मू लड़ी थीं मगर इतना वोट नहीं आया था कि हार-जीत के अंतर को पाट पातीं। अंतर 13 हजार से अधिक का था और मूर्मू को तीन हजार से कुछ अधिक वोट मिले थे। बेरमो से 2019 में भाजपा के योगेश्‍वर महतो को राजेंद्र सिंह ने 25 हजार से अधिक मतों से हराया था। तब आजसू उम्‍मीदवार काशीनाथ सिंह को महज करीब 16534 मतों पर संतोष करना पड़ा था। यानी आजसू का वोट गैप पाटने के लिए पर्याप्‍त नहीं था। 

बाबूलाल मरांडी का टेस्‍ट

भाजपा अपना प्रभाव दिखाने के लिए किसी भी सूरत में उप चुनाव में कम से  एक सीट पर कब्‍जा चाहती है। बाबूलाल मरांडी का यह टेस्‍ट भी है। भाजपा विधायक दल का नेता बनने के बाद वे दौरे पर नहीं निकल पाये हैं। सिर्फ पत्राचार उनका हथियार बना हुआ है। भाजपा में विलय के बावजूद नेता प्रतिपक्ष का दर्जा उन्‍हें नहीं मिल पाया है। दलबदल का मामला मानते हुए विधानसभा अध्‍यक्ष सुनवाई कर रहे हैं। सुनवाई कहीं लंबी न खिंच जाये इसे देखते हुए बाबूलाल मरांडी को दुमका से चुनाव लड़ाने की चर्चा थी। यह उनका प्रभाव क्षेत्र भी रहा है। केंद्रीय नेतृत्‍व से मिलने के बाद हाल ही उन्‍होंने साफ कर दिया कि बाप और मां ( शिबू सोरेन और उनकी पत्‍नी) को हरा चुका हूं। बेटे से क्‍या लड़ूंगा। इस बीच विनोद शर्मा को दुमका विधानसभा का प्रभारी बना दिया गया है। विनोद शर्मा बाबूलाल के बेहद करीबी माने जाते हैं मगर पूर्व मंत्री और संभावित उम्‍मीदवार लुईस मरांडी से उनका रिश्‍ता बेहतर नहीं बताया जाता है। ऐसे में अपना परफार्मेंस दिखाने के साथ उस रिश्‍ते को साधना भी बाबूलाल के लिए चुनौती होगी। दुमका मुख्‍यमंत्री हेमंत सोरेन की छोड़ी हुई सीट है। शासन उनका है। ऐसे में दुमका सीट हासिल करना माद में शेर के शिकार जैसा होगा।

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