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चंडीगढ़: चुनाव छोटा संदेश बड़ा

आखिरकार अदालती आदेश से ‘इंडिया’ गठबंधन का मेयर बनने के मायने सब कुछ किसी फिल्‍मी कहानी की तरह था।...
चंडीगढ़: चुनाव छोटा संदेश बड़ा

आखिरकार अदालती आदेश से ‘इंडिया’ गठबंधन का मेयर बनने के मायने

सब कुछ किसी फिल्‍मी कहानी की तरह था। छोटे-से चंडीगढ़ के नगर निगम का चुनाव सरेआम धांधली और अदालती हथौड़े के बजने की मिसाल बन गया। दोनों ही तरह की घटनाएं ऐतिहासिक थीं, यानी पहले कभी ऐसा न देखा, न सुना गया। 30 जनवरी को निगम के मेयर के वोटों की गिनती के वक्‍त पीठासीन अधिकारी का मतपत्रों पर निशान लगाकर आठ वोट रद्द करते वीडियो वायरल हो गया। 20 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने अधिकारी को अदालत में बुलाकर दंडित करने और उसी गिनती के आधार पर विजेता बदलने का फैसला सुनाया। इस तरह आम आदमी पार्टी (आप) और कांग्रेस के ‘इंडिया’ गठबंधन के कुलदीप कुमार धालोर मेयर बन गए, जो पहले धांधली की वजह से हार गए थे। गिनती के दिन विजेता बताए गए भाजपा के मनोज सोनकर अदालती सुनवाई शुरू हाते ही इस्‍तीफा देकर निकल गए। इससे ‘इंडिया’ गठबंधन को संजीवनी मिल गई है। आप के राष्ट्रीय संयोजक, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इसे ‘संविधान और लोकतंत्र की जीत’ बताया।

पीठासीन अधिकारी अनिल मसीह

वोट की धांधली करने वाले पीठासीन अधिकारी अनिल मसीह

हैरत की बात है कि वृहन्‍मुंबई नगर निगम के तकरीबन 70,000 करोड़ रुपये के विशाल बजट के सामने महज 1,200 करोड़ रुपये के बजट वाले चंडीगढ़ नगर निगम के मेयर पद पर काबिज होने की लड़ाई सियासी तौर इस कदर अहम क्‍यों हो गई? फिर, यहां मेयर और पार्षदों की भूमिका भी बेहद मामूली है क्‍योंकि बजट और फैसले लेने के लिए म्‍युनिसिपल कमिश्‍नर के पद पर अफसरशाही काबिज रहती है। इसका जवाब शायद उस नैरेटिव में छुपा है कि यह ‘इंडिया’ गठबंधन की साझा चुनौती का यह पहला चुनावी प्रयोग था, जो साबित करता कि भाजपा अजेय नहीं है। शायद इसलिए भाजपा किसी कीमत पर हार की धारणा बनने देना नहीं चाहती थी। गौर करें कि भाजपा के मेयर के ऐलान के बाद फौरन पार्टी अध्‍यक्ष जे.पी. नड्डा ने ‘इंडिया’ ब्‍लॉक की हार का ट्विट किया। यही वजह है कि आप और कांग्रेस की याचिका पर 20 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट का फैसला गठबंधन के लिए मायने रखता है।

सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्‍यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुआई में तीन जजों की पीठ ने कहा, “कोर्ट के लिए संविधान की धारा 142 में पूरा न्याय करने की बात कही गई है। चुनावी लोकतंत्र की प्रक्रिया को छल से नाकाम नहीं किया जा सकता है। घोषित चुनाव परिणाम से जाहिर है कि याचिकाकर्ता को 12 मत मिले और आठ को अवैध बताया गया। पर ऐसा गलत तरीके से किया गया। अवैध मतों में हरेक मत वैध तरीके से याचिकाकर्ता के पक्ष में डाला गया था।” सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी लोकतंत्र में धक्केशाही से मेयर की कुर्सी कब्जाने की कोशिश करने वाली भाजपा के लिए तगड़ा झटका है। उधर, इस जीत ने ‘इंडिया’ गठबंधन की आगामी लोकसभा चुनाव में आगे बढ़ने की राह आसान की है।

निर्वाचित मेयर कुलदीप कुमार

निर्वाचित मेयर कुलदीप कुमार

इसके बाद एकाध दिन में ही कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच लोकसभा चुनाव के लिए सीटों के तालमेल की बात पक्‍की हो गई। दिल्‍ली में 7 में 3 सीटों और चंडीगढ़ की इकलौती पर कांग्रेस लड़ेगी। आप के जिम्मे हरियाणा में एक (कुरुक्षेत्र) और गुजरात में दो सीटें (भरुच और भावनगर) रहेंगी, जबकि पंजाब में दोनों पार्टियां अलग-अलग लड़ेंगी। दरअसल एक संसदीय सीट वाले केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ के मेयर का पद नाक का सवाल बन गया है। आठ साल तक भाजपा के पाले में रहा मेयर पद खिसकता देख पार्टी ने जोड़-तोड़ के चक्कर में चुनाव की तारीख खिसकाने की कोशिश की। 18 जनवरी को होने वाला चुनाव पंजाब और हरियाणा हाइकोर्ट में दाखिल याचिका में यह कहकर 6 फरवरी तक खिसकाया गया कि चुनाव के लिए नियुक्त पीठासीन अधिकारी अनिल मसीह बीमार हैं। 

हाइकोर्ट के निर्देश पर 30 जनवरी को 35 पार्षद वाले निगम के मेयर चुनाव में आप के 13 और कांग्रेस के 7 पार्षदों को मिलाकर गठबंधन के पक्ष में 20 मत पड़े। लेकिन पीठासीन अधिकारी अनिल मसीह ने 8 मतपत्रों पर सीसीटीवी कैमरे की ओर बार-बार देखते हुए कलम से निशान लगाकर रद्द करार दिया। इस तरह गठबंधन उम्‍मीदवार के पक्ष में 12 वोट ही दर्ज किए गए। दूसरी ओर, 14 पार्षद वाली भाजपा को 16 मत (एक अकाली दल का और एक भाजपा सांसद का, जिसे वोट करने का अधिकार है) दर्ज किए गए और आनन-फानन भाजपा के मनोज सोनकर को मेयर की कुर्सी पर बैठा दिया गया। मजे की बात है कि जल्दबाजी में मसीह ने मेयर पद के प्रत्याशी कुलदीप कुमार का मत भी रद्द कर दिया था। मसीह को शायद सीसीटीवी कैमरे के बंद हो जाने का एहसास था मगर ऐसा हुआ नहीं और फुटेज वायरल हो गए।

मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तब भी भाजपा ने हार नहीं मानी। अमूमन ऐसे मामलों में दोबारा चुनाव कराए जाने की अदालती परंपरा के मद्देनजर पार्टी ने आप के तीन पार्षदों को अपने पाले में कर लिया। स्‍थानीय चुनावों में दलबदल कानून लागू नहीं होता इसलिए पाला बदलना आसान है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने दोबारा चुनाव कराने की बजाय सारे मत्रपत्रों को मंगवाया और रद्द किए गए आठ मतों को वैध पाया और मेयर पद पर गठबंधन की जीत का ऐलान कर दिया।

आप-कांग्रेस गठबंधन मेयर पद बचाने में सफल रहा मगर सीनियर डिप्टी मेयर और डिप्टी मेयर पद के लिए नए सिरे से चुनाव होने हैं। उसमें भाजपा की जीत तय है, क्‍योंकि आप के तीन पार्षदों को मिलाकर भाजपा के 19 वोट हो जाते हैं, जबकि गठबंधन के पास 17 वोट ही बचते हैं। इसके अलावा भाजपा के पास यूटी प्रशासक द्वारा नामित 9 पार्षद भी हैं, जो मताधिकार का प्रयोग नहीं कर सकते, लेकिन उसका पलड़ा भारी बनाते हैं।

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