इसी माह 15 नवंबर ( झारखंड स्थापना दिवस) के पूर्व विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर जनगणना के कालम में आदिवासियों के लिए सरना धर्म कोड शामिल करने का प्रस्ताव लाकर केंद्र को भेजने की मुख्यमंत्री की घोषणा के बावजूद आदिवासी संगठन शांत नहीं पड़े हैं। मुख्यमंत्री की घोषणा को खारिज करते हुए सरना के बदले आदिवासी धर्म कोड की मांग उठ रही है। पिछले कुछ महीनों से सरना-आदिवासी धर्म कोड को जनगणना कॉलम में शामिल करने की मांग को लेकर आदिवासी संगठन लगातार आंदोलन कर रहे हैं1 धरना, प्रदर्शन, मानव श्रृंखला का निर्माण, हस्ताक्षर अभियान, चक्का जाम जैसे कार्यक्रम किये गये। इसी बीच मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने विशेष सत्र बुलाने का एलान किया। प्रस्ताव सरना का पास हो या आदिवासी का सरकार के लिए एक शब्द भर का फर्क है। अगर सरना नाम से प्रस्ताव आया तो हेमंत सरकार का इरादा जाहिर हो जायेगा कि नियत साफ नहीं है।
राष्ट्रीय आदिवासी धर्म समन्वय समिति ने रविवार को रांची में राज्य स्तरीय बैठक कर सरना धर्म कोड की मांग को नकार दिया है। विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष देवेंद्र चंपिया की अध्यक्षता में हुई बैठक में 32 आदिवासी समुदायें ने सर्व सम्मति से सरना धर्म कोड के प्रस्ताव को खारिज कर दिया। देश के विभिन्न राज्यों में आदिवासियों के सौ से अधिक समुदाय हैं। आदिवासियों के विभिन्न समुदायों की बहुलता के आधार पर अलग-अलग नामों से कहीं भिल्ली ( भील) कहीं गोंड कहीं डोनिपोलो कहीं सनामही धर्म कोड की मांग उठती रही। यही आधार बनाकर 2015 में जनगणना महानिबंधक ने सरना धर्म कोड के प्रस्ताव को खारिज कर दिया था।
कहा था कि एक सौ आदिवासी समुदाय हैं। इस संकट को देखते हुए आदिवासी संगठनों ने नाम में एकरूपता की पहल की। गुजरात और अंडमान में विभिन्न राज्यों के आदिवासी संगठनों की बैठक कर एक नाम आदिवासी और कोष्ठक में क्षेत्रीय सामुदायिक नाम पर सहमति बनाई गई। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अगर विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर सरना धर्म कोड का प्रस्ताव पास कर केंद्र को भेजते हैं तो पहले की तरह मामला फंस जायेगा और उनका इरादा जाहिर हो जायेगा कि वे भीतर से इसके प्रति इमानदार नहीं हैं।
रांची में आठ को राष्ट्री सम्मेलन, 21 फरवरी को रैली
राष्ट्रीय आदिवासी धर्म समन्वय समिति ने आठ नवंबर को गुजरात और अंडमान की तरह रांची में राष्ट्रीय सम्मेलन करने का निर्णय किया है। समिति के संयोजक पूर्व मंत्री देवकुमार धान के अनुसार सम्मेलन में महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, प.बंगाल, राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, दिल्ली, छत्तीसगढ़, बिहार, असम, उत्तर प्रदेश आदि से आदिवासी संगठनों के प्रतिनिधि शामिल होंगे।
सम्मेलन के बाद केंद्रीय पदाधिकारी झारखंड के मुख्यमंत्री और राज्यपाल से मिलकर बतायेंगे कि सरना धर्म कोड के बदले आदिवासी धर्म कोड क्यों चाहिए। धान कहते हैं कि सरना तो पूजा स्थल है, मंदिर, मस्जिद और गुरूद्वारा जैसे धर्म स्थल के नाम पर किसी भी देश में धर्म कोड नहीं है। समिति ने अपनी मांगों को लेकर पांच से 14 नवंबर तक झारखंड के सभी जिलों में धरना- प्रदर्शन कर मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपने, 21 फरवरी को रांची के मोरहाबादी मैदान में आदिवासी धर्म कोड के लिए विशाल रैली करने की घोषणा की है। 1871 से जनगणना कोड में आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड था। 1961 की जनगणना में इसे विलोपित कर दिया गया। आदिवासी संगठन उसी की पुनर्वापसी चाहते हैं।