कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बीच बहुत ही अच्छे रिश्ते रहे हैं लेकिन हाल के दिनों में दीदी ने कांग्रेस पर सियासी स्ट्राइक करते हुए उसके कई विधायकों को अपने पाले में कर लिया है। बुधवार को तो उन्होंने यहां तक कह दिया कि दिल्ली आने पर हर बार सोनिया गांधी से क्यों मिलूं? उससे एक दिन पहले ही उन्होंने कांग्रेस नेता कीर्ति आजाद और हरियाणा से टीम राहुल के सदस्य रहे अशोक तंवर को अपनी पार्टी में शामिल करवाया था। बुधवार को भी मेघालय के पूर्व सीएम समेत 17 में से 12 विधायक कांग्रेस छोड़कर तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए।
एनडीटीवी की खबर के मुताबिक, ममता बनर्जी और सोनिया गांधी के बीच मधुर रिश्ते की कहानी राजीव गांधी से शुरू होती है, जब उन्होंने ममता को यूथ कांग्रेस का महासचिव बनाया था। राजीव से नजदीकी की वजह से ममता सोनिया गांधी की भी करीबी हो गई थीं। दोनों के बीच एक भावुक रिश्ता रहा है। 1999 में जब वो एनडीए में शामिल होकर अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में बतौर मंत्री शपथ लेने पहुंची थीं, तब राष्ट्रपति भवन में दोनों नेता गले मिलते देखी गई थीं। तब ममता को बधाई देते हुए सोनिया गांधी ने पूछा था कि कांग्रेस में कब लौटोगी? उस वक्त सोनिया गांधी कांग्रेस की अध्यक्ष बन चुकी थीं।
इसी साल जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने कांग्रेस प्रमुख को राजनीतिक रूप से दबाने की कोशिश की और संवैधानिक पदों खासकर प्रधानमंत्री एवं राष्ट्रपति पद पर विदेशी मूल के लोगों को पहुंचने से रोकने के लिए संसद में बिल लाने की कोशिश की तो उसी सरकार में रेल मंत्री और गठबंधन सहयोगी तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी ने सरकारी मुहिम को झटका दे दिया था। ममता ने तब साफ तौर पर कहा था कि सोनिया गांधी को अलग-थलग करने के प्रयास सत्तारूढ़ गठबंधन पर भारी पड़ सकते हैं।
खबर के मुताबिक, 1999 के चुनावों में बीजेपी ने सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा जोर-शोर से उठाया था। इसलिए सरकार बनने पर उस पर एक तरह का नैतिक दबाव था कि इस बारे में संसद से कानून पारित कराया जाए। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी इस मामले में बीजेपी पर दबाव बना रहा था। इन सबके बीच तब के कानून मंत्री राम जेठमलानी और सूचना एवं प्रसारण मंत्री अरुण जेटली को इस विवादित बिल का ड्राफ्ट तैयार करने की जिम्मेदारी दी गई थी।
तब इन नेताओं ने कहा था कि बिल ड्राफ्ट करने में थोड़ा वक्त लग सकता है। बिल की तैयारियों के बीच ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से संसद भवन में ही मुलाकात की और उनसे अपना विरोध दर्ज कराया। ममता ने दो टूक शब्दों में कहा कि सरकार विदेशी मूल के भारतीयों (जैसे गांधी) को राष्ट्रपति और प्रधान मंत्री जैसे शीर्ष पदों के लिए चुनाव लड़ने से रोकने के लिए कोई भी कानून लाने से पहले नफा-नुकसान का आंकलन कर लें। इस पर पीएम वाजपेयी ने तब सोच-विचार करने का आश्वासन दिया था।
इसके बाद कांग्रेस के कई सांसदों ने इस प्रस्तावित बिल का विरोध किया था। तृणमूल कांग्रेस के भी सांसदों ने बिल का विरोध करना शुरू कर दिया था।