यूपी में सपा-बसपा-रालोद गठबंधन को झटका लगा है। लोकसभा चुनाव में निषाद पार्टी गठबंधन से अलग हो गई है और अब भाजपा की अगुवाई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में शामिल हो सकती है। गठबंधन से अलग होने का ऐलान करने के बाद निषाद पार्टी के मुखिया डॉ. संजय निषाद ने भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से मुलाकात की। माना जा रहा है कि भाजपा निषाद पार्टी को दो सीटें दे सकती है।
गठबंधन में निषाद पार्टी को लेकर रस्साकसी काफी दिनों से चल रही थी। निषाद पार्टी चाहती थी कि गठबंधन में और सीटों का ऐलान कर दिया जाए, लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा था। चार दिन पहले सपा मुखिया अखिलेश यादव ने गठबंधन का ऐलान तो किया, लेकिन सीटों की घोषणा नहीं की।
सीटों को लेकर नहीं बनी बात
निषाद पार्टी के मुखिया डॉ. संजय निषाद के बेटे प्रवीण निषाद सपा के टिकट से ही गोरखपुर से उपचुनाव में सांसद बने हैं। निषाद पार्टी को सपा के कोटे से एक सीट महराजगंज देने की सहमति बनी थी, लेकिन इसकी घोषणा नहीं हुई। इसके अलावा बसपा से एक सीट पर उन्हीं के सिम्बल से निषाद पार्टी के कार्यकर्ता को चुनाव लड़ाने की बात हुई थी, लेकिन बसपा मुखिया मायावती ने ऐसा संभव नहीं है, कहकर बात टाल दी। उन्होंने एक-दो जगहों पर मछुआ समाज के बसपा कार्यकर्ताओं को प्रत्याशी बनाने का आश्वासन दिया था, लेकिन यह भी नहीं हो पाया। इस बात को लेकर गठबंधन की सहभागी निषाद पार्टी के कार्यकर्ता बसपा और सपा मुखिया से नाराज थे।
सपा-बसपा पर लगाया उपेक्षा का आरोप
निषाद पार्टी के मुखिया ने सपा और बसपा मुखिया पर उपेक्षा का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि गठबंधन के नेता मेरा नाम भी नहीं लेते। इसलिए निषाद पार्टी ने एक निर्णय लिया है कि हम गठबंधन के साथ नहीं हैं, हम स्वतंत्र हैं, स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ सकते हैं और अन्य विकल्पों की भी तलाश कर सकते हैं। पार्टी अब स्वतंत्र है। इसके बाद कैबिनेट मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह के साथ उन्होंने भाजपा के यूपी प्रभारी जेपी नड्डा, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डॉ. महेंद्रनाथ पांडेय और महामंत्री संगठन सुनील बंसल से मुलाकात की। डा. निषाद ने इसके अलावा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भी मुलाकात की है।
पूर्वांचल की कई सीटों पर भाजपा की राह आसान
2013 में निषाद पार्टी की स्थापना हुई थी। हालांकि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. संजय निषाद राजनीति में दो दशक से सक्रिय हैं। वह सबसे पहले बामसेफ से जुड़े और गोरखपुर जिले के कैम्पियरगंज विधानसभा से एक बार चुनाव भी लड़े, लेकिन सफलता नहीं मिली। इसके बाद वह अपनी जाति की राजनीति में जुट गए। वर्ष 2008 में उन्होंने ऑल इंडिया बैकवर्ड एंड माइनॉरिटी वेलफेयर मिशन और शक्ति मुक्ति महासंग्राम नाम के दो संगठन बनाए। उन्होंने निषाद पार्टी से पहले राष्ट्रीय निषाद एकता परिषद बनाई और बतौर राष्ट्रीय अध्यक्ष निषादों की विभिन्न उपजातियों को एक करने का प्रयास किया। पार्टी का दावा है कि यूपी में निषाद वंशीय 17 फीसदी हैं और वह 152 विधानसभा सीटों पर प्रभावशाली स्थिति में हैं। इससे पूर्वांचल में कई सीटों पर भाजपा की राह आसान हो सकती है।