राजद के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक रविवार रात में यह फैसला सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव के घर पर हुआ। लेकिन कानों कान किसी को इस बात की खबर नहीं थी कि नीतीश कुमार के नाम पर सहमति बन गई है। यहां तक कि मुलायम सिंह यादव की पत्रकार वार्ता से पहले इस बात के कयास लगाए जा रहे थे कि शायद मुलायम राजद और जदयू नेताओं को यह संदेश देना चाहते हैं कि मीडिया में बयान देने से बचें। लेकिन जैसे ही मुलायम ने नीतीश कुमार के नाम की घोषणा की‚ बाजी पूरी तरह से पलट गई। पत्रकार वार्ता के दौरान मुलायम के साथ लालू यादव और शरद यादव भी थे।
मुलायम ने कहा‚ लालू यादव ने नीतीश कुमार का नाम मुख्यमंत्री पद के लिए प्रस्तावित किया है और इस एकजुटता से मैं बहुत खुश हूं। उन्होंने यह भी कहा कि दोनों दलों के नेताओं के बीच कोई मतभेद नहीं है अगर कोई मतभेद हुआ तो उसे तुरत दूर कर देंगे। इस मुद्दे पर अपनी चुप्पी तोड़ते हुए लालू यादव ने कहा कि वह स्वयं चुनाव नहीं लड़ सकते और उनकी पार्टी या परिवार से मुख्यमंत्राी पद का कोई दावेदार नहीं है। लेकिन लालू उन सवालों को टाल गए जिसमें यह पूछा गया कि पार्टी के कई नेता नीतीश कुमार के नाम को लेकर असंतोष जता रहे हैं। लालू की इस चुप्पी से एक बात तो साफ है कि पार्टी के अंदर स्थितियां अनुकूल नहीं हैं।
राजद के एक यादव नेता कहते हैं कि नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार अभी नहीं घोषित किया जाना चाहिए। इससे यादव मतदाताओं के बीच असंतोष पनपेगा क्योंकि नीतीश कुमार के पिछले शासनकाल में यादवों के साथ अन्याय हुआ था। अगर यह वर्ग नाराज हो गया तो इससे भाजपा या अन्य दलों को फायदा हो सकता है। गौरतलब है कि एक समय लालू और नीतीश एक दूसरे के धुर विरोधी रहे लेकिन अब जनता परिवार के लिए उनके करीब आने को मजबूरी के तौर पर देखा जा रहा है। दोनों दलों को पिछले वर्ष लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था और भाजपा एवं उसके सहयोगी दलों ने 40 में से 31 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी।
लालू यादव ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर मजबूरी में स्वीकार किया‚ यह उनके उस बयान से भी झलकता है, जिसमें लालू ने कहा था कि मैं हर तरह का जहर पीने को तैयार हूं। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि जल्दबाजी में लिया गया यह फैसला लालू की मजबूरी हो सकती है लेकिन इससे उनका नुकसान भी हो सकता है। क्योंकि पार्टी के कई नेता इस फैसले से नाराज हो सकते हैं या फिर दूसरे दलों में अपना ठिकाना ढूढ़ सकते हैं। कभी लालू यादव के करीबी रहे और वर्तमान में भाजपा सांसद और केंद्रीय मंत्री रामकृपाल यादव कहते हैं कि यह गठबंधन चुनाव आते-आते टूट जाएगा क्योंकि यह मजबूरी का गठबंधन है और ऐसे गठबंधन ज्यादा दिन नहीं चलते।