“पूर्व कांग्रेसियों के हाथ में भाजपा की डोर के बाद भी जीत की आश्वस्ति न होने से नजरें फिर अकाली से गठबंधन की ओर”
भारतीय जनता पार्टी ने पंजाब में मिशन 2024 के लिए कमर कस ली है। यह अलग बात है कि सूबे के शीर्ष रणनीतिकारों ने संगठन की बागडोर कभी खुद को “जन्मजात कांग्रेसी” कहने वाले पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष और अब बागी होकर भाजपा में शामिल सुनील जाखड़ को सौंप दी है। इस बड़े बदलाव के साथ अब भाजपा पंजाब में पुराने कांग्रेसी नेताओं के हाथ में पहुंच गई है। पार्टी में अब तक शामिल होने वालों में पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के अलावा कांग्रेस के छह पूर्व मंत्री और इतने ही पूर्व विधायक शामिल हैं। नई आमद में बटाला से तीन बार के कांग्रेस विधायक अश्विनी सेखड़ी भी 25 जुलाई को भाजपाई हो गए हैं।
कांग्रेसयुक्त भाजपा को बागडोर देने के बाद भी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को भरोसा नहीं है कि कांग्रेसियों के दम पर राज्य में मिशन 2024 फतह होगा या नहीं। ऐसे में अब भाजपा अपने पुराने भागीदार शिरोमणि अकाली दल के साथ भी नए ढंग से समीकरण साधने में जुटी हुई है। एनडीए कुनबे से छिटकते क्षेत्रीय दलों की वजह से एक-एक लोकसभा सीट पर जीत के लिए पुराने गठबंधनों को फिर से जोड़ना भाजपा के लिए इस बार कड़ी चुनौती है। 2019 के लोकसभा चुनाव में पंजाब की 13 में से 8 सीटें कांग्रेस ने और 4 सीटें अकाली दल-भाजपा गठबंधन ने जीती थीं जिसमें अकाली और भाजपा की दो-दो सीटें थीं जबकि आम आदमी पार्टी की झोली में एक सीट आई थी।
2020 में केंद्र के तीन कृषि कानूनों के विरोध में अकाली दल ने किसान आंदोलन के पक्ष में खड़े होकर एनडीए से 30 साल पुराना रिश्ता तोड़ लिया था। भाजपा ने पहली बार बगैर गठबंधन के 2022 का विधानसभा चुनाव लड़ा था, जो उसके लिए बहुत चुनौतीपूर्ण रहा था। उसे 113 विधानसभा सीटों में से मात्र दो सीटों पर संतोष करना पड़ा था। 2024 में दोबारा ऐसी मिट्टी पलीद न होने से बचने के लिए भाजपा ने इस बार बागी कांग्रेसियों पर दांव खेला है। इससे पहले पंजाब में दो बार मुख्यमंत्री रहे कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस से अलग होकर पंजाब लोक कांग्रेस पार्टी बना ली थी, लेकिन सितंबर 2022 में उन्होंने अपनी पार्टी का भाजपा में विलय कर दिया। विलय के बाद उन्हें राष्ट्रीय कार्यकारिणी का सदस्य बनाया गया था। कैप्टन गुट के कांग्रेसियों में सुनील जाखड़ के अलावा छह पूर्व कैबिनेट मंत्रियों में मनप्रीत बादल, गुरप्रीत सिंह कांगड़, राजकुमार वेरका, सुंदर शाम अरोड़ा, बलबीर सिंह सिद्धू और राणा गुरमीत सोढ़ी जैसे नामों ने पिछले 8 से 10 महीने में भाजपा का दामन थामा है। सबसे पहले भाजपा का दामन थामने वालों में विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा के छोटे भाई पूर्व विधायक फतेहजंग बाजवा थे।
अकाली दल के सुखबीर बादल
कैप्टन अमरिंदर ने संगठन की बागडोर खुद संभालने के बजाय अपने करीबी सुनील जाखड़ को आगे बढ़ाया। कई बागी कांग्रेसियों के आने के बाद भी भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व जीत के प्रति आश्वस्त नहीं है। यही वजह है कि संगठन की मजबूती के साथ अकाली दल के साथ भी फिर से गठजोड़ की संभावनाएं तलाशी जा रही हैं। इसका संकेत जाखड़ के बयान से भी मिलता है। उन्होंने हाल ही में कहा, “इस बार भाजपा छोटे भाई नहीं, बल्कि बड़े भाई की भूमिका में आगे बढ़ेगी।” अपने हर बयान में आप सरकार और कांग्रेस को घेरने वाले जाखड़ की अकाली दल पर चुप्पी से लगता है कि उसे फिर अपने पाले में करने की कवायद जारी है, लेकिन यह इतना आसान नहीं होगा। शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर बादल ने आउटलुक से कहा, “फिलहाल हाथी (बसपा) मेरा साथी है।”
इसका मतलब साफ है कि अकाली दल समय पर ही गठबंधन को लेकर अपने पत्ते खोलेगा। वैसे गणित के हिसाब से देखा जाए, तो भाजपा और अकाली दल के सामने दोबारा गठबंधन के अलावा कोई चारा नहीं है क्योंकि अकाली दल और बसपा गठबंधन के 2022 में विधानसभा चुनावी नतीजे कमजोर रहे थे। भाजपा से गठबंधन समाप्त कर बसपा के साथ मिलकर लड़े प्रकाश सिंह बादल, सुखबीर बादल सरीखे दिग्गजों को भी करारी हार झेलनी पड़ी थी। यही वजह है कि तीन सीटों पर सिमटे अकाली दल के लिए भी मिशन 2024 बड़ी चुनौती है।
प्रकाश सिंह बादल के निधन के बाद पार्टी में सुखबीर का प्रभाव उतना नहीं है। कमजोर जनाधार वाली बसपा अकाली दल के लिए कमजोर कड़ी साबित हो रही है। जाखड़ की ताजपोशी के बाद भाजपा में भी विरोध के हल्के सुर सुनाई देने लगे हैं। ऐसे में खांटी भाजपाई चाहेंगे कि अकाली दल के साथ एक बार फिर गठबंधन हो ताकि पूर्व कांग्रेसियों के दबदबे पर लगाम कसी रह सके।