शनिवार को ही अखिलेश ने एक समाचार चैनल द्वारा आयोजित कार्यक्रम में कहा था कि मुख्तार अंसारी का पार्टी में स्वागत नहीं होगा। हम ऐसे लोगों को पार्टी में नहीं चाहते हैं। उन्होंने अंसारी के कौमी एकता दल (क्यूईडी) के सपा में विलय पर सार्वजनिक तौर पर अपनी नाखुशी जाहिर की थी। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के बयान के तुरंत बाद पार्टी के संसदीय दल की बैठक हुई जिसमें विलय नहीं करने और बलराव यादव को फिर से मंत्रिपरिषद में शामिल करने का फैसला किया गया। सपा के राष्ट्रीय महासचिव राम गोपाल यादव ने पार्टी की नीति निर्माण की सर्वोच्च निकाय की बैठक के बाद कहा, समाजवादी पार्टी में कौमी एकता दल का विलय नहीं होगा। संसदीय बोर्ड की बैठक में यह फैसला किया गया है। कैबिनेट मंत्री शिवपाल यादव द्वारा 21 जून को विलय की घोषणा से परिवार में घमासान मच गया था।
अगले साल के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले अंसारी के कौमी एकता दल के सपा में विलय के संबंध में अखिलेश ने अपनी नाखुशी पहले भी जाहिर करते हुए कहा था, अगर पार्टी कार्यकर्ताओं ने अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन किया तो दूसरी पार्टी की कोई जरूरत नहीं होगी। बलराम को बर्खास्त करने के अलावा ऐसा समझा जाता है कि अखिलेश कारा मंत्री बलवंत रामूवालिया से भी नाराज हैं जिन्होंने कथित तौर पर अंसारी को आगरा जेल से लखनउ जेल स्थानांतरित करने का आदेश दिया था। अंसारी भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की 2005 में की गई हत्या के सिलसिले में आगरा जेल में बंद हैं। मुख्यमंत्री ने हालांकि बाद में इस विलय को पार्टी का आंतरिक मामला बताया था और कहा था कि उनकी इसपर कोई नाखुशी नहीं है।
सपा को उम्मीद थी कि क्यूईडी के विलय से उसे पूर्वी उत्तर प्रदेश और खासतौर पर गाजीपुर, मउ और वाराणसी में मुस्लिम वोट बैंक को हासिल करने में मदद मिलेगी। क्यूईडी का गठन मुख्तार ने अपने भाई अफजाल अंसारी और सिगबतुल्ला अंसारी के साथ मिलकर 2010 में किया था। लेकिन विलय की घोषणा ने विपक्षी पार्टियों को 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले सत्तारूढ़ दल के खिलाफ नया हथियार दे दिया। विपक्षी पार्टियों ने दावा किया कि यह सपा की हताशा को दर्शाता है। अखिलेश ने इसी तरह का कड़ा रुख 2012 के चुनाव से पहले माफिया से नेता बने डी पी यादव को शामिल करने के संबंध में किया था। यह घटनाक्रम अखिलेश के 27 जून को अपने मंत्रिपरिषद का विस्तार करने की तैयारियों के बीच हुआ है। साल 2017 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले शायद उनकी मंत्रिपरिषद में यह आखिरी फेरबदल हो। यह अखिलेश सरकार के 2012 में कार्यभार संभालने के बाद से सातवां मंत्रिपरिषद विस्तार होगा।