हरियाणा में पूर्व की राजनीति सतलुज-यमुना लिंक नहर (एसवाईएल) और बिजली के मुद्दों के इर्द-गिर्द घूमती रही है लेकिन इस बार चुनावी मैदान में यह दोनों मुद्दे गायब दिखाई दे रहे हैं। इतना ही नहीं भजन लाल, बंसी लाल तथा चौटाला सरकार को सत्ता से बाहर करने में कभी इन मुद्दों ने अहम भूमिका निभाई जबकि अब लोगों के बीच चर्चा का विषय बेरोजगारी, महंगाई, नशा, विकास और भ्रष्टाचार और परिवारवाद का मुद्दा बना हुआ है। राजनीतिक दल भी इन्हीं मुद्दों को ज्यादा तवज्जो दे रहे हैं और फील्ड में भी लोगों से बात करें तो उनका भी यही जवाब होता है कि एसवाईएल तो केवल राजनीतिक दलों का मुद्दा है, जिसका आज तक कोई हल नहीं हुआ।
भजन लाल, बंसी लाल और चौटाला सरकार दौरान बिजली बिलों को लेकर खूब आंदोलन हुए लेकिन हुड्डा सरकार के दौरान ये आंदोलन धीरे-धीरे शांत होते चले गए जबकि भाजपा सरकार ने तो जैसे इस मुद्दे पर पूर्ण विराम ही लगा दिया। ऐसा नहीं है कि इस मुद्दे पर लोग आंदोलन नहीं करते लेकिन आंदोलन के स्वर इतने बुलंद नहीं होते कि पूरे प्रदेश में ज्वलंत मुद्दा बन जाए या फिर सरकार को बैकफुट पर आना पड़ जाए।
ऐसी ही स्थिति एसवाईएल के मुद्दे को लेकर बनी हुई है। विधानसभा के अंदर और बाहर राजनीतिक दल इस मुद्दे पर एक-दूसरे के खिलाफ खूब दोषारोपण करते हैं लेकिन अब फील्ड में लोग इस पर बात ही नहीं करना चाहते। एसवाईएल मुद्दे पर दक्षिण हरियाणा की राजनीति में कभी खूब उथल-पुथल होती रही लेकिन अब राजनीति की पराकाष्ठा देखिए कि अहीरवाल में भी इस मुद्दे को लेकर कोई खास चर्चा नहीं है।
बेरोजगारी, वंशवाद तथा महंगाई का मुद्दा भी चुनावी हथियार
भाजपा सरकार जहां नौकरियों को मुद्दे पर अपनी चुनावी नैया पार करने के सपने देख रही है तो वहीं दूसरी ओर कांग्रेस, जजपा, इनेलो तथा आप ने बेरोजगारी के मुद्दे पर सरकार पर जमकर निशाना साधा हुआ है। विरोधी दल आरोप लगा रहे हैं कि भाजपा सरकार दौरान प्रदेश में सबसे ज्यादा बेरोजगारी बढ़ी है, जबकि भाजपा नेता कह रहे हैं उनके कार्यकाल दौरान सबसे ज्यादा सरकारी व प्राइवेट नौकरियां मिलीं। इतना ही नहीं विपक्षी दल आंकड़ों के साथ बढ़ती बेरोजगारी का सवाल उठा रहे हैं। भाजपा वंशवाद के मुद्दे पर विपक्षी दलो पर जमकर प्रहार कर रही है जबकि इस मुद्दे पर ‘आप’ को छोड़कर विपक्षी दलों ने चुप्पी साधी हुई है। सितम्बर से जिस तरह महंगाई का ग्राफ बढना शुरू हुआ, यह भाजपा नेताओं के लिए भी चिंता का कारण बना हुआ है। चुनावी मैदान में प्याज व टमाटर के भावों की बात हो रही है।