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इस तरह शुरू हुई थी दिल्ली की आप सरकार और उपराज्यपाल में जंग

दिल्ली के उपराज्यपाल और केजरीवाल सरकार के बीच अधिकारों की जंग को लेकर अरविंद केजरीवाल को बड़ी जीत...
इस तरह शुरू हुई थी दिल्ली की आप सरकार और उपराज्यपाल में जंग

दिल्ली के उपराज्यपाल और केजरीवाल सरकार के बीच अधिकारों की जंग को लेकर अरविंद केजरीवाल को बड़ी जीत मिली है। सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए पांच जजों ने एकमत से आदेश दिया कि उपराज्यपाल स्वतंत्र फैसले नहीं ले सकते और वह मंत्रिमंडल की सलाह और तथा सहायता लेने के लिए बाध्य हैं।

दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच टकराव की कहानी लंबे समय से चली रही है लेकिन यह टकराव शुरु हुआ दिल्ली सरकार के एंटी करप्शन ब्रांच (एसीबी) को मिली शक्तियों के कारण, जिसने रियायंस इंडस्ट्रीज और केंद्र सरकार के मंत्रियों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया और दिल्ली पुलिस के एक जवान को गिरफ्तार कर लिया। इस मसले पर दिल्ली पुलिस और दिल्ली सरकार में खूब खींचतान हुई और दिल्ली पुलिस के जवान को एसीबी से दिल्ली पुलिस में देने की मांग हुई लेकिन दिल्ली सरकार नहीं मानी। यहीं से दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के रिश्तों में खटास आनी शुरू हो गई।

कोर्ट में 'आप 'सरकार और उपराज्यपाल की शक्तियों को लेकर टकराव का लंबा इतिहास रहा है। आइए, इसे बिंदुवार समझते है-

अरविंद केजरीवाल के शासन के दौरान 2014 में रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल), मुकेश अंबानी, यूपीए सरकार के मंत्री एम वीरप्पा मोइली और मुरली देवड़ा के खिलाफ गैस के दाम ‘फिक्स’ करने को लेकर एफआईआर दर्ज की गई थी।

2 मई 2014 को आरआईएल हाईकोर्ट में एफआईआर रद्द कराने पहुंची और केंद्र सरकार के कर्मचारियों के खिलाफ दिल्ली सरकार के एंटी करप्शन ब्रांच (एसीबी) को 1993 के नोटिफिकेशन के तहत मिली शक्तियों को चुनौती दी।

8 मई को केंद्र ने हाईकोर्ट में एफआईआर को चुनौती दी कि एसीबी को मंत्रियों के खिलाफ कार्रवाई की कोई शक्ति नहीं है।

9 मई को हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार को एफआईआर रद्द करने के लिए दिल्ली सरकार को नोटिस जारी किया और एसीबी को मामले में कार्रवाई जारी रखने की मंजूरी दे दी।

20 मई को हाईकोर्ट ने आरआईएल को एसबीसी से मामले में सहयोग करने के लिए कहा।

9 अगस्त को एसीबी ने हाईकोर्ट को बताया कि उसे गैस की कीमतों को लेकर एफआईआर की शक्तियां हैं।

19 अगस्त को एसीबी ने हाईकोर्ट को कहा कि आरआईएल के खिलाफ गैस की कीमतों के मामले में वह जांच नहीं कर सकती क्योंकि केंद्र सरकार के 23 जुलाई 2014 के नोटिफिकेशन के तहत केंद्र सरकार के खिलाफ जांच की उसकी शक्तियां वापस ले ली गई हैं।

अक्तूबर-16 को दिल्ली सरकार ने हाईकोर्ट को कहा कि एसीबी आरआईएल और मंत्रियों के खिलाफ अभियोजन चला सकती है।

28 अक्तूबर को हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को एसीबी की शक्तियों के बारे में स्पष्ट करने को कहा।

4 दिसंबर को आरआईएल ने हाईकोर्ट में तर्क दिया कि राज्य सरकार द्वारा गैस कीमतों को लेकर केंद्र के फैसले उठाया गया सवाल गलत है।

25 मई 2015 को हाईकोर्ट ने कहा कि केंद्र के तहत आने वाले पुलिसकर्मी को गिरफ्तार करने का एसीबी को अधिकार है। कोर्ट ने कहा कि केंद्र के 21 मई के नोटिफिकेशन में एसीबी की शक्तियां संदिग्ध हैं।

26 मई को हाईकोर्ट में 21 मई के नोटिफिकेशन के खिलाफ एक जनहित याचिका लगाई गई कि नौकरशाहों की नियुक्ति की शक्तियां उपराज्यपाल को दी जाएं।

28 मई को दिल्ली सरकार उपराज्यपाल को नौकरशाहों की नियुक्ति की शक्तियां देने के खिलाफ हाईकोर्ट में चुनौती दी और केंद्र सरकार हाईकोर्ट के 25 मई के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गई जिसमें एसीबी की शक्तियों को संदिग्ध बताया गया।

29 मई को हाईकोर्ट ने उपराज्यपाल से दिल्ली सरकार के नौ नौकरशाहों के एक पद से दूसरे पर शिफ्ट करने के प्रस्ताव पर विचार करने को कहा।

10 जून को कोर्ट ने एसीबी की शक्तियों को लेकर गृहमंत्रालय के नोटिफिकेशन पर स्टे देने से इंकार कर दिया।

27 जून को दिल्ली सरकार उपराज्यपाल द्वारा नियुक्त एसीबी चीफ एम के मीना के खिलाफ हाईकोर्ट गई।

27 जनवरी 2016 में केंद्र सरकार ने हाईकोर्ट को कहा कि दिल्ली केंद्र सरकार के नियंत्रण में है और पूर्ण राज्य नहीं है।

5 अप्रैल को आप सरकार ने हाईकोर्ट से दिल्ली के शासन में उपराज्यपाल की शक्तियों को लेकर बड़ी पीठ से सुनवाई करने को कहा।

19 अप्रैल को आप सरकार ने सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट में बड़ी पीठ गठित करने की अपनी दलील वापस ले ली।

24 मई को हाईकोर्ट ने आप सरकार की उस दलील पर फैसला सुरक्षित रख लिया जिसमें उपराज्यपाल को नौकरशाहों को नियुक्त करने और अन्य मुद्दों पर चुनौती दी गई थी।

1 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट आप सरकार की उस दलील को सुनने को तैयार हो गया जिसमें उसने हाईकोर्ट को इस मुद्दे पर फैसला करने से रोक लगाने को कहा था।

4 अगस्त को हाईकोर्ट ने कहा कि उपराज्यपाल राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के प्रशासनिक मुखिया हैं और वह दिल्ली सरकार की सलाह मानने के लिए बाध्य नहीं हैं।

15 फरवरी 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली और केंद्र सरकार के बीच का विवाद संवैधानिक पीठ के पास भेज दिया।

2 नवंबर को पीठ ने सुनवाई शुरू की।

14 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने सामने सवाल उठा कि संवैधानिक स्कीम को लेकर केंद्र और राज्य के बीच क्या स्थिति होगी।

21 नवंबर को केंद्र सरकार ने आप सरकार की दलील का विरोध करते हुए कहा कि दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश है और स्पेशल स्टेट्स स्टेट है लेकिन राज्य नहीं है।

6 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने 15 दिनों की बहस के बाद दिल्ली केंद्र के बीच शक्तियों के विवाद पर फैसला सुरक्षित रख लिया।

4 जुलाई 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उपराज्यपाल स्वतंत्र फैसले नहीं ले सकते और मंत्रिमंडल की सलाह और सहायता लेने के लिए बाध्य हैं।

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