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सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, राष्ट्रपति को लेकर तय किया ये नया नियम

सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपालों द्वारा विधेयकों को राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए अनिश्चितकाल तक लंबित...
सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, राष्ट्रपति को लेकर तय किया ये नया नियम

सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपालों द्वारा विधेयकों को राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए अनिश्चितकाल तक लंबित रखने की प्रवृत्ति पर सख्ती दिखाते हुए स्पष्ट किया है कि राष्ट्रपति को ऐसे विधेयकों पर फैसला तीन महीने के भीतर करना होगा, जिस तारीख को वे राज्यपाल द्वारा विचार के लिए भेजे गए हों। यह अहम फैसला तमिलनाडु के दस विधेयकों को लेकर दिया गया है जिन्हें राज्यपाल आर.एन. रवि ने राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए रोका था।

न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने 8 अप्रैल को सुनाए गए 415 पन्नों के विस्तृत फैसले में कहा, “हम गृह मंत्रालय द्वारा निर्धारित समयसीमा को अपनाना उचित समझते हैं और यह निर्धारित करते हैं कि राष्ट्रपति को इस तरह के संदर्भ प्राप्त होने की तारीख से तीन महीने के भीतर राज्यपाल द्वारा उनके विचार के लिए आरक्षित विधेयकों पर निर्णय लेना आवश्यक है।”

अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि यदि तीन माह की समयसीमा में निर्णय नहीं होता है, तो राज्य सरकार को स्पष्ट कारणों के साथ सूचित किया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि किसी विधेयक पर सहमति रोकने की स्थिति में राज्य सरकार को न्यायिक उपाय अपनाने का अधिकार है।

तमिलनाडु सरकार द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान अदालत ने उन दस विधेयकों को मंजूरी दी, जिन्हें राज्यपाल ने लंबित रखा था। इनमें से कई विधेयक उच्च शिक्षा क्षेत्र से संबंधित थे।

शीर्ष अदालत ने यह भी रेखांकित किया कि संविधान के अनुच्छेद 200 के अंतर्गत राज्यपाल केवल तीन विकल्पों में से किसी एक का ही चयन कर सकते हैं—विधेयक को स्वीकृति देना, उसे राष्ट्रपति के विचारार्थ सुरक्षित रखना, या उसे पुनर्विचार हेतु विधानसभा को लौटाना। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि राज्यपाल "पूर्ण वीटो" का प्रयोग नहीं कर सकते, यानी वह किसी विधेयक को अनिश्चितकाल के लिए रोक नहीं सकते।

फैसले में कहा गया कि संविधान में निर्णय के लिए कोई निश्चित समयसीमा नहीं दी गई है, लेकिन यदि किसी विधेयक को "अनावश्यक रूप से लंबी अवधि" के लिए रोका जाता है, तो इसे राज्य की विधायी प्रक्रिया में "बाधा" के रूप में देखा जाएगा। अदालत ने इस प्रकार की देरी को “निष्क्रियता” माना और कहा कि यह न्यायिक समीक्षा के अधीन होगी।

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