पश्चिम बंगाल की राजनीति में इस समय जबरदस्त उलटफेर देखने को मिल रहा है। भाजपा को बड़ा झटका देते हुए मुकुल रॉय टीएमसी में वापस आ गए हैं। माना जा रहा है कि मुकुल रॉय इस बात से नाराज थे कि 2019 लोकसभा चुनाव में भाजपा को सूबे में इतनी सीटें जिताने के बाद भी उन्हें नजरअंदाज किया गया। मुकुल रॉय को दरकिनार कर सुवेंदु अधिकारी को अहमियत दिए जाना मुकुल रॉय को रास नहीं आया और वे दोबारा तृणमूल का दामन थाम लिए। वहीं टीएमसी ज्वाइन करते ही रॉय की मुसीबतें बढ़ सकती है। जिस नारद घोटाले में तृणमूल कांग्रेस के तीन नेताओं और पूर्व महापौर की गिरफ्तारी हुई थी उस मामले में मुकुल रॉय भी आरोपी है। केंद्र सरकार पर यह आरोप लगे थे कि मुकुल रॉय बीजेपी में हैं इसलिए उन पर कार्रवाई नहीं हुई। ऐसे में अब अटकलें हैं कि नारद स्कैम उन्हें सलाखों के पीछे पहुंचा सकता है।
बता दें कि मुकुल रॉय मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के उस वक्त से करीबी रहे हैं जब ये दोनों नेता यूथ कांग्रेस में हुआ करते थे। रॉय टीएमसी के संस्थापक सदस्यों में से एक रहे हैं। तृणमूल का गठन 1998 में कांग्रेस से अलग हुए लोगों द्वारा मुख्यमंत्री ममता की अगुवाई में किया गया था। मुकुल रॉय लंबे अरसे तक दिल्ली में सांसद के तौर पर टीएमसी का चेहरा रहे हैं। साल 2006 में उनको टीएमसी महासचिव बनाया गया था।
रॉय वर्ष 2001 में टीएमसी के टिकट से विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं। 2006 में उन्हें टीएमसी ने राज्यसभा में भेजा और वे वहां पार्टी के नेता रहे। यूपीए-2 में वे राज्य मंत्री भी बनाए गए। वे रेल मंत्री भी रह चुके हैं। हालांकि 2012 में यूपीए से टीएमसी के बाहर होने के बाद रॉय ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था।
उधर मुकुल रॉय और मुख्यमंत्री बनर्जी के बीच तनाव साल 2015 में शुरू हुआ था जब शारदा घोटाला सामने आया था। इसके बाद मुकुल रॉय को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था। इसके बाद से ही मुकुल रॉय भाजपा के संपर्क में आए थे। 2017 में रॉय ने भाजपा ज्वॉइन कर ली थी और उन्हें बाद में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी बनाया गया था। 2021 विधानसभा चुनाव में मुकुल रॉय ने भाजपा के टिकट से चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की।