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मिल्कीपुर में खिलेगी कमल या दौड़ेगी साइकिल? इरोड ईस्ट का क्या है हाल?

मिल्कीपुर (उत्तर प्रदेश) और इरोड ईस्ट (तमिलनाडु) में हो रहे महत्वपूर्ण उपचुनावों पर सभी की निगाहें टिकी...
मिल्कीपुर में खिलेगी कमल या दौड़ेगी साइकिल? इरोड ईस्ट का क्या है हाल?

मिल्कीपुर (उत्तर प्रदेश) और इरोड ईस्ट (तमिलनाडु) में हो रहे महत्वपूर्ण उपचुनावों पर सभी की निगाहें टिकी हुई हैं, जहां वोटों की गिनती शुरू हो चुकी है। जल्द ही नवनिर्वाचित विधायक अपनी जीत का जश्न मनाएंगे, जबकि पराजित उम्मीदवार अपनी रणनीति और प्रदर्शन पर आत्ममंथन करेंगे। मिल्कीपुर में यह चुनाव भाजपा और समाजवादी पार्टी (सपा) दोनों के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बना हुआ है, वहीं इरोड ईस्ट में सत्ताधारी डीएमके पर सबकी नजरें टिकी हैं, जहां कई निर्दलीय और क्षेत्रीय दलों के उम्मीदवार मैदान में हैं।

मिल्कीपुर- भाजपा बनाम सपा: हाई-स्टेक मुकाबला

अयोध्या जिले में स्थित मिल्कीपुर विधानसभा सीट का यह उपचुनाव भाजपा और सपा के बीच कांटे की टक्कर में बदल गया है। इस अनुसूचित जाति (एससी) के लिए आरक्षित सीट पर कुल 10 उम्मीदवार मैदान में हैं, लेकिन मुख्य मुकाबला भाजपा के चंद्रभानु पासवान और सपा के अजीत प्रसाद के बीच है।

2022 के विधानसभा चुनाव में सपा के अवधेश प्रसाद ने भाजपा के तत्कालीन विधायक गोरखनाथ को हराया था। इसके बाद, 2024 के लोकसभा चुनाव में भी अवधेश प्रसाद ने भाजपा को बड़ा झटका दिया और अयोध्या (फैजाबाद) संसदीय सीट से भाजपा के मौजूदा सांसद लल्लू सिंह को 54,567 वोटों के अंतर से पराजित किया। यह हार तब हुई जब कुछ ही महीने पहले अयोध्या में राम मंदिर का भव्य उद्घाटन हुआ था, जिससे भाजपा को इस क्षेत्र में बढ़त की उम्मीद थी। ऐसे में इस उपचुनाव में भाजपा की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है।

इरोड ईस्ट- निर्दलीय बनाम क्षेत्रीय दल

तमिलनाडु की इरोड ईस्ट विधानसभा सीट पर कुल 46 उम्मीदवार मैदान में हैं, जिनमें 44 निर्दलीय शामिल हैं। हालांकि, मुख्य मुकाबला डीएमके और सीमैन की नाम तमिझर काची (एनटीके) के बीच माना जा रहा है। डीएमके ने पूर्व विधायक वी सी चंद्रकुमार को मैदान में उतारा है, जबकि एनटीके की उम्मीदवार एम के सीतलक्ष्मी हैं।

गौरतलब है कि मुख्य विपक्षी दल एआईएडीएमके और भाजपा ने इस उपचुनाव का बहिष्कार किया है। यह उपचुनाव कांग्रेस विधायक ईवीकेएस इलंगोवन के निधन के कारण हो रहा है। फरवरी 2023 में हुए उपचुनाव में इलंगोवन ने 66,000 से अधिक वोटों के अंतर से बड़ी जीत दर्ज की थी। इस बार प्रमुख विपक्षी दलों की गैरमौजूदगी के चलते निर्दलीय उम्मीदवारों और छोटे क्षेत्रीय दलों को अपनी उपस्थिति दर्ज कराने का मौका मिला है, जिससे स्थानीय राजनीति के समीकरण बदल सकते हैं।

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