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तमिलनाडुः ‘तलापति’का सियासी दांव

दक्षिण की सियासत में एक नए सितारे और उसकी पार्टी के प्रवेश ने पुराने सवालों को जिंदा कर दिया...
तमिलनाडुः ‘तलापति’का सियासी दांव

दक्षिण की सियासत में एक नए सितारे और उसकी पार्टी के प्रवेश ने पुराने सवालों को जिंदा कर दिया है

तमिलनाडु की राजनीति में सितारों की जंग, नए ऐतिहासिक चरण में प्रवेश करने जा रही है। अभिनेता जोसेफ विजय, जिन्हें प्यार से ‘तलापति’ पुकारा जाता है, तमिलगा वेत्रि कणगम (टीवीके) नाम से राजनीतिक पार्टी ला रहे हैं। फोर्ब्स पत्रिका की सूची के अनुसार भारत में सबसे ज्यादा टैक्स चुकाने वाले दूसरे सेलीब्रिटी विजय को पेरियारवाद का आधुनिक संस्करण कहा जा सकता है। वे खुद इसे स्वीकारते हैं, ‘‘पेरियर से सब कुछ लिया, सिवाय नास्तिकता के।’’  टीवीके की पहली सार्वजनिक सभा विल्लुपुरम के विक्रवंडी में बीते 27 अक्टूबर को हुई। इसमें विजय ने अपनी पार्टी का विचार सामने रखते हुए इसे पेरियार और आंबेडकर से प्रेरित बताया। टीवीके की विचारधारा के मूल में सामाजिक न्याय, महिला सशक्तीकरण, बराबरी और तमिल राष्ट्रवाद के मूल्यों के प्रति संकल्प है। उन्होंने अपनी वैचारिक प्रेरणाओं में वेलनचियार और अंजलाई अम्मल जैसे ऐतिहासिक व्यक्तियों के नाम गिनवाए तथा पार्टी की विचारधारा को सामाजिक न्याय और समावेश केंद्रित बताया।

उन्होंने द्रमुक को अपना राजनीतिक दुश्मन बताया है और भाजपा को अपना वैचारिक दुश्मन करार दिया है। इस तरह से उन्होंने अपनी पार्टी को दोनों दलों के खिलाफ तीसरे विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया है, जिसमें उनका सारा जोर तमिल मूल्यों और सारे नागरिकों की बराबरी से सेवा करने वाली एक सरकार के ऊपर है। यानी, वे स्थापित राजनीतिक दलों के परिदृश्य में अपनी एक अलग राजनीतिक पहचान बनाने के प्रति सजग हैं।

पार्टी की घोषणा उन्होंने फरवरी में ही कर दी थी लेकिन इस सभा के साथ उन्होंने राजनीति में अपने औपचारिक प्रवेश का ऐलान कर दिया। अपने भाषण में उन्होंने सांस्कृतिक पहचान और क्षेत्रीय अखंडता के महत्व को बताया तथा अदालतों में तमिल को प्रशासनिक भाषा के रूप में स्थापित करने का संकल्प लिया। उन्होंने तमिलनाडु से राज्यपाल का पद समाप्त करवाने की भी पैरवी की।

द्रमुक की आलोचना करते हुए उन्होंने कहा कि वह वैचारिक आवरण में अपने भ्रष्टा‍चार को ढंकती है। उनका लक्ष्य मौजूदा राजनीतिक ढांचे में पाखंड को उजागर करना है। द्रमुक का नाम लिए बगैर उन्होंने उसे एक ‘स्वार्थी खानदान’ बताया जो ‘द्रविड़ मॉडल के आवरण में आकंठ भ्रष्टाचार में डूबी हुई जनविरोधी सरकार चला रहा है।’

विजय ने टीवीके को ऐसी पार्टी बताया जो राजनीति में बिना नफरत के काम करेगी और विभाजनकारी तरीकों के बजाय रचनात्मक संवाद और सुधारों पर अपना ध्यान केंद्रित करेगी। आगामी 2026 के चुनाव में उनकी पार्टी सभी 234 सीटों पर लड़ेगी। उनका लक्ष्य इसे द्रमुक और अन्नाद्रमुक के बरक्स एक मजबूत ताकत के रूप में स्थापित करना है। उन्होंने सभा में कहा कि टीवीके को मिला हर एक वोट अहम परिवर्तन में तेजी लाएगा। वह किसी परमाणु बम की तरह होगा, जो तमिलनाडु के सियासी परिदृश्य को बदल डालेगा।

राजनीति में विजय का आना इसलिए अहम है क्योंकि एक फिल्मी सितारे के रूप में वे बेहद लोकप्रिय हैं। यह लोकप्रियता उन्हें अच्छा-खासा समर्थन दिलवाने का माद्दा रखती है। हालांकि लोकप्रियता के चुनावी कामयाबी में तब्दील होने की कोई गारंटी नहीं है।

तमिलनाडु की सियासत में हमेशा से फिल्मी सितारों की जंग होती रही है। अन्नादुरै से शुरू कर एमजी रामचंद्रन, करुणानिधि, जयललिता और उदयनिधि स्टालिन तक सितारे से नेता बने लोगों की सूची बहुत लंबी है। भारत के किसी और राज्य में सिनेमा का सियासत से ऐसा अभिन्न जुड़ाव नहीं है। इसके बावजूद किसी फिल्मी सितारे का राजनीति में आना उतना आसान नहीं रहा है। वैसे भी द्रमुक, अन्नाद्रमुक जैसे स्थापित दलों और उभरती हुई भाजपा के बीच टीवीके की कामयाबी इस पर निर्भर करेगी कि विजय अपने समर्थकों को कितना एकजुट कर पाते हैं। साथ ही वे व्याापक चुनावी चिंताओं की रोशनी में अपने नजरिये को लोगों के बीच कितना स्पष्ट कर दूसरों से संवाद स्थापित कर पाते हैं।

नाकाम प्रयोग

लोकप्रिय तमिल अभिनेता रजनीकांत ने 31 दिसंबर, 2017 को चेन्नै की एक सभा में राजनीति में आने का ऐलान किया था। उन्होंने रजिनी मक्काल मंद्रम (आरएमएम) के नाम से एक पार्टी भी बनाने की मंशा जाहिर की थी और दावा किया था कि सभी 234 सीटों पर वह विधानसभा चुनाव लड़ेगी। उन्होंने अपनी राजनीति को ‘आध्याात्मिक’ बताया था तथा ईमानदारी और भ्रष्टाचार-मुक्त राजकाज पर जोर दिया था। उनका कहना था कि नेता लोगों के अधिकारों को लूट रहे हैं, इसलिए जमीन पर बदलाव की जरूरत है।

इस शुरुआती उत्साह के बाद हालांकि रजनीकांत की राजनीतिक यात्रा में बहुत चुनौतियां आईं। दिसंबर 2020 में उन्होंने अपने स्वास्‍थ्य का हवाला देते हुए पार्टी खड़ी करने का विचार ठंडे बस्ते में डाल दिया। उन्हें भाजपा और आरएसएस का करीबी बताया जाता है। उन्होंने इसीलिए द्रविड़ राजनीति या तमिल राष्ट्रवाद को नहीं अपनाया और भारतीय राष्ट्रवाद से चिपके रहे। जानकारों के मुताबिक यह एक बड़ी वजह है कि उनका राजनीतिक प्रयोग नाकाम हो गया।

इसके उलट, कमल हासन द्वारा फरवरी 2018 में खड़ी की गई पार्टी मक्कान नीधि मनरम (एमएनएम) ने चुनावी राजनीति में कुछ गति पकड़ी और सामाजिक न्याय, धर्मनिरपेक्षता तथा राजकाज में पारदर्शिता जैसे मुद्दों से उन्होंने खुद को एक सुधारवादी नेता की तरह पेश भी किया। वे भी द्रमुक और अन्नाद्रमुक दोनों के आलोचक रहे और राजनीतिक बदलाव के केंद्र में उन्होंने युवाओं को जोड़ने की योजना बनाई। पार्टी बनाने से पहले ही कमल हासन को उनके हिदुत्व  विरोधी पक्ष के लिए जाना जाता था।

उन्होंने एमएनएम को मध्यमार्गी विचारों वाली वैकल्पिक पार्टी के रूप में पेश किया था और शुरुआती चुनावी प्रदर्शन भी ठीक रहा था। 2019 के लाकसभा चुनाव में एमएनएम को 3.72 फीसदी वोट मिले। शहरी क्षेत्रों में उसके प्रत्याशियों ने अपेक्षाकृत बेहतर प्रदर्शन किया लेकिन ग्रामीण सीटों पर उन्हें अच्छी प्रतिक्रिया नहीं मिली। शुरुआती कामयाबी पार्टी की रफ्तार में तब्‍दील नहीं हो पाई। पार्टी की वोट हिस्सेदारी गिरकर 2.62 फीसदी पर आ गई, जिसने नेतृत्व और रणनीति पर सवाल खड़े करने शुरू कर दिए।

मजबूत सांगठनिक ढांचे का अभाव और बड़े राजनीतिक चेहरों को अपनी ओर खींच पाने की नाकामी ने एमएनएम के प्रसार को सीमित कर दिया। लगातार होती चुनावी हार के साथ कमल हासन ने अपनी रणनीति बदली और द्रमुक जैसे दलों के साथ गठबंधन पर चर्चा में लग गए। अंतत: एमएनएम, द्रमुक की गठबंधन सहयोगी बनकर रह गई। 2024 के चुनाव में इसे स्वीकार भी कर लिया गया।

बड़े अभिनेताओं के नाकाम राजनीतिक प्रयोगों के मद्देनजर विजय की आगे की राह कठिन लगती है। अपनी ईसाई पहचान के खिलाफ दक्षिणपंथी समूहों द्वारा चलाए गए नफरती अभियान का उन्होंने जिस तरह सामना किया था, उससे केरल में भी उन्हें काफी सराहना मिली थी। भाजपा के महासचिव रहे एच. राजा ने 2017 में ट्वीट कर के ‘उजागर’ किया था कि विजय का पूरा नाम जोसेफ विजय चंद्रशेखर है और वह ईसाई हैं। भाजपा के नेता उनकी एक फिल्म ‘मर्सल’ के एक संवाद से चिढ़े हुए थे, जिसमें नायक ने जीएसटी की निंदा की थी। राजा का कहना था कि विजय ने जीएसटी की निंदा इसलिए की क्योंकि वह ईसाई हैं। राजा ने विजय का एक पहचान पत्र सार्वजनिक किया था जिसमें उनका पूरा नाम लिखा हुआ था और नीचे कैप्शन लगा था, ‘कड़वा सच।’

इसकी प्रतिक्रिया में विजय ने सार्वजनिक रूप से अपना पूरा नाम लेना शुरू कर दिया। इस जवाब से उनके तमाम चाहने वाले भले बहुत उत्साहित हुए, लेकिन उन्हें याद रखना चाहिए कि सोशल मीडिया पर मिला समर्थन वोटों में नहीं बदलता है। इसलिए विजय को एक ऐसे नेता के बतौर अपनी ताकत का प्रदर्शन करना होगा जो दो द्रविड़ दलों के प्रभुत्व और भाजपा के उभार का विकल्प दे सके।

 

 

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