भारतीय समाज के बदलते परिवेश में पीढ़ी दर पीढ़ी चलने वाला निरंतर तनाव रिश्तों को अलग किस्म से गढ़ता जाता है। अपनी मर्जी से अपनी शर्तों पर जिंदगी जीना खासतौर से इस देश में अभी भी सरल नहीं है। इसकी कीमत औरतों को हर हाल में हर स्तर पर चुकानी पड़ती है। उनके अपने बच्चे, पति, अपने निकट संबंधी व परिचित उन्हें हर पल इस बात की याद दिलाते रहते हैं। स्त्री की अपनी इच्छा व स्वतंत्रता का रिश्ता सतत संघर्ष से भरा हुआ है। इस किस्म का संघर्ष औरत को अलग तरीके से ढालता है। निश्चित रूप से वह हर पल मजबूत होने की कोशिश में कई बार टूटती है और उस टूटन को अपनी ताकत बनाकर मनमर्जी से जीने की फिर कोशिश करती है। इस प्रक्रिया में गढ़ी जाती औरत इस उपन्यास में अपनी उपस्थिति पूरी धमक से जताती है। इन सबके बीच अपनी निजता को बचाते हुए मानवीयता के आधारभूत गुणों को छोड़ती नहीं है। एक तरह से अपने जीवन को अधिक अर्थपूर्ण बनाते हुए नए सिरे से परिभाषित करती आज की उस औरत की यह जीवंत कथा है, जो पीढ़ियों से टकराती हुई घर और बाहर अपनी पहचान बनाती जा रही है।
भावपूर्ण संवादों व प्रवाहमय भाषा के कारण पूरा उपन्यास एक बार में पढ़ा जा सकता है और प्रयुक्त कविताओं को अलग से पढ़ने का आनंद भी लिया जा सकता है।
सुप्रसिद्ध कथाकार का उपन्यास 'चांद गवाह' जीवन के भीतर से उठने वाली व्यथाएं हैं। अत्यंत ईमानदारी से मानवीय संबंधों के ताने-बाने को सामाजिक परिवेश में जिस तरह खड़ा किया है, वह प्रशंसनीय है। यह स्त्री को एक मनुष्य होने के नाते अपने तरीके से, अपनी शर्तों के साथ जीने का हौसला बंधाता है। यह कईयों के लिए मार्गदर्शक उपन्यास हो सकता है। कविताओं का उपयोग बहुत ही बेहतरीन तरीके से किया गया है।
इस उपन्यास में कई पुल है, जो इसका ताना-बाना रचते हैं। इनके बीच जीवंत पात्र है, जो हमारे समय में अपनी भावनाओं तथा जीवन की सच्चाईयों के बीच तालमेल बिठाते हुए हार भी जाते हैं। 'चांद गवाह' के पात्र हारते नहीं है, अपनी कमजोरियों को अपनी ताकत में बदल कर अपने सपनों को साकार करते हैं तथा जीवन के यथार्थ को स्वीकार करते हुए निडर होकर जीते हैं।
पूरे उपन्यास का घटनाक्रम कसा हुआ है। पात्रों का आना और जाना अत्यंत सहज है। केंद्रीय पात्र का चरित्र चित्रण व विकास अत्यंत स्वाभाविक रूप से हुआ है। रिश्तो की बारिकियों में यथार्थ एवं भ्रम को अलग करना कठिन है। प्रकृति के विभिन्न घटक पूरी जीवंतता के साथ उपन्यास में जहां-तहां झांकते नजर आते हैं।
चांद गवाह
उर्मिला शिरीष
सामयिक प्रकाशन
395 रुपये
समीक्षकः वीणा सिन्हा