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पुस्तक समीक्षा : दरवाजा खोलो बाबा

वर्तमान समय में हिंदी साहित्य पढ़ने वालों की संख्या में इजाफा हुआ है। लोग अब लिखने पढ़ने को बुरा काम...
पुस्तक समीक्षा : दरवाजा खोलो बाबा

वर्तमान समय में हिंदी साहित्य पढ़ने वालों की संख्या में इजाफा हुआ है। लोग अब लिखने पढ़ने को बुरा काम नहीं मानते। न इसे समय की बर्बादी कहते हैं। लेकिन इसी के साथ यह भी हुआ है कि स्तरहीन कॉन्टेंट की बाढ़ भी आ गई है। इसके कारण कई बार अच्छी किताबें भी पाठक की दृष्टि से दूर रह जाती हैं। चूंकि बाजार औसत कॉन्टेंट से भरा पड़ा है इसलिए एक उदासीन रवैया पैदा हो गया है पाठकों में। इन्हीं सब में एक किताब हाथ लगती है, जिसे पढ़कर सुख मिलता है। मन भावुक हो उठता है। किताब में वह सभी तत्व होते हैं कि आप जग भूलकर जागृत हो उठते हैं। एक ऐसी ही किताब है 'दरवाजा खोलो बाबा'।

 

दरवाजा खोलो बाबा लेखिका, कवयित्री डॉक्टर मोनिका शर्मा की किताब है। यह कविताओं का संकलन है, जिसके केंद्र में पिता है। किताब पढ़कर कुछ बातें महसूस हुई हैं। एक होता है अच्छा लेखन। यह अभ्यास से और शब्दों की बाजीगरी से हासिल हो जाता है। मगर सच्चा लेखन किसी किसी के हिस्से में आता है। इसके लिए पवित्र मन और घृणा रहित बुद्धि जरूरी होती है। मोनिका शर्मा की किताब 'दरवाजा खोलो बाबा ' ऐसे ही पवित्र हृदय और निश्छल मन की रचना है। इतना सच्चा तभी लिखा जा सकता है, जब भीतर निर्मलता हो। मोनिका शर्मा ने किताब में पिता को केंद्र में रखकर कविताएं लिखी हैं। इन कविताओं में पिता का डर,संघर्ष, चरित्र, भावनात्मक पक्ष आदि गहराई से महसूस होता है। बेटियां पिता के नजदीक होती हैं। उन्हें पिता का प्रेम मिलता है। इसी प्रेम की छांव में पलने वाली बेटियां पिता को समझ सकने में कामयाब होती हैं। पुत्र चूंकि पिता के डर में जीता है और उसका एक अघोषित युद्ध चलता रहता है पिता से, इसलिए वो कभी उन भावनाओं को महसूस नहीं कर पाता, जो पिता के अस्तित्व का अभिन्न हिस्सा होती हैं। 

 

मोनिका शर्मा की कविताएं पढ़ते हुए अपने पिता याद आते हैं। लगता है कि यह व्यक्तित्व तो हमेशा पिता के रूप में सामने देखा मगर कभी महसूस न कर सके। मोनिका शर्मा ने बहुत आत्मीयता से पिता के बारे में लिखा है। शायद ही पिता का कोई पक्ष छूटा हो। पिता के किरदार का इतना सूक्ष्म और विस्तृत वर्णन एक पुत्री ही कर सकती है, यह मोनिका शर्मा की कविताएं पढ़कर लगता है।

 

इसके अलावा मोनिका शर्मा ने कुछ कविताएं पुरुष के अस्तित्व, स्वभाव, संघर्ष, मनोभाव पर लिखी हैं। अक्सर पुरुष को अपराधी की तरह प्रस्तुत करने की परंपरा रही है। एक पूर्वाग्रह रहा है कि पुरुष एक शोषक और कामुक जीव है। मोनिका शर्मा की कविताएं नई दृष्टि देती हैं। वह सभी पूर्वाग्रह से मुक्त होकर सिक्के के विभिन्न पहलुओं को उजागर करती हैं। उन्होंने जो अनुभव किए हैं, वह दुनिया के सामने रखती हैं और कोशिश करती हैं कि दुनिया चश्मे को उतारकर पुरुष के अस्तित्व को देखे। 

 

मोनिका शर्मा की कविताओं में शब्द चयन, भाषा, भाव, शिल्प ऐसा है कि पढ़ने वाला जुड़ाव महसूस करता है।यदि आप अपने पिता को महसूस करना चाहते हैं, चाहते हैं कि आपके संबंधों में मधुरता आए तो आप इस किताब को पढ़ सकते हैं, अपने प्रिय जनों को तोहफे में दे सकते हैं। 

 

पुस्तक - दरवाजा खोलो बाबा 

लेखिका - मोनिका शर्मा 

प्रकाशन - श्वेत वर्ण प्रकाशन 

मूल्य - 149 रुपए

 

 

 

 

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